कैसा पढ़ा-लिखा है कि लड़ाई-झगड़ा का बात करता है
कैसा पढ़ा-लिखा है कि लड़ाई-झगड़ा का बात करता है

अभिषेक श्रीवास्तव (Abhishek Shrivastava), जनपक्षधर, यायावरी प्रवृत्ति के वरिष्ठ पत्रकार हैं। उनकी शिक्षा दीक्षा आईआईएमसी में हुई है
कैसा पढ़ा-लिखा है कि लड़ाई-झगड़ा का बात करता है
अभिषेक श्रीवास्तव
शाम को चौराहे पर गणेश के यहां चाय पी रहा था। अचानक दुबेजी दिखाई दिए। काला चश्मा पहनकर बाइक से आ रहे थे। देखते ही रुक गए। हाथ बढ़ाए और पूछे- और सर, युद्ध-वुद्ध होगा कि नहीं?
मैंने उन्हें बैठने को कहा और एक चाय के लिए आवाज़ लगाई।
बाइक से नीचे उतरकर जवाब के लिए उकसाते हुए बोले,
"सोचिए, आज इंदिरा गांधी रहतीं तो अलग ही नजारा होता। आपको क्या लगता है, कुछ होगा भी या...?"
मैंने दूसरी बार सवाल को अनसुना करते हुए गणेश को चाय के लिए आवाज़ लगाई।
दुबेजी नहीं माने। लगातार बोलते रहे,
"आजकल तो आप लोग बहुत बिजी होंगे। टीवी वाले तो माहौल बना दिए हैं, बस मोदीजी का इंतजार है। एतना देर नहीं करना चाहिए था बयान देने में... क्या लगता है आपको, कुछ होगा?"
मैं कुछ सोचता और बोलता, उसके पहले गणेश ने जलते हुए प्लास्टिक के मटमैले कप में पतली-सी चाय उनकी ओर बढ़ा दी।
गरम प्लास्टिक हाथ से लगते ही दुबेजी छनछना गए। उधर मुंह में दबाया शिखर बाईं ओर सेट करते हुए गणेश दबे दांतों में मुस्करा कर बोला,
"पहले चाय संभालो दुबेजी... अभी युद्ध का प्रैस्टिक चल रहा है दोनों तरफ। टाइम लगेगा।"
दुबेजी गरमा गए। चश्मा उतार कर बोले,
"बेटा तुम तो चाय बेचो। पढ़े-लिखे लोगों का बात तुम्हरा समझ में नहीं आएगा। ह.. ह.. ह.. क्या सर?"
मैं मुंडी हिला दिया, लेकिन गणेश ने अदरक कूटते हुए उनकी ओर देखकर छक्का मार दिया,
"कैसा पढ़ा-लिखा है कि लड़ाई-झगड़ा का बात करता है। इससे तो बढ़िया हम हैं...।"
दुबेजी झेंपते हुए मेरी ओर देखकर बोले,
"ई सब चार पैसा क्या कमा लिया है कि मन बढ़ गया है। देखिए, बहस कर रहा है।"
मैंने कहा- जाने दीजिए। वे बोले,
"हां, जाने दीजिए, छोटे आदमी से क्या लड़ना? अपना ही नोकसान होता है।"
Web Title: How educated is he that he talks about fights?


