सुप्रीम कोर्ट में कांवड़ यात्रा मार्ग पर भोजनालयों में QR कोड अनिवार्यता पर सुनवाई: अल्पसंख्यकों को लक्षित करने का आरोप

  • सुप्रीम कोर्ट में कांवड़ यात्रा मार्ग के QR कोड निर्देश पर सुनवाई
  • याचिकाकर्ताओं का तर्क: धार्मिक पहचान उजागर कर भेदभाव
  • यूपी सरकार की दलील: श्रद्धालुओं की भावनाओं की रक्षा और कानूनी अनुपालन
  • न्यायमूर्ति सुंदरेश की टिप्पणी और मध्य मार्ग की तलाश
  • QR कोड को लेकर न्यायपालिका की असहमति और संवैधानिक चिंता

कांवड़ यात्रा और धार्मिक पहचान की राजनीति पर बहस

सुप्रीम कोर्ट में उस याचिका पर सुनवाई हुई जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कांवड़ यात्रा मार्ग पर भोजनालयों में मालिकों के नाम सहित QR कोड अनिवार्य करने के आदेश को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(g), और 21 का उल्लंघन बताया। जानिए कोर्ट का अंतरिम फैसला और दोनों पक्षों की दलीलें...

नई दिल्ली, 22 जुलाई 2025. सर्वोच्च न्यायालय में हुई सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों में मालिकों के नाम के साथ क्यूआर कोड प्रदर्शित करने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं, जिनका प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी और वरिष्ठ अधिवक्ता ए.एम. सिंघवी कर रहे हैं, का आरोप है कि यह निर्देश अल्पसंख्यक समुदायों को लक्षित करता है और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। उत्तर प्रदेश सरकार, जिसका प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी कर रहे हैं, का तर्क इससे उलट है। न्यायालय के अंतरिम आदेश में लाइसेंस प्रदर्शित करना अनिवार्य है, लेकिन अन्य मुद्दों को भविष्य के विचार के लिए खुला छोड़ दिया गया है। यात्रा की समाप्ति तिथि को सुनवाई का अंतिम दिन बताया गया है।

कांवड़ यात्रा 2025 के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी किए गए निर्देश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की। यह निर्देश यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों में मालिकों के नाम का खुलासा करने वाले QR कोड अनिवार्य करने से संबंधित था। न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और एनके सिंह की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की।

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी पेश हुए।

उत्तराखंड के वकील ने बताया कि इसी तरह के मुद्दे पर कल सभी राज्यों को नोटिस जारी किए गए थे।

वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंहवी (याचिकाकर्ताओं की ओर से) ने तर्क दिया कि पिछले साल दिए गए तर्कसंगत आदेश का इस साल की यात्रा के लिए उल्लंघन किया जा रहा है और यह आदेश अल्पसंख्यक समुदाय के स्वामित्व वाले प्रतिष्ठानों को अलग-थलग करता है, भले ही वे केवल शाकाहारी भोजन बेचते हों।

उन्होंने कहा कि यह पहचान की राजनीति है और संविधान के मूल ढांचे पर सीधा हमला है।

अभिषेक मनु सिंहवी ने यह भी तर्क दिया कि मेनू कार्ड के बजाय नाम दिखाना भेदभावपूर्ण है और ग्राहकों को मेनू कार्ड देखकर ही भोजन चुनना चाहिए, नाम देखकर नहीं।

सिंहवी ने कहा कि मुख्यमंत्री के प्रेस नोट के बाद QR कोड लाया गया है, जो जवाबदेही बढ़ाने के नाम पर अत्यंत चालाकी भरा कदम है।

न्यायमूर्ति सुंदरेश ने कहा कि वे एक मध्य मार्ग खोज रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई रेस्टोरेंट साल भर शाकाहारी भोजन परोसता है तो कोई समस्या नहीं है, लेकिन अगर केवल यात्रा के दौरान ही शाकाहारी भोजन परोसने लगता है तो उपभोक्ता को पता होना चाहिए।

अहमदी ने कहा कि यात्रा के दौरान इस क्षेत्र में सभी प्रतिष्ठान केवल शाकाहारी भोजन परोसते हैं और पहले मांसाहारी भोजन परोसने की जानकारी देने की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि मालिक और कर्मचारियों की पहचान और धार्मिक पहचान का भोजन से कोई लेना-देना नहीं है।

अंततः अदालत ने आदेश दिया कि सभी होटल मालिकों को कानूनी रूप से आवश्यक लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाण पत्र प्रदर्शित करना होगा।

मालिक का नाम और QR कोड दिखाने के मुद्दे पर अदालत ने कोई आदेश नहीं दिया और अन्य सभी मुद्दों को खुला रखा। याचिकाओं का निपटारा कर दिया गया।

याचिकाकर्ताओं ने यूपी सरकार के निर्देश में किन विशिष्ट संवैधानिक अनुच्छेदों का उल्लंघन बताया ?

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यूपी सरकार का निर्देश संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(g) और 21 का उल्लंघन करता है।

यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों में मालिकों के नाम प्रदर्शित करने वाले क्यूआर कोड को अनिवार्य करने के पीछे उत्तर प्रदेश सरकार के प्रतिनिधि द्वारा क्या कारण बताया गया ?

उत्तर प्रदेश सरकार के प्रतिनिधि ने कहा कि वे केंद्रीय कानून का पालन कर रहे हैं और श्रद्धालुओं की भावनाओं का भी ध्यान रखना होगा। क्यूआर कोड अनिवार्य करने का कोई अन्य कारण स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया।

उच्चतम न्यायालय ने अंतरिम आदेश दिया कि सभी होटल मालिकों को कानूनी रूप से आवश्यक लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाण पत्र प्रदर्शित करना होगा। मालिक के नाम और क्यूआर कोड प्रदर्शित करने के मुद्दे पर अदालत ने कोई आदेश नहीं दिया।

सुनवाई के अंत में जस्टिस सुंदरेश ने कहा कि आप मांसाहारी होटल हो सकते हैं, लेकिन वहाँ प्रदर्शन होना चाहिए। हम यह विकल्प उपभोक्ता पर छोड़ देंगे। इस पर एड. अहमदी ने कहा कि ज़मीनी स्तर पर जब इस तरह का संदेश जाता है। बीट में टोकते हुए जस्टिस सुंदरेश ने कहा कि हम इस सब में नहीं जाना चाहते। हम केवल एक अंतरिम आदेश पारित करेंगे। अगर हम कोई आदेश पारित भी करते हैं, तो वह निष्फल होगा।

जब एड. अहमदी ने कहा कि अगर धर्म को पिछले दरवाज़े से अछूत माना जाता है, इस पर फुर टोकते हुए जस्टिस सुंदरेश ने कहा कि हम इस पर कुछ नहीं कहेंगे। मार्क्स ने सही कहा है कि धर्म लोगों के लिए अफीम है।

ए़ड. रोहतगी ने कहा कि जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं केवल केंद्रीय कानून का पालन कर रहा हूँ। इस पर जस्टिस सुंदरेश ने कहा इसे अभी अकादमिक न बनाएँ।

रोहतगी ने जवाब दिया कि एक याचिकाकर्ता प्रोफ़ेसर हैं, महुआ मोइत्रा पश्चिम बंगाल से सांसद हैं, और दूसरा एक एनजीओ है। सैकड़ों लोग जो सड़क पर हैं, वे नहीं आए हैं। वे क्यों नहीं आए हैं?

जस्टिस सुंदरेश ने कहा कि हम इस सब में नहीं जा रहे हैं।

इसके बाद पीठ ने आदेश सुनाते हुए कहा- हमें सूचित किया गया है कि आज यात्रा का अंतिम दिन है। किसी भी स्थिति में, यह यात्रा समाप्त होने की संभावना है। इस समय, हम सभी संबंधित होटल मालिकों से अनुरोध करते हैं कि वे वैधानिक रूप से आवश्यक लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदर्शित करने के आदेश का पालन करें। हम अन्य विवादित मुद्दों पर विचार नहीं कर रहे हैं।

एड. अहमदी ने कहा कि मालिक का नाम और क्यूआर कोड का खुलासा नहीं किया जा सकता।

न्यायमूर्ति सुंदरेश ने कहा कि हम इसमें शामिल नहीं हो रहे हैं। अन्य सभी मुद्दे खुले हैं। हम याचिकाओं का निपटारा करते हैं। मुख्य याचिका वहीं होगी। हम आईए का निपटारा करेंगे।