लाम की मानिंद हैं गेसू मेरे घनश्याम के/ है वही काफिर जो न माने इस लाम को
लाम की मानिंद हैं गेसू मेरे घनश्याम के/ है वही काफिर जो न माने इस लाम को

जसबीर चावला
लाम की मानिंद हैं गेसू मेरे घनश्याम के
है वही काफिर जो न माने इस लाम को
यह शे’र ताज बीबी का रचा हुआ माना जाता है। कुछ जगह इसके रचयिता 'चकबस्त' भी माने गए हैं, लेकिन अधिकांश लोग ताज बीबी के नाम पर सहमत हैं।
'चकबस्त' को पाकिस्तान में एक मुशायरे में न्योता दिया गया था और यह मिसरा दिया गया था - है वही काफिर जो न माने इस्लाम को
तो चकबस्त जी ने अपनी हाजिरजवाबी से लिखा था
लाम की मानिंद हैं गेसू मेरे घनश्याम के
है वही काफिर जो न माने इस लाम को
इस शेर का मजा लाम शब्द के दो उपयोगों में है उर्दू में “लाम” अक्षर (यानि हिन्दी का “ल”) ل के आकार का होता है। भगवान कृष्ण के गेसू (बाल) भी इसी आकार में मुड़ कर घुंघराले दिखते हैं.
- उर्दू में लाम ل के आकार का होता है कृष्ण के बाल** भी इसी तरह मुड़े हुए थे.
बहरहाल शेर का आनंद लीजिये.
जसबीर चावला


