पूर्व न्यायाधीशों ने अमित शाह से कहा– सभ्यता और गरिमा के साथ करें बयानबाज़ी
पूर्व न्यायाधीशों ने सुप्रीम कोर्ट के सलवा जुडूम फैसले की गलत व्याख्या करने वाली अमित शाह की टिप्पणी की निंदा की

18 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों और वरिष्ठ वकीलों ने सलवा जुडूम फैसले पर शाह की टिप्पणी को बताया गलत व्याख्या
- पूर्व न्यायाधीशों ने अमित शाह को सभ्यता और गरिमा की नसीहत दी
- सलवा जुडूम फैसले पर अमित शाह की टिप्पणी पर पूर्व जजों की प्रतिक्रिया
- सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों ने अमित शाह के बयान की निंदा की
पूर्व न्यायाधीशों ने अमित शाह से कहा-सभ्यता और गरिमा के साथ रहें
पूर्व न्यायाधीशों ने सुप्रीम कोर्ट के सलवा जुडूम फैसले की गलत व्याख्या करने वाली अमित शाह की टिप्पणी की निंदा की
नई दिल्ली, 25 अगस्त 2025. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों के एक समूह ने वरिष्ठ वकीलों के साथ एक संयुक्त बयान जारी कर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर सलवा जुडूम मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2011 के फैसले की "गलत व्याख्या" करने का आरोप लगाया है। यह फैसला न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी ने लिखा था, जो उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए इंडिया गठबंधन द्वारा समर्थित उम्मीदवार हैं।
हस्ताक्षरकर्ताओं ने शाह की सार्वजनिक टिप्पणी को "दुर्भाग्यपूर्ण" बताया और ज़ोर देकर कहा कि सलवा जुडूम का फ़ैसला, स्पष्ट रूप से या परोक्ष रूप से, नक्सलवाद या उसकी विचारधारा का समर्थन नहीं करता है।
बयान में कहा गया है, "किसी उच्च राजनीतिक पदाधिकारी द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की पूर्वाग्रहपूर्ण गलत व्याख्या से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आंच आ सकती है।"
लाइव लॉ की खबर के मुताबिक सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश कुरियन जोसेफ, मदन बी लोकुर और जे चेलमेश्वर सहित 18 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के समूह ने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत के उपराष्ट्रपति पद सहित सभी राजनीतिक अभियानों में वैचारिक बहसें शामिल हो सकती हैं, लेकिन उन्हें "सभ्यता और गरिमा के साथ" चलाया जाना चाहिए। बयान में नाम-गाली से बचने की सलाह दी गई और उम्मीदवारों की "तथाकथित विचारधारा" पर हमला करने के प्रति आगाह किया गया।
शाह ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रेड्डी पर नक्सलवाद का "समर्थन" करने का आरोप लगाया था। उन्होंने दावा किया था कि अगर सलवा जुडूम पर फैसला नहीं आता, तो वामपंथी उग्रवाद 2020 तक ही खत्म हो गया होता।
हस्ताक्षरकर्ताओं में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए.के. पटनायक, अभय ओका, गोपाल गौड़ा, विक्रमजीत सेन, कुरियन जोसेफ, मदन लोकुर और जे. चेलमेश्वर शामिल हैं। गोविंद माथुर, एस. मुरलीधर और संजीव बनर्जी सहित उच्च न्यायालयों के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों के साथ-साथ अंजना प्रकाश, सी. प्रवीण कुमार, ए. गोपाल रेड्डी, जी. रघुराम, के. कन्नन, के. चंद्रू, बी. चंद्रकुमार और कैलाश गंभीर जैसे कई सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय न्यायाधीशों ने भी इस बयान का समर्थन किया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े और प्रो. मोहन गोपाल भी हस्ताक्षरकर्ताओं में शामिल हैं।
जैसा कि आप जानते हैं कि 2011 में न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा दिए गए सलवा जुडूम फैसले में छत्तीसगढ़ में माओवादियों से लड़ने के लिए आदिवासी युवकों को विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) के रूप में हथियारबंद करने की प्रथा को असंवैधानिक घोषित किया गया था, तथा इसे संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन माना गया था।


