नीतीश कुमार की राजनीति और “कछुआ चाल” की कहानी

  • सदस्यता से पहले पेड़ लगाओ: जदयू की अनोखी पहल
  • हरित क्रांति से जैविक खेती तक: नीतीश कुमार की सोच में बदलाव
  • बिहार की पर्यावरणीय चुनौती और हरा भरा बिहार का उद्देश्य
  • पेड़ और वोट: राजनीति में पर्यावरण का नया समीकरण
  • “हरा भरा बिहार” क्या भाजपा और राजद दोनों के लिए चुनौती है?

नीतीश कुमार की हरित राजनीति का असली मकसद क्या है?

नीतीश कुमार का नया नारा “हरा भरा बिहार” सिर्फ़ पर्यावरण की बात नहीं, बल्कि राजनीति की नई रणनीति है। वरिष्ठ पत्रकार जुगनू शारदेय से जानिए इस हरित अभियान के पीछे की कहानी...

बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार की राजनीति को समझना बहुत ही मुश्किल काम है। उनकी राजनीति की शतरंज का सबसे प्रिय मुहरा कछुआ है। शतरंज के खेल में यह कछुआ कोई मुहरा नहीं है। न ही राजनीति के खेल में यह है। लेकिन राजनीति के एक सूत्र 'राजनीति संभावनाओं की कला है' का यह एक मुहरा है। कछुआ से जुड़ा एक किस्सा मशहूर है - वही खरगोश और कछुआ वाली कहानी। इस कथा में तेज चाल वाला कछुआ अपने अति आत्मविश्वास के कारण दौड़ में आगे निकल कर थोड़ा सुस्ताने लगा। लेकिन कछुआ अपनी धीमी चाल से चलता हुआ आगे निकल गया। यही कारण है कि नीतीश कुमार का नया नारा हरा भरा बिहार को लोग समझ नहीं पा रहे हैं।

बहरहाल, इतना तो सच है कि उनकी पार्टी जनता दल (यू) भारत की पहली राजनीतिक प्रतिष्ठान है जिसने अपनी सदस्यता की शर्त पेड़ लगाना भी रखा है : पहले पेड़ लगाओ, फिर पांच रूपया दे कर पार्टी का सदस्य बनो। लक्ष्य है 50 लाख पेड़ लगाना।

पेड़ लगाने के पहले के अभियान में नीतीश कुमार 2010 के विधान सभा चुनाव के पहले ही बिहार में खेती के विकास पर गए थे। तब लगा था कि अपने दिल्ली के दिनों में विश्वनाथ प्रताप सिंह मंत्रिमंडल में कृषि मंत्रालय में राज्य मंत्री, संसद में स्थायी समितियों की शुरूआत के साथ कृषि मंत्रालय की स्थायी समिति की अध्यक्षता और बाद में अटल बिहारी वाजपेयी मंत्रिमंडल में कृषि मंत्रालय संभालने का खुमार है।

जाहिर है कृषि मंत्रालय के अनुभवों के आधार पर नीतीश कुमार का कछुआई मन यह समझ चुका होगा कि एक काल विशेष में तथाकथित कृषि ऋषि स्वामीनाथन ने उपज बढ़ाने के लिए जिस प्रकार रासायनिक खाद और कीटनाशकों को बढ़ावा दिया, वह खेती - किसान - नागरिक को धीमी मृत्यु की ओर ले जा रहा है।

स्वामीनाथन की तथाकथित हरित क्रांति भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश से चल कर पंजाब तक ही सिमटी रही। बिहार का राजपाट संभालने के बाद भी नीतीश कुमार को यह जानकारी मिल ही गई होगी कि झारखंड अलग हो जाने के बाद बिहार की गरीबी और अमीरी का रहस्य खेती ही है।

नीतीश कुमार के करीबी और उत्तर प्रदेश कैडर के बिहारी आईएएस अफसर रह चुके रामचंद्र प्रसाद सिंह (आरसीपी सिंह) के अनुसार नीतीश कुमार को इस बात का भी अफसोस होता है कि आज भी बिहार में अंडा आंध्र प्रदेश से आता है।

शाकाहारी नीतीश कुमार स्वयं अंडा खाते हैं और उनका निजी भोजन बिना रासायनिक खाद वाला होता है। बिहार का 90 प्रतिशत भूभाग दूषित जल का शिकार है। ऐसी हालत में नीतीश कुमार के सामने पर्यावरण सुधार के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

सच तो यह भी है कि बिहार के सभी शहर वायु प्रदूषण से ग्रस्त हैं। मुश्किल यह भी है कि नीतीश कुमार के सामने कोई उपाय नहीं है कि वह अपने राज्य को वायु - जल - ध्वनि प्रदूषण से मुक्त कर सकें। लेकिन खेती में जैविक खेती को वह बढ़ा सकते हैं। बिहार के अनेक किसान भी जैविक खेती कर रहे हैं। राज्य बायो फर्टिलाइजर और वर्मी उत्पादन के लिए अच्छी खासी सबसिडी भी दे रहा है। तब लोगों को लगा कि अचानक नीतीश कुमार पेड़ पेड़ क्यों करने लगे। वह भी पेड़ लगाने वाली सरकारी एजेंसी वन विभाग से अलग अपनी पार्टी को जोड़ रहे हैं।

पटना के कुछ महान पत्रकारों ने तो यहां तक माना कि नीतीश कुमार का हरा भरा बिहार लालू प्रसाद की राजनीति को समाप्त करने का एक तरीका है। वह यह नहीं समझ पाए कि यह भारतीय जनता पार्टी से मुकाबला करने का भी एक तरीका हो सकता है।

यह एक दिलचस्प तथ्य है कि बिहार में वन, पशु एवं मछली पालन और सहकारिता भारतीय जनता पार्टी के पास है। यह सारे विभाग कृषि कर्म से जुड़े विभाग हैं। वन और कृषि तो एक दूसरे के पूरक ही हैं। जबकि कृषि विभाग जदयू के नरेद्र सिंह के पास है। बागवानी भी बिहार में कृषि का ही हिस्सा है। अभी बिहार में बागवानी महोत्सव हर जिला में चल रहा है। बहुत दिनों के बाद इससे संबंधित होर्डिंग में मुख्य मंत्री नीतीश कुमार और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह का ही चेहरा है। यहां तक कि नीतीश कुमार ने अपने पुश्तैनी गांव कल्याण बिगहा में 11 अगस्त को जब वृक्षारोपण कार्यक्रम किया तो यह राज्य सरकार का नहीं और न ही एन डी ए का कार्यक्रम था बल्कि जदयू का कार्यक्रम था। सरकारी कार्य़क्रम होता तो साल भर में 10 करोड़ पेड़ लगाने का दावा करने वाले उप मुख्य मंत्री सुशील कुमार भी मौजूद रहते। यहां चुन-चुन कर नीतीश कुमार उन लोगों को ले गए जो उनकी कछुआ राजनीति का हिस्सा हैं। जैसे राजद से जदयू में शामिल शकील अहमद खां और साहित्यकार - आलोचक रामवचन राय। दोनों बिहार विधान मंडल के सदस्य रह चुके हैं।

अब तक अपने देश में पेड़ के पास वोट नहीं था। सिर्फ बिहार के भागलपुर संभाग के एक गांव धरहरा में परंपरा थी कि लोग पुत्री जन्म के बाद पेड़ लगाते थे। कल्याण बिगहा में भाषण देते हुए आदतन नीतीश कुमार ने पर्यावरण संबंधी बड़ी बड़ी और किताबें बातें की पर भूमिहीन दलित समाज को साफ-साफ कहा कि और कुछ नहीं तो सहजन का पेड़ लगाओ। यह पेड़ एक साल में फल देने लगता है और सेहत के लिए गुणकारी होता है।

नीतीश कुमार कल को पेड़ के बल पर कार्बन क्रेडिट की भी बात कर सकते हैं। पेड़ आधारित कौन सी राजनीति नीतीश कुमार करेंगे - यह तो आने वाले वक्त में ही पता चलेगा। लेकिन उन्होंने पेड़ को वोट में भी बदलने की कोशिश की है और अपने राज्य को मृत्यु से भी बचाने का प्रयास किया है। उन्हें खुश करने के लिए उनके कार्यकर्ता पेड़ लगाएंगे और उनकी देख भाल भी करेंगे और दावा भी करेंगे कि ' जी, हमने इतना पेड़ लगाया, इसलिए हमें टिकट मिलना चाहिए!! '

जुगनू शारदेय

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं