नेताजी रहस्य और राजनीति का रंगमंच: ममता बनर्जी का चालाक दांव, संघ और वाम दोनों पर वार
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु एक रहस्य रही है, जिसकी सच्चाई आज भी पूरी तरह सामने नहीं आ सकी है। अगर नेताजी जीवित थे, तो उनकी हत्या किसने की? और क्यों कोई सबूत पीछे नहीं छोड़ा गया?

पलाश विश्वास
पलाश विश्वास एक लेखक, वरिष्ठ पत्रकार, रंगकर्मी, आंदोलनकारी व स्तंभकार हैं. उन्होंने कई रचनाएं लिखी हैं.
सच अभी मालूम नहीं है। नेताजी अगर जिंदा थे, तो उन्हें किसने मारा और हत्या करने के कोई सबूत पीछे नहीं छोड़कर कि इस महादेव के नेताजी के व्यक्तित्व कृतित्व पर परदा जो तना हुआ है, उसे एक झटके से हटा दिया जाए और कातिल का चेहरा भी बेनकाब हो जाए।
ममता बनर्जी और नरेंद्र भाई मोदी के साथ साथ संघ परिवार का एजेंडा मालूम है। लेकिन ममता बनर्जी ने एक तीर से दो निशाने साधकर कांग्रेस और वामपंथियों को किनारे करके जनसंघारी अश्वमेध में हिंदुत्व सुनामी का नए सिरे से जो महायोजन किया है, वह संघ परिवार के लिए खतरे की घंटी भी है प्रलयंकर।
जगजाहिर है कि हमारे तमाम कामरेड ऐतिहासिक भूलों के लिए मशहूर हैं और लकीर के फकीर भी बने हुए हैं बेशर्म और जनतांत्रा ने इसकी सजाया भी उन्हें खूब दी है।
ममता दीदी का धन्यवादी की नेताजी का रहस्य खुला भी नहीं तो क्या, नेताजी के दिलोदिमाग में हिंदुत्व की जो तस्वीर थी और उनकी आजादी का जो मतलब था, वे सारी बातें अब सार्वजननिक हैं।
मसला आज सुबह के संदर्भ में बांग्ला दैनिक ए समाय ने अंतर्ध्यान से पहले नेताजी का बांगाल में 24 पृष्ठों युवा सम्वेदन को संदर्भित भाषण का पुलिसिया रिकार्ड हुआ है।
इस भाषण से पता चलता है कि नेताजी द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले से आजादी की खुशबू महसूसी ही नहीं रहे थे, बल्कि आजादी के लिए हर तैयारी कर रहे थे। आजादी जीतने के लिए हर जंग के लिए वे तैयार थे। इसी जंग के लिए वे जनता को जोड़कर मोर्चाबंदी करने के मुहिम में लगे थे तो कांग्रेस ने उनका साथ कत्तई नहीं दिया।
अपने इस संदर्भ में दुनिया भर की घटनाओं का उन्होंने विश्लेषण किया। पूंजीवादी वाद और साम्राज्यवाद के गठजोड़ को ढहाने के लिए वे स्टालिन के साथ हिंदुत्व की मोर्चाबंदी को राणनीतिक तौर पर।


