अहमद पटेल हार जाएं, तो बेहतर है
अहमद पटेल हार जाएं, तो बेहतर है
अहमद पटेल की राज्यसभा में भूमिका: एक समीक्षा
सोनिया गांधी की 'किचन कैबिनेट' में अहमद पटेल की जगह
2014 के लोकसभा चुनाव में अहमद पटेल की अदृश्य भूमिका
अहमद पटेल: कांग्रेस की रणनीति के मास्टरमाइंड?
क्या 2014 के बाद अहमद पटेल की राजनीतिक भूमिका बदली?
राजनीति में पर्दे के पीछे की अहमद पटेल की भूमिका
अहमद पटेल की राज्यसभा सांसद के बतौर क्या और कैसी भूमिका रही है, यह मेरे स्मरण में नहीं आता। जो भूमिका आज तक उनकी बताई जाती रही है- सोनिया गांधी की 'किचन कैबिनेट' के संदर्भ में- उसे 2014 से लेकर अब तक जांचने-समझने का अपने को कोई सिरा नहीं मिलता। इसके अलावा 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने जो अतिरिक्त अदृश्य भूमिका अख्तियार कर ली थी (जिसके बारे में लोग दबे-छुपे कहते भी हैं), वह एक अलग कहानी है।
आज अगर जीते-जी अमर सिंह की राष्ट्रीय राजनीति में भूमिका नहीं बन पा रही है, तो मरणासन्न कांग्रेस में अहमद पटेल की बहुचर्चित भूमिका मुझे संदिग्ध और अतिरंजित जान पड़ती है।
मान लीजिए कि अहमद पटेल की कोई अहम भूमिका अंदरखाने हो भी, तो उनके राज्यसभा में न चुने जाने से संगठन पर क्या फ़र्क पड़ जाता है- शायद कुछ नहीं।
दरअसल, राजनीतिक दलों में परदे के पीछे चलने वाले खेल का दौर अब चला गया है। जो है, प्रत्यक्ष है। ऐसे में प्रमोद महाजन भी आज जिंदा होते तो मुझे शक़ है कि कुछ खास कर रहे होते। इसलिए अहमद पटेल हार जाएं, तो बेहतर है। कोई और आवे। वैसे भी, जयराम रमेश के हिसाब से अगर भविष्य की कांग्रेस राहुल गांधी के कंधों पर टिकी है, तो राहुल को अपने कंधे पर जमी पुरानी सड़ी हुई धूल अविलम्ब झाड़ देनी चाहिए।
दिग्विजय, पटेल, मिस्त्री- ऐसे पात्र सीताराम केसरी के गावतकिया वाले ज़माने में शोभा देते थे। अब भी ऐसे तत्व बचे रहे, तो कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील गाड़ने के अलावा किसी काम नहीं आएंगे। सफ़ाई होने दीजिए। मैं अंत तक सफ़ाई के पक्ष में हूं। सफ़ाई के बाद राहुल के पास कोई बहाना नहीं बचेगा। तब भी अगर कांग्रेस अपने संकट से नहीं उबरी, तो कमल के भीतर से खिल रहे हंसुआ-हथौड़ा थामे पंजे का स्वागत करने की उम्मीद बच ही जाती है।
It would be better if Ahmed Patel loses


