मोज़ाम्बीक़ में हिंसा की नई लहर

  • विस्थापन का बढ़ता दबाव और मानवीय संकट
  • UNHCR की चेतावनी और संसाधनों की कमी
  • कैबो डैलगाडो की पृष्ठभूमि और अल-शबाब की भूमिका
  • जलवायु आपदाओं ने बढ़ाई मुश्किलें

2026 के लिए UNHCR की वित्तीय ज़रूरतें

नई दिल्ली, 2 दिसंबर 2025. दक्षिणपूर्वी अफ़्रीका में स्थित मोज़ाम्बीक़ के उत्तरी इलाक़ों में हिंसा का एक ऐसा दौर शुरू हुआ है, जिसने सुरक्षित समझे जाने वाले गाँवों और जिलों को भी हिंसा की आग में झोंक दिया है।

मोज़ाम्बीक़ में पिछले दो हफ़्तों में एक लाख से भी अधिक लोग अपना घर छोड़ने को मजबूर हुए हैं। रात के अंधेरे में होने वाले लगातार हमलों ने आम लोगों को न सिर्फ़ उखाड़ फेंका, बल्कि इन हमलों में निर्दोष नागरिकों को बेहद क्रूर तरीक़ों से मार डाला गया।

UNHCR के प्रतिनिधि ज़ेवियर क्रीच ने बताया है कि विस्थापित परिवार स्कूलों और सामुदायिक आश्रयों में ठूँसे हुए हैं। उन्होंने बताया कि बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी, पानी की तंगी और लगातार बढ़ती भीड़ मानवीय संकट को और गहरा कर रही है।

क्या है मामला

मोज़ाम्बीक़ का कैबो डैलगाडो प्रदेश 2017 से ही हिंसा की मार झेल रहा है, जहाँ अब तक 13 लाख से अधिक लोग पलायन कर चुके हैं। स्थानीय उग्रवादी गुट अल-शबाब के हमलों ने हालात बिगाड़ दिए हैं, जबकि लगातार आने वाले तूफ़ान, बाढ़ और सूखा आबादी की रोज़मर्रा की आजीविका तक छीन रहे हैं।

UNHCR का कहना है कि यह संकट अब उन इलाकों तक फैल गया है, जो विस्थापित लोगों को शरण दे रहे थे, जिससे पूरा तंत्र चरमराने लगा है। 2026 में मदद जारी रखने के लिए एजेंसी को 3 करोड़ 82 लाख डॉलर की आवश्यकता होगी—एक ऐसा लक्ष्य जो मौजूदा संसाधनों की तुलना में बहुत बड़ा है।

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी यूएनएचसीआर,(UNHCR, the UN Refugee Agency) ने मोज़ाम्बीक़ के ताज़ा हालात बताते हुए कहा है कि

"रात में गांवों पर हमला होता है।

घर जला दिए जाते हैं।

अफरा-तफरी में परिवार बिखर जाते हैं।

माता-पिता बच्चों को भूल जाते हैं।

बुज़ुर्ग पीछे छूट जाते हैं।

कुछ लोग बिना किसी डॉक्यूमेंट, मदद या रहने की जगह के भी सुरक्षा के लिए कई दिनों तक पैदल चलते हैं।

उत्तरी मोज़ाम्बिक में अभी यही हालत है।"

यूएनएचसीआर ने कहा है कि

"उत्तरी मोज़ाम्बिक में तेज़ी से फैल रही हिंसा की वजह से सिर्फ़ दो हफ़्तों में करीब 100,000 लोग बेघर हो गए हैं।

UNHCR बहुत परेशान है क्योंकि हमले उन इलाकों तक पहुँच रहे हैं जिन्हें पहले सुरक्षित माना जाता था, जिससे परिवारों को भागना पड़ रहा है—कई लोगों को 2025 में दूसरी या तीसरी बार भागना पड़ रहा है।

जो लोग नामपुला प्रांत में आते हैं, उन्हें भीड़-भाड़ वाले स्कूल और खुली जगहें मिलती हैं, जहाँ उन्हें बिना रोशनी या प्राइवेसी के सोना पड़ता है।

महिलाओं और लड़कियों को सेक्सुअल और जेंडर-बेस्ड हिंसा का ज़्यादा खतरा रहता है। बुज़ुर्ग और दिव्यांग लोग खास तौर पर कमज़ोर होते हैं।"

यूएनएचसीआर ने कहा है कि "प्रोटेक्शन टीमें चौबीसों घंटे काम कर रही हैं।

परिवारों को फिर से मिला रही हैं। बचे हुए लोगों को सपोर्ट कर रही हैं। मेंटल हेल्थ केयर, डिग्निटी किट, मोबिलिटी एड्स और खोए हुए डॉक्यूमेंट्स को बदलने में मदद दे रही हैं।

लेकिन जवाब देने के लिए रिसोर्स तेज़ी से खत्म हो रहे हैं।

हिंसा फैलने और ज़रूरतें बढ़ने के साथ, UNHCR तुरंत इंटरनेशनल मदद की मांग कर रहा है।

2025 में जितनी ज़रूरत है, उसका सिर्फ़ 50% ही फंडिंग है, और 2026 में यह कमी और बढ़ जाएगी।

तुरंत मदद के बिना, हज़ारों लोग बिना प्रोटेक्शन, शेल्टर या उम्मीद के रह जाएंगे।"