खुशहाली का एकमेव उपाय : शक्ति के स्रोतों में सामाजिक और लैंगिक विविधता का प्रतिबिम्बन

अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस International Day of Happiness (विश्व खुशहाली रिपोर्ट 2023 भारत)

हर साल 20 मार्च को ख़ुशी, तंदुरुस्ती और मानसिक स्वास्थ्य के महत्त्व को बढ़ावा देने के लिए ‘अंतर्राष्ट्रीय ख़ुशी दिवस’ मनाया जाता है. इस अवसर पर वर्ल्ड हैप्पीनेस की रिपोर्ट प्रकाशित की जाती है जो इस वर्ष भी प्रकाशित हो चुकी है.

The theme for the 2023 International Day of Happiness is "Be Mindful. Be Grateful. Be Kind."

2023 के ख़ुशी दिवस की थीम है: बी माइंडफुल; बी ग्रेटफुल; बी काइंड ! बहरहाल 2023 में जो वर्ल्ड हैप्पीनेस की रिपोर्ट प्रकाशित हुई उसमें यह तथ्य उभर कर आया है कि दुनिया के सबसे खुशहाल देशों में यूरोपीय देश ही शामिल हैं, और टॉप 20 खुशहाल देशों की लिस्ट में एक भी एशियाई देश नहीं है. टॉप 20 खुशहाल देशों में फिनलैंड के साथ-साथ डेनमार्क, आइसलैंड, स्वीडन और नॉर्वे जैसे देश भी शामिल हैं.

वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2023 में भारत की स्थिति

वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2023 (world happiness report 2023) तैयार करते वक्‍त विभिन्‍न देशों के लोगों की लाइफस्टाइल, वहां की जीडीपी, सोशल सपोर्ट, बेहद कम भ्रष्टाचार और एक-दूसरे के प्रति दिखाए गए प्रेम को आधार बनाया है. इस बार जो रिपोर्ट प्रकाशित हुई है, उनमें कुल 137 देशों को शामिल किया गया है. इन 137 देशों की लिस्‍ट वाली रिपोर्ट में फिनलैंड पिछले 6 वर्षों से लगातार टॉप पर बना हुआ है. दरअसल, फिनलैंड जैसे देश उन चीजों में बेहतर हैं, जिनके लिए दुनिया भर के देश संघर्ष कर रहे हैं. फिनलैंड में लोगों के लिए मुफ्त व अच्‍छी शिक्षा, स्वास्थ्य-योजनाएं हैं, इसके अलावा कई ऐसी चीजें भी सरकार मुहैया कराती है, जो लोगों को खुशहाल रखती हों.

भारत के लिहाज से कैसी है वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2023

अब जहां तक भारत का सवाल है 137 देशों में इसकी रैंकिंग देखकर ख़ुशी के लिए तरसते भारत के लोग गम में डूब गए होंगे. कारण, वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट-2023 भी भारत के लिहाज से बेहद निराशाजनक है, क्‍योंकि 137 देशो में हमारे देश को 126 वीं रैंक हासिल हुई है, जबकि पड़ोसी देशों पाकिस्तान (108), म्यांमार (72), नेपाल (78), बांग्लादेश (102) और चीन (64) को लिस्ट में भारत से ऊपर जगह मिली है. यानी, कि हमसे ज्‍यादा खुशहाल तो भारत के चिर प्रतिद्वंदी पाकिस्तान के लोग माने गए हैं. इस मामले में भारत के लिए एक ही सन्तोष का विषय है कि प्रतिवेशी मुल्कों में एक इस्लामी देश अफगानिस्तान को 137वां यानी अंतिम स्थान मिला है.

वैसे भारत को जो रैंकिंग मिली है उससे बहुत विस्मित नहीं होना चाहिए. ख़ुशी मापने के लिए विभिन्‍न देशों के लोगों की लाइफस्टाइल, वहां की जीडीपी, सोशल सपोर्ट, बेहद कम भ्रष्टाचार और एक-दूसरे के प्रति दिखाए गए प्रेम को जो आधार बनाया गया है, उस आधार पर भारत के इससे बेहतर रैंकिंग पाने की उम्मीद ही नहीं की जा सकती.

विगत वर्षों में मानव विकास सूचकांक, क्वालिटी ऑफ़ लाइफ, जच्चा-बच्चा मृत्यु दर, प्रति व्यक्ति डॉक्टरों की उपलब्धता, क्वालिटी एजुकेशन इत्यादि से जुड़ी जितनी भी इंडेक्स/ रिपोर्ट्स जारी हुई हैं, उनमें हमारी स्थिति स्थिति बद से बदतर ही नजर आई है. उन सभी में ही भारत अपने पिछड़े पड़ोसी मुल्कों से सामान्यतया पीछे ही रहा है. किसी भी रिपोर्ट में सुधार का लक्षण मिलना मुश्किल है.

लैंगिक समानता : क्या है भारत की स्थिति

आज लैंगिक समानता के मोर्चे पर भारत दक्षिण एशिया में नेपाल, बांग्लादेश, भूटान,म्यांमार से भी पीछे चला गया है और भारत की आधी आबादी को आर्थिक रूप से पुरुषों के बराबर आने में 257 साल लगने हैं, इसकी खुली घोषणा ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2021 (Global Gender Gap Report 2021) में हो चुकी है. 2022 के अगस्त में भारत नाईजेरिया को पीछे धकेल कर ‘विश्व गरीबी की राजधानी’ का खिताब अपने नाम कर चुका है; घटिया शिक्षा के मामले में मलावी नामक अनाम देश को छोड़ कर भारत टॉप पर पहुँच चुका है. इस वर्ष जनवरी में प्रकाशित ऑक्सफैम इंटरनेश्नल की रिपोर्ट में यह तथ्य उभर कर आया कि एक प्रतिशत अमीरों के पास 40% तो टॉप की 10 % आबादी के पास 72% धन-दौलत है, जबकि नीचे की 50% आबादी महज 3% वेल्थ पर गुजर-बसर करने के लिए विवश है.ऐसे में 2023 में वैश्विक खुशहाली की रिपोर्ट में भारत की जो अत्यंत निराशजनक रैंकिंग मिली है, उससे हमें जरा भी विस्मित नहीं होना चाहिए। रिपोर्ट में अगर उलटी स्थित होती तो ही विस्मय होता.

मोदी राज में जिस तरह वर्ग संघर्ष का इकतरफा खेल खेलते हुए मुट्ठी भर जन्मजात सुविधाभोगी लोगों के हाथ में सारा कुछ देने के इरादे से देश बेचने से लेकर बहुसंख्य लोगों को गुलामों की स्थिति में पहुचाने प्रयास हुआ है; जिस तरह नीचे की 50 % आबादी को 3% संपदा पर जीवन निर्वाह के लिए मजबूर होना पड़ा है; जिस तरह गाय के समक्ष इंसानों के जीवन को कमतर आँका गया है; जिस तरह दलित तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों को लिंचिंग का शिकार बनाया गया है; जिस तरह अदानी को लेकर भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा बना है और सर्वोपरि जिस तरह आधी आबादी को आर्थिक रूप से पुरुषों की बराबरी में आने के लिए 257 साल लगने के आंकड़े सामने आये हैं,