21वीं सदी में नेहरू के वैज्ञानिक चिंतन की प्रासंगिकता: भारत रत्न जवाहरलाल नेहरू का आधुनिक भारत में योगदान
जवाहरलाल नेहरू का जीवन और वैचारिक पृष्ठभूमि भविष्य के भारत के लिए नेहरू का संदेश भारत रत्न जवाहरलाल नेहरू का वैज्ञानिक चिंतन आज भी 21वीं सदी में अत्यंत प्रासंगिक है। उनके विचार, नीतियाँ और गुटनिरपेक्ष दृष्टिकोण भारत के लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय की नींव को मजबूत करते हैं। डॉ. रामजीलाल भारत रत्न जवाहरलाल नेहरू...

nehru scientific vision 21st century relevance
जवाहरलाल नेहरू का जीवन और वैचारिक पृष्ठभूमि
- नेहरू के वैज्ञानिक दृष्टिकोण की उत्पत्ति और विकास
- आधुनिक भारत के निर्माण में नेहरू का योगदान
- गुटनिरपेक्ष विदेश नीति और अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण
- लोकतंत्र और संविधान के प्रति नेहरू की प्रतिबद्धता
- धर्मनिरपेक्ष भारत की संकल्पना में नेहरू की भूमिका
- 21वीं सदी में नेहरू के चिंतन की प्रासंगिकता
- नेहरू का राष्ट्रवाद और अंतरराष्ट्रीयवाद
- वर्तमान समस्याओं के समाधान में नेहरू के विचारों की उपयोगिता
भविष्य के भारत के लिए नेहरू का संदेश
भारत रत्न जवाहरलाल नेहरू का वैज्ञानिक चिंतन आज भी 21वीं सदी में अत्यंत प्रासंगिक है। उनके विचार, नीतियाँ और गुटनिरपेक्ष दृष्टिकोण भारत के लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय की नींव को मजबूत करते हैं।
डॉ. रामजीलाल
भारत रत्न जवाहरलाल नेहरू (14 नवंबर 1889 – 27 मई 1964) का जन्म 14 नवंबर 1889 को मोतीलाल नेहरू तथा श्रीमती स्वरूप रानी के घर उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ. जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री (15 अगस्त 1947-27 मई 1964), राष्ट्रीय आंदोलन के महात्मा गांधी के सानिध्य में सर्वोच्च नेता, होनहार विद्यार्थी, उत्कृष्ट अध्येयता, प्रसिद्ध विद्वान लेखक, पत्रकार, नेशनल हेराल्ड समाचार पत्र के संस्थापक, उच्च कोटि के राजनेता, आधुनिक भारत के शिल्पकार एवं निर्माता, राष्ट्रवाद और अंतरराष्ट्रीयवाद की विचारधारा के समर्थक, भारत की गुटनिरपेक्ष नीति के निर्माता, अंतरराष्ट्रीय राजनीति में गुटनिरपेक्ष आंदोलन के जनक, संविधानवाद तथा लोकतंत्रवाद के समर्थक, सुप्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, मानववादी तथा वैज्ञानिक विचारधारा के चिंतक थे.
15 वर्ष तक घर पर शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात सन् 1905 में शिक्षा ग्रहण करने के लिए इंगलैंड गए. लंदन से वकालत की शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात सन् 1912 में भारत वापिस लौटे. वकालत में अधिक रूचि न होने कारण उन्होंने सन् 1920 में हमेशा के लिए वकालत छोड़ दी. नेहरू ने सर्वप्रथम सन् 1915 इलाहाबाद अधिवेशन में सार्वजनिक सभा को संबोधित करके राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भाग लेना प्रारंभ किया. सन 1916 में नेहरू होमरूल लीग के सचिव निर्वाचित हुए तथा महात्मा गांधी से मुलाकात 26 दिसंबर 1916 चारबाग रेलवे स्टेशन लखनऊ में हुई. उस समय नेहरू की आयु 27 वर्ष की थी. महात्मा गांधी की आयु 47 वर्ष थी और महात्मा गांधी नेहरू से 20 वर्ष बड़े थे. नेहरू के चिंतन को जलियांवाला बाग के प्रायोजित नरसंहार (13 अप्रैल 1919) ने बहुत अधिक प्रभावित किया.
सन् 1920 में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के किसान आंदोलन ने नेहरू के चिंतन पर अमिट छोड़ दी. इस किसान आंदोलन के पश्चात जवाहरलाल नेहरू का ध्यान ग्रामीण जीवन तथा किसानों की समस्याओं ओर आकर्षित हुआ.
फ्रैंक मॉरिस के अनुसार सन 1920 का वर्ष नेहरू के राजनीतिक जीवन का “एक निर्णायक मोड़” था.
- भारत रत्न जवाहरलाल नेहरू का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
- आधुनिक भारत के निर्माण में नेहरू की भूमिका
- गुटनिरपेक्ष नीति के जनक नेहरू
जवाहरलाल नेहरू के जीवन और चिंतन पर महात्मा गांधी के विचारों का अभूतपूर्व प्रभाव हुआ. महात्मा गांधी के सादगीपूर्ण जीवन, अहिंसा, सत्य, सत्याग्रह, साधन और साध्य की पवित्रता इत्यादि से इतने प्रभावित हुए कि नेहरू ने पश्चिमी सभ्यता से परिपूर्ण जीवन का परित्याग कर दिया. इसके बावजूद भी महात्मा गांधी जवाहरलाल नेहरू के विचारों में मूलभूत अंतर विद्यमान था. इन दोनों के मध्य लगभग वही संबंध थे जो यूनान के प्रसिद्ध विद्वान एवं दार्शनिक प्लेटो और अरस्तू के मध्य थे. विचारों में मूलभूत अंतर के बावजूद महात्मा गांधी ने जवाहरलाल नेहरू को राजनीतिक उत्तराधिकारी चुना क्योंकि वे जानते थे कि उनकी मृत्यु के पश्चात नेहरू उनकी वाणी बोलेगा.
नेहरू ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में लामबंद किए गए सभी आंदोलनों– असहयोग आंदोलन (सन् 1920 से सन् 1922 ), सविनय अवज्ञा आंदोलन (सन् 1930 से सन् 1934), व्यक्तिगत सत्याग्रह (सन् 1940 से सन् 1941) तथा भारत छोड़ो आंदोलन (सन् 1942 से सन् 1944) में अग्रणी भूमिका अदा की. जवाहरलाल नेहरू ने अपने 75 वर्ष के जीवन में 50 वर्ष तक पर राष्ट्रीय की सेवा में समर्पित किए. जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय आंदोलन के समय 9 बार जेल गए तथा 3262 दिन जेल में रहे. उस समय राष्ट्रीय आजादी के लिए जेल जाना मंदिर में जाने के समान समझा जाता था. स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात 15 अगस्त 1947 से 27 मई 1964 तक (6131 दिन) जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रधानमंत्री रहे.
- नेहरू और 21वीं सदी की राजनीति
- जवाहरलाल नेहरू के विचार और आज का भारत
- नेहरू का धर्मनिरपेक्ष चिंतन
जवाहरलाल नेहरू के चिंतन का सार उसके द्वारा लिखे गए लेखों, भाषणों तथा उनकी पुस्तकों में मिलता है. जवाहरलाल नेहरू एक मानववादी चिंतक थे तथा उनका अध्यात्मिकवाद, संगठित धर्म, परमात्मा, आत्मा, परलोक इत्यादि में कोई विश्वास नहीं था. जवाहरलाल नेहरू व्यक्ति के विकास, सुरक्षा और स्वतंत्रता के लिये राज्य को अनिवार्य साधन मानते थे. राज्य का मुख्य उद्देश्य समानता और स्वतंत्रता की स्थापना करना है. बीसवीं शताब्दी में विश्व में मुख्य विचारधाराएं पूंजीवाद और साम्यवाद थी. पूंजीवाद शोषण पर आधारित था और साम्यवाद में व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अभाव था. नेहरू इन दोनों के बीच का रास्ता अपनाया तथा समाजवादी प्रजातांत्रिक और कल्याणकारी व्यवस्था की स्थापना करने का प्रयास किया. कल्याणकारी राज्य की गतिविधियों के द्वारा समतावादी समाज की स्थापना करना चाहते थे. नेहरू के अनुसार आदर्श प्रजातंत्र में अनुशासन, सहयोग, सहनशीलता, अहिंसा, कर्तव्य परायणता, त्याग, सामाजिक व आर्थिक तथा राजनीतिक व्यक्ति की गरिमा इत्यादि कारकों का होना अत्यंत अनिवार्य है.
सन 1947 में भारत औद्योगिक, आर्थिक और कृषि के क्षेत्र में पिछड़ा राष्ट्र था. नेहरू भारत के आर्थिक निर्माण के लिए आधुनिक तकनीकी के प्रयोग से औद्योगिकरण, तकनीकी और वैज्ञानिक शिक्षा तथा कृषि की दशा को सुधारने के लिए नीतियां तैयार की गई.
स्वतंत्र भारत के निर्माण के लिए जवाहरलाल नेहरू अपने धुर विरोधी विचारधाराओं के नेताओं – डॉक्टर भीमराव अंबेडकर तथा श्यामा प्रसाद मुखर्जी को प्रथम मंत्रिमंडल में सम्मिलित किया. भारत में संसदीय लोकतंत्र स्थापना तथा संसदीय परंपराओं को विकसित करने में जवाहरलाल नेहरू महत्वपूर्ण भूमिका है.
- संसद और लोकतंत्र में नेहरू का योगदान
- भारत की विदेश नीति में नेहरू का प्रभाव
नेहरू ने संसद की गरिमा को बहुत अधिक महत्व दिया तथा दिल्ली में होते हुए शायद कभी संसद की बैठक से गैरहाजिर हुए हों. पूर्ण बहुमत के बावजूद नेहरु सदैव संसद में विपक्ष के नेताओं की भावनाओं का सम्मान करते थे तथा संसद में विपक्षी दलों के द्वारा की गई आलोचना के आधार पर कार्यवाही करने में संकोच नहीं करते थे .उदाहरण के तौर पर सन्1962 भारत चीन युद्ध (सन्1962) में भारतीय सेनाओं के हार के बाद रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मैनन के विरुद्ध संसद तथा संसद के बाहर आलोचना के कारण उसको पद से हटा दिया,वर्तमान राजनेताओं को जवाहरलाल नेहरु के द्वारा स्थापित संसदीय परंपराओं से परंपराओं को ग्रहण करते हुए संसद की गरिमा को बढ़ाना चाहिए.
भारतीय समाज एक बहु- धार्मिक समाज है. ऐसे समाज में “विविधता में एकता के सिद्धांत” पर चलते हुए धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत राष्ट्र निर्माण तथा राष्ट्रीय एकता में सहायक सिद्ध होता है. यद्यपि 1947 में भारत संप्रदायिकता चरम सीमा पर थी इसके बावजूद भी नेहरू धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना में विश्वास करते थे. धर्मनिरपेक्ष राज्य में राज्य का अपना धर्म नहीं होता तथा प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त होती है. विभिन्न धर्मों में “धार्मिक सहअस्तित्व की नीति” का अनुसरण करते हुए नेहरू द्विराष्ट्र के सिद्धांत- हिंदू राष्ट्र तथा मुस्लिम राष्ट्र के घोर विरोधी थे. धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवादी के रूप में नेहरू संप्रदायवाद पर आधारित राजनीति के धुरंधर विरोधी थे. 16 सितंबर 1951 को लखनऊ में एक भाषण देते हुए उन्होंने कहा था कि “मैं संप्रदायिकता को भारत का शत्रु नंबर एक मानता हूं.”
उनका राष्ट्रवादी चिंतन पूंजीवाद नाजीवाद, फासीवाद, साम्राज्यवाद, साम्यवाद, सर्वाधिकारवादी तानाशाही के विरूध था .जवाहरलाल नेहरू अंध राष्ट्रवाद को मानवता का शत्रु मानते थे क्योंकि यह हिंसा और युद्ध बढ़ा देता है. मानववादी होने के कारण नेहरू किसी भी प्रकार के संकुचित राष्ट्रवाद का समर्थन नहीं करते थे तथा उनका राष्ट्रवाद अंतरराष्ट्रीयवाद की आधारशिला केरूप में है. वैज्ञानिक चिंतक के रूप में नेहरू ने अंतरराष्ट्रीय सहयोग, विश्व शांति, पंचशील एवं गुटनिरपेक्षता के सिद्धांतों को अपनाने पर बल दिया. अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नेहरू गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापकों में से एक थे .एक समय था जब गुटनिरपेक्ष आंदोलन अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बहुत अधिक लोकप्रिय था और 100 से अधिक देशों ने गुटनिरपेक्ष नीति को अपनाया था.
जवाहरलाल नेहरू भारत की गुटनिरपेक्ष नीति के कर्णधार एवं सूत्रधार थे. अंतरराष्ट्रीय राजनीति में वे साम्यवादी अथवा पूंजीवादी ग्रुप से बंधना बंधना नहीं चाहते थे. इसलिए उन्होंने भारत के लिए गुटनिरपेक्ष स्वतंत्र विदेश नीति अपनाया.क्योंकि तत्कालीन परिस्थितियों की यही अपरिहार्य आवश्यकता थी.
जब तक भारत में गरीबी, गरीब – अमीर के मध्य खाई, अज्ञानता, शोषण, अंधविश्वास, रूढ़िवाद, बेरोजगारी, भूखमरी, धार्मिक उन्माद, संप्रदायवाद इत्यादि समस्याएं रहेगीं तब तक नेहरू का वैज्ञानिक चिंतन सार्थक और प्रासंगिक रहेगा.
(लेखक समाज वैज्ञानिक, पूर्व प्राचार्य, दयाल सिंह कॉलेज, करनाल (हरियाणा-भारत) हैं)
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