अपने मीडिया में छोटे-छोटे नवनीत सहगल बहुत भरे पड़े हैं
अपने मीडिया में छोटे-छोटे नवनीत सहगल बहुत भरे पड़े हैं

अभिषेक श्रीवास्तव (Abhishek Shrivastava), जनपक्षधर, यायावरी प्रवृत्ति के वरिष्ठ पत्रकार हैं। उनकी शिक्षा दीक्षा आईआईएमसी में हुई है
शुक्रवार की नमाज़ सोमवार की शिव चर्चा में बदल गई है
अभिषेक श्रीवास्तव
पेड़े कटहर ओठे तेल...! अभी मुख्यमंत्री तय हुआ नहीं और जनता सेटिंग-गेटिंग में जुट गई।
लखनऊ में मार मची है पत्रकारों की। कोई मनोज सिन्हा की उम्मीद में डेरा डाले हैं तो कोई राजनाथ रामबदन का बगलगीर होने की फि़राक़ में है। किसी को ज़मीन छ़ुड़वानी है, किसी को ज़मीन लिखवानी है, किसी को विज्ञापन लेना है, किसी को ठेका चाहिए, कोई गैस एजेंसी और पेट्रोल पंप का मारा है तो कोई अपने स्कूल की मान्यता के लिए छटपटा रहा है।
सबसे मज़ेदार हालत उन पत्रकारों-संपादकों की है जो साइकिल से चल रहे थे और मुलायम समाजवाद का झंडा ढो रहे थे। समाजवाद पार्ट टू में इन सब ने अखिलेश का दाम थाम लिया था। लगातार अपनी पत्र-पत्रिकाओं से गठबंधन की जीत की मुनादी करते रहे लेकिन कोई दवा काम न आई। अब ये सभी अपने पुराने संघी रिश्तों को खंगाल रहे हैं। शुक्रवार की नमाज़ सोमवार की शिव चर्चा में बदल गई है।
बहनजी के इर्द-गिर्द तो वैसे भी पत्रकार कम ही रहते हैं। उनके लाभार्थी भी शायद मीडिया में खोजे न मिलें। फिर भी जिन्होंने उनकी जीत की भविष्यवाणी की थी, वे सबसे अक्खड़ निकले। सब ईवीएम पर लपटे हुए हैं और किसी ने भी अपना ईमान नहीं बेचा है। एक यही अच्छी बात है।
एक और अच्छी बात यह है कि कुछ मित्रों ने लाभ तो लिया यूपी सरकार से लेकिन मंच पर बैठाया केंद्र सरकार के लोगों को, इसलिए वे पांच साल और आराम से काटेंगे। अपने मीडिया में छोटे-छोटे नवनीत सहगल बहुत भरे पड़े हैं जो हर जगह एडजस्ट कर लेते हैं। जाति नहीं तो क्षेत्र ही सही, कोई भी वाद हो।
फिलहाल मुझे गुलाबी कोट वाले फ्रैंक हुजूर की याद आ रही है। मुलायम को फिदेल और अखिलेश को चे ग्वारा बताने वाले सोशलिस्ट फैक्टर का क्या हुआ भाई? लखनऊ से कोई ख़बर दे।
Web Title : Our media is full of small Navneet Sehgals


