कर्मविपाक सिद्धांत को मानने वाले लोगों का ओबीसी प्रेम एक पाखंड के सिवा कुछ भी नहीं है.
क्या ओबीसी प्रेम एक पाखंड है? कर्मविपाक सिद्धांत और जातीय राजनीति पर गहरी पड़ताल डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर, धर्म परिवर्तन और हिंदू धर्म की सीमाएं क्या ओबीसी प्रेम पाखंड है? नरेंद्र मोदी, मनुस्मृति, गौतम अदानी घोटाला और जातीय राजनीति की सच्चाई को गहराई से समझें। जानें संघ, आरएसएस और भाजपा की रणनीति। नरेंद्र मोदी भले...

love for obcs by those who believe in the karmavipak theory is nothing but hypocrisy
क्या ओबीसी प्रेम एक पाखंड है? कर्मविपाक सिद्धांत और जातीय राजनीति पर गहरी पड़ताल
- ओबीसी राजनीति और कर्मविपाक सिद्धांत का अंतर्विरोध
- नरेंद्र मोदी, ओबीसी पहचान और भाजपा की राजनीति
- राम मंदिर, मनुस्मृति और जातीय श्रेष्ठता की राजनीति
- गौतम अदानी, आर्थिक घोटाले और जातीय पहचान का खेल
- बीजेपी का इतिहास: मंडल आयोग से जातीय जनगणना तक
- संघ (RSS) और समता बनाम समरसता की रणनीति
डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर, धर्म परिवर्तन और हिंदू धर्म की सीमाएं
क्या ओबीसी प्रेम पाखंड है? नरेंद्र मोदी, मनुस्मृति, गौतम अदानी घोटाला और जातीय राजनीति की सच्चाई को गहराई से समझें। जानें संघ, आरएसएस और भाजपा की रणनीति।
नरेंद्र मोदी भले ही बायोलॉजिकल एक्सिडेंट से तेली जाति में पैदा हुए होंगे, लेकिन उनके खुद के कथनों के अनुसार वह अपने घर से उम्र के सत्रह साल के थे उस समय निकल गए थे. भारतीय जनता पार्टी का मातृ संगठन आरएसएस के प्रचारक थे उस संगठन के प्रमुख श्री मोहन भागवत अयोध्या के शिलान्यास के कार्यक्रम में देश के प्रधानमंत्री, जो आजकल अपने आपको ओबीसी कहलाने में गर्व महसूस करते हैं, ऐसा सुना है. इनकी उपस्थिति में मनुस्मृति का श्लोक जिसमें ब्राह्मण का महिमामंडन करने का संपूर्ण आशय वाले
"एतद देशप्रसूतस्य सकाशाद अग्रजन्मनः !
स्वं स्वं चरित्र शिक्षेरन पृथिव्यां सर्वमानवाः! ( मनुस्मृति 2-20 ) मतलब समस्त पृथ्वी के लोगों ने ब्राह्मणों (अग्रजन्मनः) से अपने कर्तव्यों का पालन करना सिखना चाहिए, क्या यह समस्त गैरब्राह्मण समाज जो कि 97% है उसका अपमान नहीं किया है ? कौन सा ब्राह्मण विश्व का मार्गदर्शन कर रहा है ? अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी समस्त यूरोपीय देशों से लेकर चीन, जापान कोरिया तथा वियतनाम और दक्षिण एशियाई तथा पश्चिम एशियाई देशों की तरफ देखने से कौन सा ब्राह्मण वहां मार्गदर्शन कर रहा है ?
रही बात भारत की और उसका मार्गदर्शन अगर ब्राह्मणों द्वारा हुआ है, तो आज यह स्थिति नहीं होती. हजारों वर्ष गुलामों की तरह रहना यह अगर ब्राह्मणों के मार्गदर्शन के रहते हुए हुआ है, तो आज ब्राह्मणों को हिंदू धर्म की परंपरा के अनुसार जबरदस्त प्रायश्चित करना चाहिए. और कम-से-कम अपने मार्गदर्शन की भूमिका को छोड़कर दूसरों का मार्गदर्शन लेना चाहिए. क्योंकि मनुस्मृति के अनुसार अगर पांच हजार वर्ष मार्गदर्शन करके भारतीय समाज की अवस्था जानवरों से भी भयानक बनाने के लिए जिम्मेदार आप लोग हो. और यह दलित ओबीसी का पचड़ा आपकी दी हुई जातीय संस्कृति की देन है. इसलिए आज देश में डॉ. राम मनोहर लोहिया ने सौ में पावे पिछड़ा साठ के सिद्धांत के तहत उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड तथा कुछ हद तक छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र, कर्नाटक आंध्र, तेलंगाना तथा तामिलनाडू और केरल जैसे राज्यों की राजनीति ओबीसी के केंद्र में जारी है. वह तो उत्तर भारत में आप ब्राह्मणों ने ओबीसी राजनीति को शह देने के लिए ही बाबरी मस्जिद - रामजन्मभूमि का मुद्दा उठाया है. और अब राम मंदिर बनने के बाद क्या ? और गौतम अदानी जैसे लोगों को खुद बड़ा करने के लिए सभी नियम कानून ताक पर रखकर जो काम किया है उसका भंडाफोड़ हो चुका है. और इसलिए अब अचानक ही ओबीसी के अपमान की बात कहाँ से आती है ?
यह जो भगोड़े लोग हैं जिसमें विजय माल्या छोड़ कर सबके सब गुजरात के और उसमें कोई मोदी है, तो कोई चौकसी, इनके नाम लेने से अगर आप किसी को जातिवादी बोलते हो तो फिर आप चोरों को छुपाने या बचाने के लिए यह सब और मुख्यतः गौतम अदानी नाम के आदमी को बचाने के लिए ही यह तमाशा कर रहे हो.
जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने लाइव टेलिकास्ट किया है, जिस पर मैंने आवाज इंडिया टीवी चैनल पर मुलाकात दी है और चौथी दुनिया में लिखा भी है. मतलब सामने एक भारत के सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति, भले वह जन्मना ब्राह्मण नहीं है. और दूसरी तरफ उस प्रदेश के मुख्यमंत्री भी शायद ब्राह्मण नहीं थे और जिस रामलला के मंदिर का शिलान्यास कर रहे थे. वह भी ब्राह्मण नहीं थे. और उन्होंने इस श्लोक को वहां पर कहने का औचित्य क्या था ? खुलेआम ब्राह्मण जाति के श्रेष्ठत्व का श्लोक अयोध्या के शिलान्यास के समय उच्चारण भारत के प्रधानमंत्री की उपस्थिति में किया जाता है. उस समय कहा गया ओबीसी का स्वाभिमान ? जिस शिलान्यास कार्यक्रम का समस्त ईलेक्ट्रॉनिक मिडिया द्वारा प्रसारण किया जा रहा था.
मुझे गौतम अदानी की जाति मालूम नहीं है, लेकिन उनके आर्थिक घोटाले को उजागर किया तो वह बोलता है भारत पर हमला. हो सकता कि वह सवर्ण जाति का होगा. अन्यथा 14 जनवरी से ही ओबीसी के ऊपर हमला बोला जा सकता था. और किसी ने कोई नाम लिया तो वह ओबीसी का अपमान. फिर तो लालू प्रसाद यादव के परिवार के सभी सदस्यों को, जिसमें गर्भवती बहू को भी नहीं बख्शा और बेटियां, बेटे और राबड़ी देवी के साथ क्या आए दिन ईडी तथा सीबीआई के लोग आरती उतारने के लिए जा रहे हैं? लगभग नौ सालों से लगातार उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को परेशान किया जा रहा है. शायद गौतम अदानी का आर्थिक घोटाले के आकड़े लालू प्रसाद यादव के घोटालों के सामने राई के दानों जैसे भी नहीं हैं. और यह सिर्फ गौतम अदानी के लिए ही सब कुछ किया जा रहा है. पार्टी विद डिफरंस का दावा करने वाली पार्टी बीजेपी गौतम अदानी के मामले में बुरी तरह से फंस गई है. क्योंकि राहुल गांधी के विदेश यात्रा की वार्ता से लेकर सूरत के कोर्ट के फैसले को लेकर तुरंत ही लोकसभा की सदस्यता से हटाने का फैसला किस बात का प्रतीक है ?
महाराष्ट्र के एक स्वतंत्र विधायक हैं. ओमप्रकाश बाबाराव कडू उर्फ बच्चू कडू नाम के, उन्हें कोर्ट ने कब का उनकी विधानसभा की सदस्यता से हटाने का फैसला दिया है. और वह आज भी महाराष्ट्र के विधानसभा में बैठ रहे हैं.
गुजरात के दंगों में कौन लोग मारे गए ? किसी जमाने के दलित पिछड़ी जातियों के लोगों ने हिंदू धर्म से अस्पृश्यता से तंग आकर ही धर्म परिवर्तन किया है. और मुस्लिम समाज को अपनाने के बाद भी वह पिछड़े ही हैं. आजकल नरेंद्र मोदी जी खुद पसमांदा मुस्लिम समुदाय के लोगों को स्नेह देने का उपदेश दे रहे हैं. और मैंने लिखा कि स्नेह के साथ सुरक्षा भी देने की आवश्यकता है. वह कौन लोग हैं ? जिन्होंने गुजरात के दंगों में अपनी जाने गवाई है ?
और राणा अय्यूब की गुजरात फाईल्स नाम की किताब में जो गुजरात दंगे के पहले नरेंद्र मोदी को मारने के लिए विशेष रूप तथाकथित फिदायीन हमलावरों के एन्काउंटर करने वाले जिसमें 19 साल की इशरत जहाँ भी थी। तत्कालीन गुजरात एटीएस के प्रमुख गिरीश सिंघल दलित थे. वैसा ही सोहराबुद्दीन और उनकी पत्नी कौसर बी तथा तुलसी प्रजापति को एन्काउंटर करने के लिए तत्कालीन एटीएस चीफ डी जी वंजारा नोमेडिक तथा पांडियान, अमिन परमार को राज्य की तरफ से इस्तेमाल किया और सजा सुनाई गई है. यह सभी ओबीसी जाति के लोग थे. यह भी वास्तविक स्थिति के रहते हुए, अब अचानक राहुल गांधी की आड़ में ओबीसी की रट लगाते हुए देखकर मुझे भारतीय जनता पार्टी के लोगों के दिमाग पर तरस आ रहा है.
जो लोग जातीय जनगणना के विरोध में बिहार सरकार की आलोचना कर रहे हैं. और खुद राष्ट्रीय स्तर पर जातियों को लेकर जनगणना करने के लिए टाल-मटोल कर रहे हों, उन्हें ओबीसी के अपमानित होने की बातें करते हुए देखकर मुझे हंसी आ रही है. और वी पी सिंह ने जब मंडल की सिफारिशों को लागू करने का फैसला लिया था तो बीजेपी ने उनकी सरकार का समर्थन वापस ले लिया है. तब ओबीसी प्रेम बाबरी मस्जिद विध्वंस के खंडहरों में दफन किया था ? इतिहास में बीजेपी की यह भूमिका हमेशा - हमेशा के लिए दर्ज हो चुकी है. और ओबीसी आरक्षण के खिलाफ जो आंदोलन चलाया गया था, उसके पीछे कौन लोग थे ? आरक्षण के खिलाफ गुजरात का रिकॉर्ड सत्तर के दशक से ही बहुत खराब है. सबसे पहले भारत में आरक्षण के खिलाफ आंदोलन की शुरूआत गुजरात से शुरु हुई है. इसलिए किसी प्रियंका गांधी ने कुछ कहा तो तुरंत ओबीसी का अपमान। राहुल गांधी के वक्तव्य में नाम है, किसी खास जाति संप्रदाय का उल्लेख नहीं है. बीजेपी तथा संघ परिवार के लोग घोर जातिवादी होने के बावजूद आज ओबीसी के अपमान की बात कर रहे हैं. संघ की स्थापना ही उच्च जाति का शासन हमेशा से चलता रहने के लिए विशेष रूप से किया गया है. 1920 के नागपुर कांग्रेस में महात्मा गाँधी जी के अश्पृश्यता के विरोध में प्रस्ताव पारित होने की घटना से हेडगेवार, डॉ. मुंजे, परांजपे जैसे हिंदुत्ववादी लोगों को लगा कि अब कांग्रेस में रहने का कोई मतलब नहीं है. और इसीलिये 1925 के दशहरे के दिन संघ की स्थापना की गई है.
उत्तर प्रदेश के दलित और ओबीसी महिलाओं के अत्याचार की घटनाएं को लेकर प्रशासन ने कैसे - कैसे कारनामे किए हैं ? ताजा हाथरस के वुलगढी की बेटी की घटना को लेकर क्या किया ? भारतीय जनता पार्टी खुद भारत के सवर्ण जातियों की पार्टी है. उसे कब से ओबीसी और दलितों का प्रेम होने लगा ? आज सौ साल हो चुके संघ को लेकिन भारत के एक भी दलितों के अत्याचार के मामले में संघ ने कोई पहल नहीं की है. नागपुर से 70 किलोमीटर दूर खैरलांजी की जघन्य घटना की जगह पर जाकर देखने का कष्ट नहीं किया. डॉ. बाबा साहब अंबेडकरजी के नाम औरंगाबाद के विश्वविद्यालय के देने के लिये नागपुर से निकाला गया लॉंग मार्च में शामिल होने की बात तो दूर उसके समर्थन में कोई निवेदन तक नहीं है.
संघ ने डॉ. बाबा साहब अंबेडकरजी के समता शब्द की जगह पर समरसता शब्द का इस्तेमाल शुरू किया है. क्योंकि समता में एक-दूसरे के साथ बराबरी का दर्जा देने की बात है. समरसता मतलब तुम जिस जाति में पैदा हुए हो उसी में रहते हुए समरस हो जाओ. ऐसे पाखंडियों के मुँह पर ओबीसी और दलितों की बात देखकर मुझे रह- रह कर हंसी आ रही है. और सबसे आखिरी बात...
1936 में हिंदू धर्म की जाति व्यवस्था से तंग आकर ही डॉ. बाबा साहब अंबेडकरजी ने येवला की सभा में घोषित किया कि "मैं भले ही हिंदू धर्म में पैदा हुआ, लेकिन मरने के पहले हिंदू धर्म का त्याग कर के ही मरूंगा." और बीस साल के बाद, इसी नागपुर में दीक्षाभूमि पर अपने लाखों अनुयायियों के साथ 1956 के दशहरे के दिन बौद्ध धर्म में धर्मांतरण किया. भारत की जाति व्यवस्था के और तथाकथित हिंदू धर्म के ठेकेदारों के मुँह पर डॉ. बाबा साहब अंबेडकरजी ने सैकड़ों सालों के बाद. अपनी कृति के द्वारा झन्नाटेदार तमाचा मारा है. क्योंकि उनकी घोषणा को बीस साल होने के बीच के समय में तथाकथित हिंदू धर्म के ठेकेदारों ने उन्हें मनाने के लिए कोई सार्थक पहल करने का प्रयास किसी ने भी किया नहीं है. क्योंकि हजारों सालों से दलितों और पिछड़ी जाति के लोगों को हिंदू धर्म छोड़कर जाने की परवाह कभी भी नहीं की है. उल्टा हिंदू धर्म का कचरा साफ हो रहा है. इसलिए कुछ लोगों ने कभी वापस आने की इच्छा व्यक्त की है, जिसमें बैरिस्टर मोहम्मद अली जिन्ना के पिता हैं. जो कुछ समय पहले तंग आकर आगाखानी बोहरा धर्म अपना लिए थे. तो उन्हें घरवालों ने कहा कि हमें हिंदू धर्म में ही रहना है. इसलिए वह वापस आने के लिए बोले तो उन्हें कहा गया है कि हिंदू धर्म से जाने का दरवाजा खुला है. लेकिन आने वाले दरवाजे में खुलने का प्रावधान नहीं है. अब घर वापसी का ढकोसला कर रहे हैं. लेकिन लोगों ने पूछा कि अगर हम वापस हिंदू धर्म में आ गए तो कौन सी जाति में डालोगे ? सभी को उच्च जाति में प्रवेश चाहिए जो बंद है. तो निचले स्तर पर ही रहना है, तो क्यों हम अपने पुराने धर्म को छोड़कर इसमें आएंगे ? हिंदू धर्म का पाखंड जब तक कम नहीं होता और तब लोहिया के हिंदू बनाम हिंदू वाली बात बंद नहीं होती है, तब तक हिंदू धर्म का कल्याण संभव नहीं है.
डॉ. सुरेश खैरनार
25 मार्च, 2025 नागपुर.
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