जस्टिस मार्कंडेय काटजू

का बा का हाल का बा ?

अब अक्सर चुप चुप से रही है,

यूँ ही कभू लब खोली है।

पहले नेहा को देखा होता,

अब तो बहुत कम बोली है।

फितरत इसकी शेर से लड़ना,

क़िस्मत जेल की तनहाई।

कहने की नौबत ही न आयी,

का बा फिर से बोली है।

नेहा का रोना सुनने वाले,

अधिकारी कुछ रहम करो।

आगे शेर से कबहुँ न लड़ब,

कान पकड़कर बोली है।

अधिकारी न दया करें तो,

कृष्ण भी संकट मोचन हैं।

द्रौपदी का सम्मान बचाया,

नेहा अभी भी भोली है।

अपने सीमा में रहा चाही,

रंगबाजी करा ठीक नहीं।

हमका ई पाठ समझ में आवा,

नेहवा ये अब बोली है।

(जस्टिस काटजू सर्वोच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)