सोनिया गांधी ने ग़ाज़ा संकट पर मोदी सरकार की चुप्पी को बताया ‘राष्ट्रीय शर्म’, अंतर्राष्ट्रीय न्याय की मांग की
सोनिया गांधी ने ग़ाज़ा संकट पर भारत सरकार की चुप्पी को "राष्ट्रीय शर्म" बताया। एक लेख में इज़रायल के जनसंहार, वैश्विक प्रतिक्रिया और भारत की भूमिका पर सवाल उठाए

Sonia Gandhi
ग़ाज़ा में मानवीय त्रासदी पर गहराया संकट
- “यह अभियान नस्लीय सफाया है”
- अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की निष्क्रियता पर चिंता
- वैश्विक स्तर पर उठ रही विरोध की आवाजें
- भारत की चुप्पी उसकी विरासत के खिलाफ
- ग़ाज़ा पर इज़रायली नाकेबंदी और मानवीय संकट
- सोनिया गांधी का आरोप: भारत की चुप्पी शर्मनाक
- अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी की निष्क्रियता पर सवाल
- वैश्विक स्तर पर इज़रायल के खिलाफ कड़े कदम
- भारत के ऐतिहासिक रुख और आज की चुप्पी में अंतर
ग़ाज़ा संकट पर भारत सरकार की नीति पर पुनर्विचार जरूरी
सोनिया गांधी ने ग़ाज़ा संकट पर भारत सरकार की चुप्पी को "राष्ट्रीय शर्म" बताया। लेख में इज़रायल के जनसंहार, वैश्विक प्रतिक्रिया और भारत की भूमिका पर सवाल उठाए...
नई दिल्ली, 29 जुलाई 2025. कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने ग़ाज़ा संकट पर मोदी सरकार की मूकदर्शिता की तीखी आलोचना की है। उन्होंने कहा है कि इजरायली रक्षा बलों ने गाजा की सैन्य नाकेबंदी कर वहां दवाओं, भोजन और ईंधन की आपूर्ति को क्रूर नीयत से बाधित किया है। वहां के बुनियादी ढांचे का अंधाधुंध विनाश और आम नागरिकों का बेरोकटोक नरसंहार एक मानव निर्मित त्रासदी को जन्म दे चुका है। नाकेबंदी ने इसे और भी भयावह बना दिया है। भूख से मरने को मजबूर करने की रणनीति निःसंदेह मानवता के खिलाफ अपराध है।
आज एक हिंदी दैनिक में लिखे अपने लेख में सोनिया गांधी ने गाजा संकट पर भारत सरकार की चुप्पी की आलोचना करते हुए लिखा है कि अक्टूबर 2023 से इज़राइल द्वारा गाजा पर किए गए हमलों में 55,000 से अधिक फलस्तीनी नागरिक मारे गए हैं, जिनमें 17,000 बच्चे शामिल हैं। इज़राइली सेना ने गाजा की नाकेबंदी कर दी है, जिससे भोजन और दवाओं की आपूर्ति बाधित हुई है और मानवीय सहायता को भी रोका गया है। इज़राइल ने संयुक्त राष्ट्र की मानवीय सहायता को भी ठुकरा दिया है या रोक दिया है।
उनका तर्क है कि इज़राइल का यह अभियान जनसंहार जैसा है और इसका उद्देश्य गाजा पट्टी से फलस्तीनियों का नस्लीय सफाया करना है। इसकी तुलना 1948 की 'नकबा' त्रासदी से की गई है।
लेख में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की निष्क्रियता की भी आलोचना की गई है। संयुक्त राष्ट्र महासभा के युद्धविराम के प्रस्तावों को नज़रअंदाज़ किया गया है और सुरक्षा परिषद इज़राइल पर प्रतिबंध लगाने में विफल रही है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के 26 जनवरी, 2024 के निर्देशों को भी अनदेखा किया गया है। हालांकि, फ्रांस ने फलस्तीनी राज्य को मान्यता दी है और ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों ने इज़राइली नेताओं पर प्रतिबंध लगाए हैं। इज़राइल के भीतर भी विरोध हो रहा है और एक पूर्व प्रधानमंत्री ने इज़राइली युद्ध अपराधों को स्वीकार किया है।
सोनिया गांधी का मानना है कि भारत की चुप्पी राष्ट्रीय शर्म की बात है क्योंकि भारत ने पहले उपनिवेशवाद और रंगभेद के खिलाफ आवाज उठाई थी। उनका कहना है कि भारत सरकार को अपने संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप, स्पष्ट और साहसिक शब्दों में इस मुद्दे पर अपनी बात रखनी चाहिए और गाजा में तत्काल युद्धविराम की मांग करनी चाहिए।
कांग्रेस नेता ने यह भी उल्लेख किया है कि भारत हमेशा दो-राज्य समाधान का समर्थक रहा है और 1974 और 1988 में क्रमशः पीएलओ और फलस्तीन को मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश था।
गाजा में इजरायल की कार्रवाई के जवाब में अन्य देशों ने क्या कार्रवाई की है?
सोनिया गांधी का कहना है कि फ्रांस ने फलस्तीनी राज्य को मान्यता दी है। ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों ने गाजा में आक्रामकता को बढ़ावा देने वाले इज़रायली नेताओं पर प्रतिबंध लगाए हैं। इज़राइल के भीतर भी विरोध हो रहा है और एक पूर्व प्रधानमंत्री ने गाजा में इज़रायली युद्ध अपराधों की वास्तविकता को स्वीकार किया है। इज़राइल को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में ले जाया गया है और ब्राज़ील भी इस प्रयास में शामिल हो गया है।
गाजा संकट पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया की क्या विशिष्ट आलोचनाएँ हैं?
सोनिया गांधी का लेख गाजा संकट पर भारत सरकार की चुप्पी की आलोचना करता है और इसे "राष्ट्रीय शर्म" कहता है।
लेख में बताया गया है कि भारत ने ऐतिहासिक रूप से उपनिवेशवाद, रंगभेद और साम्राज्यवाद के विरुद्ध आवाज़ उठाई है, फिर भी गाजा में कथित नरसंहार के बावजूद उसकी वर्तमान निष्क्रियता उसके संवैधानिक मूल्यों और ऐतिहासिक योगदान के साथ विश्वासघात है।
लेख में कहा गया है कि सरकार की चुप्पी नैतिक कायरता और अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं न्याय को बढ़ावा देने के अपने ही घोषित सिद्धांतों की अवहेलना है।
सोनिया गांधी का तर्क है कि सरकार को अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने, राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत संबंध बनाए रखने और अंतर्राष्ट्रीय कानून एवं संधि दायित्वों का सम्मान करने के लिए प्रभावी कदम उठाने चाहिए, लेकिन गाजा संकट के संदर्भ में ऐसा करने में उसकी विफलता कर्तव्य की उपेक्षा है।
वैश्विक न्याय के प्रति भारत की अतीत की प्रतिबद्धता और गाजा पर उसके वर्तमान रुख के साथ उसके विरोधाभास को उजागर करने के लिए किन ऐतिहासिक कार्यों का हवाला दिया गया है?
लेख में उपनिवेशवाद के विरुद्ध वैश्विक आंदोलनों में भारत की अग्रणी भूमिका, शीत युद्ध के दौरान साम्राज्यवादी प्रभुत्व के प्रति उसके विरोध और दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष में उसके नेतृत्व को वैश्विक न्याय के प्रति उसकी अतीत की प्रतिबद्धता के उदाहरण के रूप में उद्धृत किया गया है। इसकी तुलना गाजा संकट पर उसकी वर्तमान चुप्पी से की गई है, जिसे उसके संवैधानिक मूल्यों और ऐतिहासिक योगदानों के साथ विश्वासघात बताया गया है।


