तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा!
जलबिरादरी अब जन घोषणापत्र को देशव्यापी अभियान बनाने की तैयारी में है। अरुण तिवारी का लेख बताता है कि मतदाता खुद अपने विकास की दिशा तय करें....

World Environmental Health Day in Hindi
मतदाता और लोकतंत्र की असली शक्ति: अरुण तिवारी की अपील
- लोक घोषणापत्र की परंपरा और जलबिरादरी की भूमिका
- पानी, पर्यावरण और विकास के लिए जन भागीदारी की जरूरत
- अमेठी से शुरू होगा नया अभियान — जन आकांक्षा से जन घोषणापत्र तक
- सरकारी योजनाओं पर ‘जन निगरानी’ और ‘पब्लिक ऑडिट’ की मांग
- मतदाता परिषदों से सशक्त लोकतंत्र की राह
जलबिरादरी अब जन घोषणापत्र को देशव्यापी अभियान बनाने की तैयारी में है। अरुण तिवारी का लेख बताता है कि मतदाता खुद अपने विकास की दिशा तय करें....
जन घोषणापत्र को अभियान का रूप देने की तैयारी में जलबिरादरी
अरुण तिवारी
हर पांच साल में कोई आकर चुपके से हमारा मत चुरा ले जाता है; कभी जाति-धर्म-वर्ग-वर्ण, तो कभी किसी लोभ, भय या बेईमानी की खिड़की खोलकर और हम जान भी नहीं पाते।
अभी तक पार्टियां ही अपना उम्मीदवार तथा घोषणापत्र के रूप में हमारे अगले पांच वर्ष का भविष्य तय करती रही हैं। यह चित्र उलटना होगा। यह बात मैं पिछले पांच वर्ष से भिन्न मंचों व लेखों के माध्यम से उठाता रहा हूं। 2007 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जलबिरादरी ने कई संगठनों के साथ मिलकर पर्यावरण लोक घोषणापत्र तैयार किया था। हिमाचल प्रदेश के पिछले प्रादेशिक चुनाव में स्थानीय संगठनों ने समग्र विकास की दृष्टि से लोक घोषणापत्र बनकर एक अच्छी पहल की थी। ऐसी ही पहल पिछले दो बार के दिल्ली नगर निगम के चुनावों के दौरान जन चेतना मंच द्वारा की जाती रही है।
उल्लेखनीय है कि जलबिरादरी ने 2013 के प्रादेशिक चुनावों से पहले लोक जल घोषणापत्र बनाकर राजनीतिक दलों के समक्ष रखा था। इसमें नदी की सुरक्षा हेतु उसकी जमीन को चिन्हित व अधिसूचित करने, रिवर-सीवर को अलग रखने, प्रवाह का मार्ग बाधा मुक्त करने तथा नदी जल व रेत का अति दोहन रोकने की बात जोर-शोर से उठाई गई थी। नदी जलग्रहण, क्षेत्र विकास तथा जल सुरक्षा अधिनियम प्रमुख मांग की तरह दर्ज थे। कहा गया था कि भूजल की सुरक्षा लाइसेंस अथवा जल नियामक आयोगों की बजाय जन सहमति से भूजल निकासी की गहराई सुनिश्चित कर की जाय। दिलचस्प है कि कांग्रेस, भाजपा, आम आदमी पार्टी और वामदलों के पधारे प्रतिनिधियों ने उस पर सहमति तो जताई थी, लेकिन उनमें से कुछ बिंदुओं को शामिल करने में दिलचस्पी सिर्फ आम आदमी पार्टी ने ही दिखाई थी। बावजूद इसके यह प्रयोग अब रंग ला रहा है। जरूरत है कि हम इसे आगे बढ़ाने में सहयोगी बने।
समय आ गया है कि हम मतदाता अब खुद तय करें कि हमें अपने क्षेत्र का कैसा विकास, कैसा जीवन और कैसा पानी चाहिए ? समय आ गया है कि हर चुनाव से पहले सामुदायिक रूप से एकत्र होकर पिछले पांच सालों की योजना और व्यवहार का सच्चा आकलन करें। लोक घोषणा पत्र के रूप में अपने क्षेत्र के विकास को लेकर योजनाओं और अपेक्षाओं का खाका हम मतदाता खुद तैयार करें। सभी उम्मीदवार व पार्टियों को बुलाकर उनके समक्ष लोक घोषणा पत्र पेश करें। उनसे संकल्प लें और जीतकर आये जनप्रतिनिधि को उसके संकल्प पर खरे उतरने को न सिर्फ विवश करें, बल्कि सहयोग भी करें।
उल्लेखनीय है कि आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर जल बिरादरी ने पानी समेत विकास के अन्य मसलों पर लोक घोषणापत्र तैयार करने को एक अभियान के रूप में पूरे देश में ले जाने का फैसला किया है। सूचना मिली है कि आगामी 19 फरवरी को जलबिरादरी की अमेठी इकाई अपना जल घोषणापत्र जारी करेगी। उत्तराखण्ड के पानी, पर्यावरण तथा समाज की व्यापक समझ रखने वाले एक श्री सुरेश भाई की टीम ने जनाकांक्षा को जन घोषणापत्र प्रारूप के रूप में तैयार किया है। संस्थाओं द्वारा बनाये जन घोषणापत्र प्रारूप जनता के न होकर, संस्थाओं के घोषणापत्र होकर न रह जायें; इसके लिए वह इसे जनता के बीच लेकर जाने की तैयारी में हैं। उसके बाद सभी प्रमुख पार्टियों के समक्ष रखेंगे।
क्या यह उचित नहीं कि हम सभी अपनी-अपनी लोकसभा का लोक घोषणापत्र बनाकर आने वाले उम्मीदवारों को आइना दिखाने का काम शुरू करें ? शायद जरूरत इससे और आगे जाने की भी है। जरूरत न सिर्फ अपने इलाके के विकास का नक्शा खुद तैयार करने की है, बल्कि जरूरी है कि सरकारी योजनाओं का सफल क्रियान्वयन सुनिश्चित करने और कराने में भी अपनी भूमिका सुनिश्चित करें। उनके उपयोग-दुरुपयोग व प्रभावों की कड़ी निगरानी खुद रखें - जन निगरानी ! सरकारी योजनाओं के जरिए हमारे ऊपर खर्च होने वाली हर पाई का हिसाब मांगे। ’पब्लिक ऑडिट’ यानी जन-अंकेक्षण करें। यदि ग्रामवासी हर निर्णय की चाबी ग्रामप्रधान को सौंपकर सो जायें, तो वह हर पांच साल में एक गाड़ी बनायेगा ही। तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा!
जाहिर है कि ऐसा करना पांच साल बाद जनप्रतिनिधियों के आकलन में भी हमारी मदद करेगा। किंतु यह तभी संभव है, जब हमारे लिए बनी योजनाओं की जानकारी हमें खुद हो। उनमें जनप्रतिनिधित्व, अधिकारी और खुद की भूमिका को हम जानें। हम मतदाताओं की सकरात्मकता, सजगता, समझदारी और संगठन से ये सब संभव है। देशव्यापी स्तर पर निष्पक्ष मतदाता परिषदों का गठन कर यह किया जा सकता है। यह रास्ता, भारतीय लोकशाही पर हावी राजशाही मानसिकता को बाहर का रास्ता दिखा सकता है। लोक उम्मीदवारी का मार्ग भी इसी से प्रशस्त होगा। आइये! प्रशस्त करें।
अरुण तिवारी, लेखक प्रकृति एवम् लोकतांत्रिक मसलों से संबद्ध वरिष्ठ पत्रकार एवम् सामाजिक कार्यकर्ता हैं।


