बीमारी की स्क्रीनिंग क्यों ज़रूरी है?

  • बीमारी की स्क्रीनिंग कैसे बदल रही है लाखों लोगों की ज़िंदगी
  • बीमारी की स्क्रीनिंग में फॉल्स पॉज़िटिव और फॉल्स नेगेटिव क्या होते हैं?
  • ओवरडायग्नोसिस और ओवरट्रीटमेंट का जोखिम
  • गाइडलाइंस समय के साथ कैसे बदलती हैं?
  • कौन-सी उम्र में कौन-सा टेस्ट?
  • स्क्रीनिंग से पहले डॉक्टर से क्या पूछें?

क्या स्क्रीनिंग सभी के लिए ठीक है?

बीमारी की स्क्रीनिंग के फायदे, नुकसान, फॉल्स पॉज़िटिव–नेगेटिव, ओवरडायग्नोसिस और बदलती गाइडलाइंस को समझें। जानिए कि किस उम्र में कौन-सा टेस्ट फायदेमंद है और डॉक्टर से क्या सवाल पूछने चाहिए। रोकथाम का असली अर्थ जानने के लिए यह विस्तृत समाचार पढ़ें...

रोकथाम का एक औंस (An Ounce of Prevention)

बीमारी की स्क्रीनिंग के फायदे और नुकसान (Pros and Cons of Disease Screenings)

नई दिल्ली, 7 दिसंबर 2025. बहुत सी बीमारियाँ चुपचाप शुरू होती हैं। हाई ब्लड प्रेशर, हाई कोलेस्ट्रॉल और यहाँ तक कि कैंसर जैसी बीमारियों के शुरू में कोई लक्षण नहीं दिखते। स्क्रीनिंग का मतलब है, दिखने में स्वस्थ लोगों में बीमारी के लक्षणों को खोजना। समस्याओं का जल्दी पता चलने से आप जल्द से जल्द इलाज शुरू कर सकते हैं और लाइफस्टाइल में फायदेमंद बदलाव कर सकते हैं। कुछ स्क्रीनिंग टेस्ट सेहत को बेहतर बनाने में मददगार साबित हुए हैं और उनकी व्यापक रूप से सलाह दी जाती है।

U.S. Department of Health and Human Services से संबद्ध National Institutes of Health के मासिक न्यूजलैटर में विस्तार से बीमारी की स्क्रीनिंग के फायदे और नुकसान के बारे में विस्तार से बताया गया है।

NIH के पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट बॉब मैकनेलिस (Bob McNellis, a public health expert at NIH) कहते हैं, "हमारे पास बेहतरीन स्क्रीनिंग टेस्ट हैं जिनसे मौत और बीमारियों की दर सच में कम हुई है।"

चिकित्सा विशेषज्ञों की टीमें इस बात के लिए गाइडलाइंस बनाती हैं कि इन टेस्ट से किन लोगों की स्क्रीनिंग होनी चाहिए, और कितनी बार।

एक नए अध्ययन में देखा गया कि पिछले पांच दशकों में अमेरिका में कैंसर से होने वाली मौतों को कम करने में स्क्रीनिंग ने कैसे मदद की।

NIH में कैंसर कंट्रोल एक्सपर्ट डॉ. कैटरीना गोडार्ड (Dr. Katrina Goddard, a cancer control expert at NIH) कहती हैं, "हमने पाया कि पिछले 45 सालों में कैंसर से होने वाली 10 में से 8 मौतें रोकथाम और स्क्रीनिंग की कोशिशों की वजह से टाली गईं।"

सर्वाइकल कैंसर और कोलोरेक्टल कैंसर से होने वाली मौतों में कमी का मुख्य कारण स्क्रीनिंग थी।

लेकिन स्क्रीनिंग हमेशा सबके लिए सही नहीं होती। कुछ टेस्ट के संभावित नुकसान या खतरे हो सकते हैं।

फॉल्स पॉजिटिव रिजल्ट क्या होता है

मैकनेलिस बताते हैं, "ये शारीरिक नुकसान हो सकते हैं। ये बदनामी या मानसिक तनाव जैसी चीजें भी हो सकती हैं।" उदाहरण के लिए, कोई टेस्ट यह बता सकता है कि आपको कोई बीमारी है, जबकि असल में आपको वह बीमारी नहीं होती। इसे फॉल्स पॉजिटिव रिजल्ट (False positive result) कहा जाता है और इससे तनाव और गैर-ज़रूरी फॉलो-अप टेस्टिंग हो सकती है, जिसमें साइड इफेक्ट का खतरा हो सकता है।

कई बार, टेस्ट बीमारी के मामलों को पकड़ नहीं पाते। इन्हें फॉल्स नेगेटिव रिजल्ट कहा जाता है।

कभी-कभी, स्क्रीनिंग टेस्ट में कोई ऐसी बीमारी पकड़ में आ जाती है जिससे उस व्यक्ति की पूरी ज़िंदगी में कभी कोई दिक्कत नहीं होती। लेकिन टेस्ट के नतीजों की वजह से उस व्यक्ति का इलाज किया जा सकता है। इसे ओवरडायग्नोसिस और ओवरट्रीटमेंट कहते हैं।

मैकनेलिस कहते हैं, "असल में, कोई भी टेस्ट परफेक्ट नहीं होता।"

एक्सपर्ट समय के साथ स्क्रीनिंग टेस्ट के असर पर नज़र रखते हैं और सुझावों में बदलाव करते रहते हैं। उदाहरण के लिए, प्रोस्टेट कैंसर के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट पहले ज़्यादा उम्र के पुरुषों के लिए आम थे। लेकिन स्टडीज़ में ओवरडायग्नोसिस का लेवल ज़्यादा पाया गया। इसकी वजह से कई पुरुषों की ऐसी बड़ी सर्जरी हुई जिनकी उन्हें ज़रूरत नहीं थी। इसलिए 70 साल और उससे ज़्यादा उम्र के पुरुषों के लिए प्रोस्टेट कैंसर स्क्रीनिंग की आमतौर पर सलाह नहीं दी जाती है।

गॉडार्ड बताते हैं, "स्क्रीनिंग गाइडलाइंस समय के साथ बदलती रहती हैं।" ऐसा इसलिए होता है क्योंकि नए रिसर्च हमेशा होते रहते हैं। उदाहरण के लिए, अब गाइडलाइंस बताती हैं कि कई लोग 50 साल के बजाय 45 साल की उम्र में कोलोरेक्टल कैंसर की स्क्रीनिंग शुरू कर सकते हैं।

मैकनेलिस कहते हैं, "युवा लोगों में कैंसर की दर बढ़ रही है, और हमारे पास नए सबूत हैं कि उन्हें कोलोरेक्टल कैंसर स्क्रीनिंग से फायदा हो सकता है।"

स्क्रीनिंग टेस्ट की अनुशंसा करते समय आपका डॉक्टर कई बातों का ध्यान रखेगा। इनमें आपकी उम्र, पूरी सेहत और आपकी पसंद शामिल हैं। स्क्रीनिंग टेस्ट करवाने से पहले अपने डॉक्टर से बात करें।

पूछने लायक सवाल ये हो सकते हैं : टेस्ट के संभावित नुकसान क्या हैं? ये कितनी बार होते हैं? ऐसी बीमारी का पता चलने का कितना चांस है जिससे कोई समस्या नहीं होती? अगर कुछ पता चलता है, तो इलाज के ऑप्शन कितने असरदार हैं? अगर कोई बीमारी पता चलती है, तो क्या मैं इलाज करवाने के लिए काफी स्वस्थ हूँ?

मैकनेलिस कहते हैं कि सबसे सटीक नतीजे पाने के लिए कई स्क्रीनिंग टेस्ट को रेगुलर रूप से दोहराने की ज़रूरत होती है। इसलिए, भले ही आपको पूरी तरह से स्वस्थ बताया गया हो, अगर आपको टेस्ट के बीच कोई चिंताजनक लक्षण महसूस होते हैं, तो अपने डॉक्टर को ज़रूर बताएं।