जानिए नाथपंथ के बारे में NATH PANTH – A WAY TO COMMUNAL HARMONY

मई 2011 के अंतिम सप्ताह में मुझे बंगलौर से अल्मास नामक एक महिला का फोन आया। वे चाहती थीं कि मैं 25 व 26 जून को कुर्ग आऊं व गुरूजी (जिन्हें सद्गुरू भी कहा जाता है) के जन्मदिन के अवसर पर आयोजित समारोह में भाग लूं। मुझे 23 जून से 1 जुलाई तक ईरान व 1 से 7 जुलाई तक काबुल आने का निमंत्रण भी था। मेरे स्वास्थ्य के मद्देनजर, मैं एक साथ दो देशों की यात्रा करने में हिचकिचा रहा था। लगभग पंद्रह दिन की यह यात्रा बहुत थकाने वाली होती।

मैंने नाथपंथ के बारे में सुन तो रखा था परंतु उसके बारे में मेरी जानकारी न के बराबर थी। कुछ सोच-विचार के बाद मैंने तय किया कि मैं कुर्ग जाऊंगा। मैंने अपने ईरानी मेजबानों से क्षमायाचना की और उनसे वायदा किया कि मैं उनके अगले कार्यक्रम में अवश्य आऊंगा। अब मुझे लगता है कि मैंने बिलकुल ठीक फैसला किया था। मेरे लिए ऐसे लोगों से मिलना बहुत रोमांचक अनुभव होता है जो शान्ति या सांप्रदायिक सद्भाव के लिए काम कर रहे हों।

Mixed culture believing creed liberates our thinking

मैं मिलीजुली संस्कृति विश्वास करने वाले पन्थों के प्रति अजीब सा आकर्षण महसूस करता हॅँ। ये पंथ हमारी सोच को उदार बनाते हैं और हमें आध्यात्मिक दृष्टि से समृद्ध करते हैं। भारत हमेशा से कई संस्कृतियों का मिलनस्थल रहा है। इस्लाम और हिन्दू धर्म की अंतःक्रिया से अनेक आध्यात्मिक, साहित्यिक व अन्य परंपराएं जन्मी हैं।

The Kurg district of Karnataka is considered communally sensitive.

कर्नाटक का कुर्ग जिला, सांप्रदायिक दृष्टि से संवेदनशील माना जाता है। यह जिला अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए भी प्रसिद्ध है। कुर्ग की प्राकृतिक सुंदरता सचमुच मंत्रमुग्ध करने वाली है। कश्मीर के बाद, शायद यह भारत का सबसे सुंदर इलाका है। कुर्ग के निवासी अलग राज्य की मांग भी करते रहे हैं। भारतीय सेना में अनेक कुर्गी हैं। जनरल थिमय्या भी कुर्ग के ही थे।

नाथ पंथ के सदस्य पूरे देश में हैं परंतु कुर्ग में इस पंथ का एक अलग ही रंग है। पंथ का मुख्यालय मांडीखेरी में है। गुरूजी का जन्मदिन समारोह भी यहीं मनाया जाता है।

कौन हैं सद्गुरु बी. के. सुबय्या Who is Sadhguru B. K. Subayya

समारोह में मेरे अलावा कई अन्य अतिथि भी उपस्थित थे। वर्तमान सद्गुरू बी. के. सुबय्या हैं। वे बहुत सरल स्वभाव के व अत्यंत आध्यात्मिक हैं। यह दिलचस्प है कि गुजरात के खोजा व बोहरा समुदाय भी अपने धर्मगुरू को “सद्गुरू“ के नाम से संबोधित करते थे। बोहरा कवि सैय्यद सादिक अली (Bohra poet Syed Sadiq Ali) ने अपनी गुजराती कविताओं में इस शब्द का अनेक बार इस्तेमाल किया है।

The Nathpanth of the Coorg is a blend of Sufi and Hindu religious traditions.

कुर्ग का नाथपंथ, सूफी और हिन्दू धार्मिक परंपराओं का सम्मिश्रण है। नाथपंथ के संबंध में उपलब्ध साहित्य के अनुसार, पंथ की स्थापना लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व गुरू मछीन्द्रनाथ और उनके शिष्य गोरखनाथ ने की थी। ऐसा कहा जाता है कि गोरखनाथ की प्रेरणा से उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने अपना राजपाट छोड़कर आध्यात्म का वरण कर लिया था। अपने राज्य पर शासन करने की बजाए, विक्रमादित्य ने अपनी प्रजा के दिलों पर राज करना शुरू कर दिया।

Nath Panth from Coorg is truly universal and has embraced several spiritual tradition.

पंथ के एक संत पीर रतननाथ, पैगम्बर मोहम्मद के समकालीन थे। जब उन्होंने पैगम्बर और इस्लाम के बारे में सुना, तो नाथपंथियों के अनुसार, वे मदीना गए और पैगम्बर साहब से मिले। उन्होंने पैगम्बर साहब को योग और हिन्दू धर्म के बारे में बताया और उनसे इस्लाम के संबंध में ज्ञान प्राप्त किया।

सूफियों और योगियों ने एक-दूसरे से संबंध बनाए रखे। नाथपंथियों के अनुसार,

“समय के साथ सूफियों और योगियों के अंर्तसंबंध गहरे होते गए। रिफायिया व कलंदर सूफियों पर, जो मुख्यतः तुर्की, सीरिया व मिस्त्र में रहते थे, घुमंतू योगियों का गहरा प्रभाव पड़ा। दुर्भाग्यवश , वर्तमान साहित्य से योगियों के इतिहास के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिलती। योगियों को जोगी नाम से भी संबोधित किया जाता था। एक स्थान पर कहा गया है कि शेख नसीरउद्दीन चिराग ने समर्पित योगियों को “सिद्ध“ का दर्जा दिया था। सिद्ध, हठयोग में विश्वास करते थे और बाबा फरीद के जमातखाना में एकत्रित लोगों के बीच होने वाली चर्चाओं में वे बहुत रूचि लेते थे।“

इन आधी-अधूरी जानकारियों की पुष्टि अल् बरूनी भी करते हैं। अल् बरूनी, धर्मों के तुलनात्मक अध्ययन के जाने-माने अध्येता थे। उन्होंने पतंजलि की योग विद्या और सूफी विचारधारा में कई समानताएं होने की बात कही है। उन्होंने पतंजलि की पुस्तक का अरबी में अनुवाद भी किया था। अल् बरूनी ने सूफी विचारधारा और भगवद्गीता व सांख्य (पारंपरिक हिन्दू दर्शनशास्त्र की छः शाखाओं में से एक) के बीच समानताओं की चर्चा भी की है।

सद्गुरू के जन्मदिवस समारोह में उनके संक्षिप्त उद्बोधन के पश्चात , सूफियाना गजलें प्रस्तुत की गईं। नाथपंथ के अनुयायी-जिन्हें साधक कहा जाता है-ने भी कुछ गजलें प्रस्तुत कीं। पीर रतननाथ की मक्का यात्रा और उनकी पैगम्बर मोहम्मद से मुलाकात पर आधारित एक छोटा सा नाटक भी प्रस्तुत किया गया।

हो सकता है कि पीर रतननाथ की मदीना यात्रा की बात ऐतिहासिक दृष्टि से सच न हो परंतु इसमें कोई संदेह नहीं कि इस तरह के मिथक दोनों धर्मों को करीब लाने में मददगार सिद्ध हो सकते हैं। पीर रतननाथ, हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों की श्रद्धा के पात्र हैं। नाथपंथी एक ओर योग में विश्वास करते हैं तो दूसरी ओर सूफी परंपराओं में भी श्रद्धा रखते हैं। नाथपंथी मिलीजुली धार्मिक परंपराओं में सच्चे मन से विश्वास करते हैं। समारोह के पहले हिस्से में सूफी परंपरा पर आधारित संगीत और नृत्य प्रस्तुत किए गए। इनमें मौलाना रूमी की शिक्षाओं का भी समावेश था।

कुर्ग के नाथपंथियों पर मौलाना रूमी का गहरा प्रभाव है। सद्गुरू सुबय्या ने मुझे बताया कि उनके नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल कोन्या गया था, जहां मौलाना रूमी का मकबरा है। इससे पता चलता है कि नाथपंथी अपने के सिद्धांतों में न केवल विश्वास रखते हैं वरन् उन्हें अमल में भी लाते हैं। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि अधिकांश साधक पढ़े-लिखे, मध्यमवर्गीय शहरी हैं। पंथ के सदस्यों में ग्रामीण न के बराबर हैं।

इस अवसर पर एक पुस्तिका का विमोचन भी किया गया। पुस्तिका का शीर्षक है “आग“। मंच के निचले हिस्से में भी आग की भड़कती लपटों को दर्षाया गया था। यह आग, मन के अंदर की आग है। यह वह आग है जो सभी कुविचारों को नष्ट कर देती है। यह आग, आंतरिक बैचेनी की प्रतीक भी है। सूफी साहित्य में भी अपने प्रियतम के लिए दिल में भड़कती प्रेम की अगन की चर्चा है। अपनी एक कविता में मौलाना रूमी कहते हैं कि प्रेम की अगन के बिना दिल, मुट्ठी भर रेत के अलावा क्या है। प्रेम की आग ही दिल को दिल बनाती है।

इस प्रकार, आग का गहरा प्रतीकात्मक आशय है। आग अपने प्रियतम-जो दैवीय है-को पाने की गहरी प्यास की प्रतीक है। सूफी साहित्य में पानी की बूंद और पानी का बुलबुला भी महत्वपूर्ण प्रतीक हैं। “आग“ की शुरूआत मथनवी से लिए गए एक उद्धरण से होती है।

“ए बूंद! सुन, ए बूंद! बिना अफसोस के अपना अस्तित्व कर ले समाप्त,

और बदले में पा ले पूरा समुद्र,

सुन ए बूंद, हमें दे यह सम्मान,

और समुद्र की बाहों में हो जा सुरक्षित।

क्या होगा इससे ज्यादा सौभाग्यपूर्ण?

कि समुद्र बुलाए एक बूंद को?

ईश्वर के नाम पर, ईश्वर के नाम पर,

बिक जाओ और खरीद लो एक साथ!

दे दो बूंद और ले लो मोतियों से भरा यह समंदर।

सूफियों के लिए उनकी मृत्यु का दिन अपार प्रसन्न्ता का दिन होता है क्योंकि उस दिन वे अपने प्रियतम (ईश्वर) से मिलते हैं। यही कारण है कि सूफी संतों की मृत्यु के दिन को उर्स कहा जाता है। उर्स का अरबी भाषा में अर्थ है अपने प्रियतम से विवाह का खुशीयो भरा दिन। इस दिन को विसाल भी कहा जाता है, अर्थात, अपने प्रियतम से मिलन का दिन। समुद्र, ईश्वर की तरह अनंत है और पानी की बूंद (अर्थात व्यक्ति) समुद्र से मिलकर स्वयं तो नष्ट हो जाती है परंतु समुद्र का भाग (ईश्वरीय) बन जाती है। इस तरह मौत गम का नहीं खुशी का मौका है। यह नुकसान नहीं फायदे का सौदा है।

गजलों और सूफियाना कलामों के बाद, सूफी नृत्य भी प्रस्तुत किए गए। इनमें हिन्दू और मुस्लिम सूफी परंपराओं के नृत्यों का समावेश था। इनमें शामिल थे मनमोहना, छाप तिलक (हजरत अमीर खुसरो) मैं होश में हूं (हजरत जहीर शाह ताजी) और दमादम मस्त कलंदर

इसके पश्चात, मछेन्द्रनाथ, गोरखनाथ व महाराष्ट्र के भक्ति आंदोलन की वरकारी परंपरा में रची-बसी मुक्ताबाई के जीवन पर आधारित लघु नाटिकाएं प्रस्तुत की गईं। एक लघु नाटिका तमिल भक्ति परंपरा के बोगांथर पर आधारित थी। बोगांथर, कुंडिलिनी योगम् में सिद्धहस्त थे। इस लघु नाटिका में दर्षाया गया था कि बोगांथर चीन जाते हैं और वहां ताओवाद के संस्थापक लाओ झू के नाम से प्रसिद्ध हो जाते हैं।

एक लघु नाटिका उज्जैन के प्रसिद्ध राजा भतृहरि के जीवन पर आधारित थी। भतृहरि ने राजसिंहासन का त्याग कर दिया था और वे भक्ति संत बन गए थे। भतृहरि के सन्यास ले लेने के बाद, उनके छोटे भाई विक्रमादित्य ने राजसिंहासन संभाला।

यह स्पष्ट है कि कुर्ग का नागपंथ सच्चे अर्थों में उदार मानसिकता का पोशक है। उसमें कई अलग-अलग आध्यात्मिक परंपराओं का सुंदर समावेश है। नागपंथ ने संकीर्णता की दीवारों को ढहा दिया है। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि पंथ के मुखिया सद्गुरू, चमक-दमक भरी जिंदगी से दूर रहते हैं। अन्य बाबाओं और गुरूओं के विपरीत वे प्रचार के भूखे नहीं हैं। हमारे देश के अधिकतर बाबा घोर भौतिकतावादी हैं और उनकी रूचि, निजी हवाई जहाजों, महंगी कारों और सोने के पहाड़ों में अधिक है, आध्यात्मिकता में कम।

सद्गुरू सुबैय्या अत्यंत सरल व निश्चल स्वभाव के व्यक्ति हैं। उनमें और अन्य साधकों में कोई फर्क नजर ही नहीं आता। उनके गहरे आध्यात्मिक ज्ञान ने मुझे बहुत प्रभावित किया। वे मुझसे बहुत गर्मजोशी से मिले। मुझे यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि उन्होंने अंतर्धार्मिक सद्भाव पर मेरे कई लेख पढ़े हैं। उनकी सादगी काबिले तारीफ है। अगर हमें भारत को एक रखना है और उसे नैतिक व आध्यात्मिक दृष्टि से समृद्ध बनाना है तो हमें कई सुबैय्ायों की जरूरत होगी।

इस समय देश में अनेक ऐसी ताकतें सक्रिय हैं जो राजनैतिक लाभ के लिए समाज में घृणा फैला रही हैं। “देश भक्ति“ के नाम पर वे इस देश के टुकड़े करने पर आमादा हैं। ये शक्तियां अपने धर्म, अपनी विचारधारा व अपने दृष्टिकोण को श्रेष्ठ और सर्वोपरि मानती हैं। सच यह है कि अपने से इतर धर्म के मानने वालों, अपने मत से विभिन्नता रखने वालों, अपनी विचारधारा में विश्वास न करने वालों को साथ लेकर चलने से ही हम महान बनते हैं। नाथपंथ सभी आध्यात्मिक परंपराओं को स्वीकार करता है और उन्हें सम्मान देता है-ठीक सूफियों की तरह, जो राजनैतिक सत्ता से दूर रहते थे और लोगों के दिलों पर राज करते थे। हमें भी प्रेम की ताकत को समझना होगा। ताकत से प्रेम हमें कहीं नहीं ले जाएगा।

डॉ. असगर अली इंजीनियर

Asghar Ali Engineer

(Secular Perspective July 1-15, 2011)