अभिषेक श्रीवास्तव

कुछ महीने पहले आशुतोष गुप्‍ता से मुलाकात हुई थी। आम आदमी वाले। पूर्व पत्रकार। बात होने लगी तो किशन पटनायक का जि़क्र आया। बोले- "कौन किशन पटनायक? आखिर किशन पटनायक हैं कौन? एक पत्रिका ही तो निकालते थे?"

मैंने कहा भाई साब, ऐसा न कहिए, आप मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं। मैंने उन्‍हें गंधमार्दन के ऐतिहासिक आंदोलन की याद दिलाई।

इस पर वे बोले- "अभिषेकजी, ये सब छोटे-छोटे बुलबुले हैं।"

आम आदमी पार्टी के भीतर शीर्ष नेतृत्‍व के स्‍तर पर अज्ञानता और अहंकार मिश्रित अंधकार की यह हालत तब थी जब किशन पटनायक के स्‍वयंभू मानस पुत्रों में एक योगेंद्र यादव इस विचारधारा-रहित पार्टी के काडरों को विचारधारा और राजनीति की ट्रेनिंग देकर बाहर धकियाए जा चुके थे। आशुतोष जैसे पत्रकार और नए-नवेले नेता को वे ये तक नहीं सिखा सके कि जानें या न जानें, लेकिन किशन पटनायक को कम से कम 'पत्रिका निकालने वाला' तो न ही कहें।

आज योगेंद्र यादव स्‍वराज इंडिया के वॉट्सएप ग्रुप में दांय-दांय मैसेज भेज रहे हैं और ट्वीट मार रहे हैं कि किशन पटनायक को टाइम्‍स ऑफ इंडिया के पत्रकारों ने नक्‍सली लिख दिया और किशनजी समझ बैठे। किशन पटनायक को नक्‍सली बता देना कोई पत्रकारीय चूक नहीं है। ऐसा जान-बूझ कर किया गया है। कल ही ओडिशा के नियमगिरि से एक डोंगरिया कोंढ आदिवासी लड़की को नक्‍सली बताकर गिरफ्तार किया गया था।

गृह मंत्रालय नियमगिरि आंदोलन को अपनी रिपोर्ट में माओवादी करार दे चुका है। ज़ाहिर है, माओवाद वहां मंगल ग्रह से तो टपका नहीं। वह इलाका समाजवादी जन परिषद की राजनीति का गढ़ रहा है। किशन पटनायक का पुराना क्षेत्र है। आज भी लिंगराज जैसे कद्दावर नेता वहां डटे हुए हैं। सजप का वर्तमान दूषित करने के लिए ज़रूरी है कि चुपके से उसके अतीत को भी कलंकित कर दिया जाए।

अब भी वक्‍त है। योगेंद्र यादव को अपने सीने में धधकती कथित अपमान की ज्‍वाला पर थोड़ा पानी छिड़कना चाहिए। केजरीवाल से प्रतिशोध की आंच को सिम पर करना चाहिए और जितना ज्ञान जिंदगी भर हासिल किए हैं, उसे सामान्‍य लोगों के बीच बांटने में लग जाना चाहिए। दुख जताने से कुछ नहीं होगा। धीरे-धीरे आपके सारे नायक छीन लिए जाएंगे और बदनाम कर दिए जाएंगे। फिर योगेंद्र यादव के पास घर वापसी का रास्‍ता भी नहीं रह जाएगा।

Web Title: Kishanji case: There is still time, otherwise Yogendra Yadav will not have any way to return home