चड्डी नहीं सोच बदलो - नश्‍तर चुभाने से किसी का भला नहीं होता, जनता का तो कतई नहीं...

सरकार की कारस्तानियों के खिलाफ कोई भी तात्कालिक संघर्ष विशुद्ध राजनीतिक है, विशुद्ध विचारधारात्मक नहीं

अभिषेक श्रीवास्तव

एक होती है विचारधारा। दूसरी है उसके नाम पर की जाने वाली राजनीति। तीसरी चीज़ है विचारधारा को व्‍यक्‍त करने वाले वे आदिम प्रतीक जो राजनीति विशेष की पॉपुलर पहचान जनमानस के बीच कराते हैं। एक संसदीय लोकतंत्र के भीतर चुनी हुई सरकार की कारस्‍तानियों के खिलाफ कोई भी तात्कालिक संघर्ष विशुद्ध राजनीतिक है, विशुद्ध विचारधारात्‍मक नहीं। विचारधारात्‍मक संघर्ष लंबा समय लेता है। कभी-कभार सदियां। जैसे पूंजीवाद की विचारधारा के खिलाफ समाजवाद के लिए संघर्ष। सरकारें बदलने से विचारधारात्मक संघर्ष खत्म नहीं हो जाते।

इसीलिए पांच साल वाली राजनीतिक लड़ाई में विचारधारा के वाहक आदिम प्रतीकों का उपहास उड़ाना मुझे ठीक नहीं जान पड़ता। किसी खुराफ़ाती तत्व के छेड़े हुए जुमले "चड्डी नहीं सोच बदलो" में आपने जैसे ही अपना स्वर मिलाया, पलट कर आप अपने प्रतिद्वंद्वी को इतनी स्पेस और लेजिटिमेसी दे देंगे कि वह आपकी विचारधारा और उसके प्रतीकों पर हमला कर देगा। दक्षिणपंथ उतनी ही हकीकी विचारधारा है जितनी वामपंथ। वामपंथी अगर दक्षिणपंथी से बोले कि अपनी चड्डी नहीं सोच बदलो, या फिर इसका उलटा सोचिए, तो इसका राजनीतिक मतलब क्या बनता है? क्या इसका कोई रणनीतिक मूल्‍य भी है या ऐसे ही मौज लेने के लिए कहा जा रहा है? विचारधारा जनता के लिए है न? या वैचारिक प्रतिद्वंद्वी के लिए? आप किसे कन्विंस करना चाह रहे हैं "सोच बदलो" कह कर?

अगर हम वाकई समझ चुके हैं कि यह लड़ाई विशुद्ध विचारधारात्‍मक है, अबकी आर या पार, अब तो एक ही विचारधारा को जीने देना है, तब तो ठीक है। करते रहिए हमले और सहते रहिए हमले। कल को वे लाल झंडे पर लतीफ़े गढ़ें तो बिलकुल बुरा मत मानिएगा, लेकिन ऐसा हो नहीं पाएगा। बुरा तो लगेगा। बुरा किसी को भी लग सकता है। बेमतलब बुरा लगने-लगवाने में ऊर्जा नष्‍ट होती चली जाएगी। लतीफ़ों का भी एक वक्‍त होता है। पोलराइज़ हो चुके समय में वही लतीफ़े नश्‍तर से चुभते हैं। नश्‍तर चुभाने से किसी का भला नहीं होता। जनता का तो कतई नहीं।

Web Title : If tomorrow they make jokes on the red flag then don't feel bad at all