अनुच्छेद 143(1) के तहत राष्ट्रपति ने मांगी सर्वोच्च न्यायालय से राय

  • विधेयकों पर राज्यपाल की निष्क्रियता न्यायिक समीक्षा के अधीन?
  • सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल 2024 के फैसले पर संवैधानिक आपत्ति
  • "समझी गई सहमति" की अवधारणा क्या संविधान विरोधी है?
  • तमिलनाडु और केरल की आपत्तियाँ और अदालत की प्रतिक्रिया
  • अगली सुनवाई 29 जुलाई को, अटॉर्नी जनरल से मांगी गई सहायता

अनुच्छेद 200 और 201 की व्याख्या पर नया संवैधानिक विमर्श

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा अनुच्छेद 143(1) के तहत भेजे गए संदर्भ पर सुनवाई करते हुए केंद्र और सभी राज्यों को नोटिस जारी किया। मामला विधेयकों पर राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा समय पर निर्णय न लेने से संबंधित है। जानिए सुप्रीम कोर्ट का क्या है रुख...

नई दिल्ली, 22 जुलाई 2025. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यपालों द्वारा विधेयकों पर सहमति देने की समयसीमा पर राष्ट्रपति के संदर्भ मामले में केंद्र सरकार और सभी राज्यों को नोटिस जारी किया है। यह संदर्भ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत किया गया है, जो राष्ट्रपति को कानून के प्रश्नों या सार्वजनिक महत्व के मामलों पर न्यायालय की राय मांगने की अनुमति देता है।

यह संदर्भ सर्वोच्च न्यायालय के अप्रैल के उस फैसले को चुनौती देता है जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों द्वारा विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समयसीमा निर्धारित की गई थी और यह भी कहा गया था कि अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की निष्क्रियता न्यायिक समीक्षा के अधीन है। यह फैसला तमिलनाडु राज्य द्वारा दायर एक मामले में आया था, जहाँ अदालत ने कहा था कि अनुच्छेद 200 के तहत समय सीमा की अनुपस्थिति का अर्थ अनिश्चितकालीन देरी की अनुमति देना नहीं है।

न्यायालय ने कहा था कि राज्यपाल को उचित समय के भीतर कार्य करना चाहिए और संवैधानिक मौन का उपयोग लोकतांत्रिक प्रक्रिया को रोकने के लिए नहीं किया जा सकता है। अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपाल को विधेयक पर कार्य करने के लिए समयसीमा तय की गई थी। अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति की शक्तियों के संबंध में, न्यायालय ने कहा था कि उनका निर्णय लेना न्यायिक जांच से परे नहीं है और तीन महीने के भीतर होना चाहिए। यदि इस अवधि से परे कोई देरी होती है, तो कारणों को दर्ज किया जाना चाहिए और संबंधित राज्य को सूचित किया जाना चाहिए।

इस फैसले के बाद, राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने सर्वोच्च न्यायालय को चौदह प्रश्न भेजे थे, जिसमें अदालत द्वारा अनुच्छेद 200 और 201 की व्याख्या पर संवैधानिक चिंताएँ उठाई गई थीं। संदर्भ में तर्क दिया गया है कि न तो किसी अनुच्छेद में अदालत को समयसीमा निर्धारित करने का अधिकार देने वाला कोई स्पष्ट प्रावधान है, और न ही देरी की स्थिति में "समझी गई सहमति" की अवधारणा संविधान द्वारा परिकल्पित है। संदर्भ ने सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले पर आपत्ति जताई जिसमें "समझी गई सहमति" की अवधारणा पेश की गई थी यदि राष्ट्रपति या राज्यपाल निर्धारित समय के भीतर विधेयक पर कार्य करने में विफल रहते हैं। संदर्भ में तर्क दिया गया है कि ऐसी अवधारणा संवैधानिक ढांचे के विपरीत है।

केरल और तमिलनाडु के वकीलों ने मामले की सुनवाई के दौरान इसकी सुनवाई योग्यता पर आपत्ति जताई।

सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई 29 जुलाई को निर्धारित की है और केंद्र सरकार के शीर्ष कानूनी अधिकारी अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से अदालत को इस मामले में सहायता करने का अनुरोध किया है।