WHO की चेतावनी : अधूरी नीतियों और कानूनी खामियों के बीच तेज़ी से फैल रहा एआई का उपयोग—मरीज़ कितने सुरक्षित?

नई दिल्ली, 20 नवंबर 2025. कृत्रिम बुद्धिमत्ता (artificial intelligence एआई) ने बीमारी की पहचान से लेकर दवा तय करने, चैटबॉट के ज़रिए संवाद से लेकर इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड के प्रबंधन तक स्वास्थ्य सेवाओं में नई राहें खोल दी हैं। यूरोप के अधिकांश देशों में यह तकनीक अब रोजमर्रा की चिकित्सा में शामिल हो रही है।

लेकिन इसी तेज़ी के बीच एक बड़ा सवाल खड़ा है—क्या कृत्रिम बुद्धिमत्ता सुरक्षित भी है?

विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO की नई रिपोर्ट बताती है कि एआई के उपयोग में तेज़ उछाल तो दिख रहा है, मगर उसे नियंत्रित करने वाली व्यवस्थाएँ अभी बेहद कमजोर हैं। गलत डेटा, पक्षपातपूर्ण निर्णय, निजता का जोखिम और जवाबदेही की अस्पष्टता जैसे सभी खतरे चिकित्सा व्यवस्था को और उलझा रहे हैं।

रिपोर्ट बताती है कि 86 फीसदी यूरोपीय देशों ने माना कि एआई की कानूनी अनिश्चितता उसकी सबसे बड़ी बाधा है। सिर्फ 8 फीसदी देशों में ऐसी व्यवस्था है कि अगर एआई ने गलत फैसला दिया तो जिम्मेदारी किसकी होगी। वहीं वित्तीय सीमाएँ, प्रशिक्षण की कमी और सुरक्षा मानकों का अभाव भी गंभीर चुनौतियाँ हैं।

WHO ने साफ कहा है कि एआई अपनाने से पहले सुरक्षा, पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित किया जाए।

और सबसे अहम बात कि हर तकनीकी निर्णय के केंद्र में मरीज़ हों, न कि सिर्फ मशीनें।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की यह रिपोर्ट हमें याद दिलाती है कि चिकित्सा में तकनीक कितनी भी आगे बढ़ जाए, इंसानी निगरानी, संवेदना और जवाबदेही उसकी रीढ़ बनी रहनी चाहिए।

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एआई के उपयोग से स्वास्थ्य सेवाओं में बड़े बदलाव, मगर क्या यह सुरक्षित भी है?

कृत्रिम बुद्धिमता (एआई) की मदद से डॉक्टर्स को बीमारी का पता लगाने, मरीज़ों के साथ बातचीत करने, और उनके स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी को सहेज कर रखने में मदद मिल रही है. लेकिन यदि टैक्नॉलॉजी से ही कोई ग़लती हो जाए, या उसके आधार पर कुछ ऐसा ग़लत निर्णय ले लिया जाए जिससे मरीज़ों को नुक़सान हो, तो फिर ये किसकी ज़िम्मेदारी होगी?

यूरोपीय क्षेत्र के लिए स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अपने एक नए अध्ययन में आगाह किया है कि स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में एआई के इस्तेमाल में तेज़ी आ रही है, लेकिन मरीज़ों और स्वास्थ्यकर्मियों की रक्षा के लिए आवश्यक बुनियादी क़ानूनी उपायों की फ़िलहाल कमी है.

इस विश्लेषण के लिए यूरोपीय क्षेत्र में स्थित 53 में से 50 सदस्य देशों से मिली जानकारी के आधार पर यह समझने का प्रयास किया गया है कि स्वास्थ्य सैक्टर में एआई को किस तरह से अपनाया जा रहा है और उसके लिए क्या नियामन व्यवस्था है.

यह क्यों अहम है

आम तौर पर जब कोई मरीज़ अपने डॉक्टर के पास जाता है, तो उसकी यह अपेक्षा होती है कि डॉक्टर या नर्स, पूरी ज़िम्मेदारी के साथ जाँच करेंगे और कोई ग़लती होने पर जवाबदेही तय होगी.

मगर, एआई के इस्तेमाल से यह स्थिति बदल रही है. यह टैक्नॉलॉजी, जुटाई गई जानकारी से सीखने और उसके आधार पर निर्णय लेने के लिए डेटा पर निर्भर होती है. यदि यह डेटा अधूरा या फिर पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो, तो एआई द्वारा लिए जाने वाले निर्णय भी प्रभावित होने की आशंका बढ़ जाती है.

इससे बीमारी का ग़लत ढंग से निदान हो सकता है, उपचार करने में ग़लती हो सकती है या फिर कुछ मरीज़ समान देखभाल सेवाओं से वंचित हो सकते हैं.

एआई का बढ़ता इस्तेमाल

यूरोपीय क्षेत्र में लगभग सभी देशों का मानना है कि एआई के इस्तेमाल से स्वास्थ्य देखभाल सैक्टर की कायापलट की जा सकती है – बीमारियों का पता लगाने से लेकर रोग निगरानी और निजी आवश्यकता के आधार पर दवाओं के ज़रिए.

कुछ देशों में एक्सरे व अन्य इमेजिंग परीक्षण में एआई का इस्तेमाल हो रहा है जबकि अन्य में मरीज़ों के साथ बातचीत के लिए चैटबॉट का इस्तेमाल किया जा रहा है.

ऐस्टोनिया में इलैक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड को बीमा डेटा, जनसंख्या डेटाबेस से जोड़ा गया है, और एक एकीकृत प्लैटफ़ॉर्म तैयार किया गया है जोकि अब एआई टूल्स को मदद करता है.

वहीं, फ़िनलैंड ने अपने स्वास्थ्यकर्मियों के लिए एआई प्रशिक्षण में निवेश किया है, जबकि स्पेन में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में जल्द बीमारी का पता लगाने के लिए योजना शुरू की गई है.

मगर, विशाल सम्भावनाओं के बावजूद एआई का इस्तेमाल असमान रूप से हो रहा है या फिर यह बिखरा हुआ है. केवल 4 देशों में स्वास्थ्य देखभाल के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक रणनीति है, जबकि 7 अन्य देश इसे तैयार कर रहे हैं.

योरोप के लिए WHO के क्षेत्रीय निदेशक डॉक्टर हैंस क्लूगे ने बताया कि यूरोपीय क्षेत्र में लाखों स्वास्थ्यकर्मियों और मरीज़ों के लिए एआई एक वास्तविकता बन चुकी है. मगर, स्पष्ट रणनीति, डेटा निजता, क़ानूनी बचाव उपायों और एआई साक्षरता में निवेश के बिना, असमानताओं में कमी आने के बजाय वे और गहरी हो सकती हैं.

मौजूदा अवरोध

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि एआई के इस्तेमाल से मरीज़ों को बेहतर सेवाएँ प्रदान की जा सकती हैं, स्वास्थ्यकर्मियों पर बोझ और देखभाल की लागत में कमी लाई जा सकती है.

लेकिन मरीज़ों की सुरक्षा, उनकी निजता पर असर पड़ने और देखभाल सेवाओं में व्याप्त असमानताओं के और गहराने की आशंका भी है.

यूरोपीय देशों में, जिस तेज़ी से टैक्नॉलॉजी में बदलाव आ रहे हैं, उस गति से उन्हें नियमों के दायरे में ला पाना सम्भव नहीं हो पा रहा है.

सर्वेक्षण में शामिल 50 में से क़रीब 86 प्रतिशत देशों ने बताया कि एआई उपायों को पूरी तरह अपनाने में एक बड़ी बाधा, क़ानून सम्बन्धी अनिश्चितताओं से जुड़ी है.

78 प्रतिशत देशों के अनुसार, वित्तीय संसाधन उनके लिए एक बड़ा अवरोध हैं.

महज़ 8 प्रतिशत देशों में ही ऐसी व्यवस्था है, जिससे यह निर्धारित किया जा सकता है कि एआई प्रणाली द्वारा ग़लत निर्णय लिए जाने पर किसकी ज़िम्मेदारी तय होगी.

जवाबदेही, निजता की रक्षा पर बल

डिजिटल स्वास्थ्य और एआई पर क्षेत्रीय सलाहकार, डॉक्टर डेविड नोविलो ओरटिज़ ने बताया कि स्पष्ट क़ानूनी मानकों के अभाव में, चिकित्सक एआई उपायों का सहारा लेने के अनिच्छुक हो सकते हैं, और कुछ ग़लती होने पर मरीज़ों के पास अपनी समस्या सुलझाने के लिए कोई सहारा नहीं होगा.

इसके मद्देनज़र, यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के WHO कार्यालय ने देशों से जवाबदेही व्यवस्था स्पष्ट करने, किसी नुक़सान की स्थिति में कष्ट निवारण तंत्र स्थापित करने का आग्रह किया है.

साथ ही, मरीज़ों के लिए एआई का इस्तेमाल किए जाने से पहले यह सुनिश्चित किया जाना होगा कि एआई प्रणाली की सुरक्षा, निष्पक्षता के लिए जाँच हो.

यूएन एजेंसी ने ज़ोर देकर कहा है कि एआई के इस्तेमाल में तीन बातों का ध्यान रखा जाना अहम है: मरीज़ों की सुरक्षा, देखभाल सेवाओं की सभी के लिए सुलभता, और डिजिटल निजता.

रिपोर्ट में देशों से ऐसी रणनीतियाँ तैयार करने आग्रह किया है, जोकि हर निर्णय के केन्द्र में मरीज़ों व लोगों को रखें और क़ानूनी व नैतिक सुरक्षा उपायों को मज़बूती प्रदान करें. साथ ही, स्वास्थ्यकर्मियों को एआई के लिए प्रशिक्षण मुहैया कराना और देशों के बीच डेटा का आदान-प्रदान ज़रूरी होगा."