देशभक्त मुसलमान और कानूनभंजक आरएसएस
देशभक्त मुसलमान और कानूनभंजक आरएसएस

opinion, विचार
देशभक्त मुसलमान और कानूनभंजक आरएसएस
मुसलमानों के ऊपर हमले संविधानविरोधी
मुसलमान हमारे देश के संविधान, क़ानून और लोकतंत्र का सम्मान करते हैं और मानते हैं। मुसलमानों की भारत की आज़ादी के पहले और बाद के सामाजिक विकास में सकारात्मक भूमिका रही है। आजाद भारत में मुसलमानों ने कभी अन्य धर्म के लोगों के खिलाफ कभी कोई मुहिम नहीं चलाई। मुसलमानों ने एक स्वर से आतंकवाद, साम्प्रदायिकता और पृथकतावादी के खिलाफ हमेशा भारत सरकार के फ़ैसलों को माना और राष्ट्रीय एकता के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। मुसलमान कभी आक्रामक नहीं रहे ऐसी स्थिति में मुसलमानों के ऊपर हमले करना ग़लत है, संविधानविरोधी है।
सन् 2016 में पहलीबार हुआ कि मुसलमानों के पवित्र माह के दौरान बटुकसंघ के भोंपुओं ने टीवी से लेकर फेसबुक तक जमकर मुसलमान विरोधी घृणित प्रचार किया। टीवी पर बटुक संघ के दलीय प्रवक्ता तो सभ्यता की सारी हदें पार कर गए। सन् 2016 में घटना बांग्लादेश में हुई है और भारत में ज़बर्दस्ती मुसलमानों के खिलाफ नफ़रत फैलाई जा रही है। हैदराबाद में जिन युवाओं को आईएस से संपर्क के आरोप में पकड़ा गया, उसके बहाने सभ्यता और संविधान की सीमाओं को तोड़कर, बिना आरोप सिद्ध किए समूचे मुसलिम समाज, ओवैसी, धर्मनिरपेक्ष लोगों के खिलाफ टीवी से लेकर फेसबुक तक ज़हरीला प्रचार किया गया।
आरएसएस किसी से सांगठनिक मित्रता नहीं रखता, वैचारिक मित्रता रखता है
उल्लेखनीय है आरएसएस का भारत के अंदर और बाहर उन तमाम राजनीतिक ताकतों और संगठनों के साथ राजनीतिक याराना है जो सीधे धर्मनिरपेक्षता को चुनौती देते हैं। जरूरी नहीं है उनसे सीधे सांगठनिक संबंध ही हों, वैसे आरएसएस सांगठनिक मित्रता किसी से नहीं रखता, वैचारिक मित्रता रखता है। आरएसएस के संगठनों को उन तमाम बहुराष्ट्रीय कंपनियों से मोटी रकम के रूप में चंदा मिलता है जो समाज में कंजरवेटिव विचारों के प्रचार प्रसार में दिलचस्पी रखती हैं।
कितने मासूम हैं ये संघी इन्हें सेक्स क्रांति से परहेज नहीं, समलैंगिक प्रेम से परहेज नहीं, पोर्न से परहेज नहीं
आरएसएस को सेक्स क्रांति से परहेज नहीं है, समलैंगिक प्रेम से परहेज नहीं है, पोर्न से परहेज नहीं। मीडिया और नेट की असीमित बाढ़ से परहेज नहीं है। कारपोरेट घरानों की अबाध लूट से परहेज नहीं, बहुराष्ट्रीय कंपनियों की लूट से परहेज नहीं है, आम्बेडकर-पटेल, सुभाष-गांधी किसी से परहेज नहीं है, वस्तुगत तौर पर देखें तो आरएसएस अपने को संचार क्रांति की संगति में लाने की जीतोड़ कोशिश कर रहा है। वे तो बस इतना चाहते हैं कि उनकी हिन्दुत्ववादी विचारधारा का सारा देश वर्चस्व स्वीकार कर ले, धर्मनिरपेक्ष संविधान को तिलांजलि दे दे। कितने मासूम हैं ये संघी !!
सेक्सुअल लिबरेशन की ही बात करते हैं आरएसएस के नेतागण
आरएसएस के नेतागण आए दिन अधिक से अधिक हिन्दू पैदा करो, हिन्दू अधिक बच्चे पैदा करें, का नारा दे रहे हैं। तो वस्तुतः सेक्सुअल लिबरेशन की ही बात करते हैं। इसमें सेक्स कम और ज्यादा पुनरूत्पादन की बातें कर रहे होते हैं।
इसी तरह यह रूपक के अंत का युग है, हिन्दू रूपक, मुसलमान रूपक, ईसाई रूपक, राम का रूपक आदि कोई रूपक इस दौर में बचने वाला नहीं है, यहां तक कि मोदी रूपक भी बचने वाला नहीं है। रूपकों के बहाने जन-लामबंदी, उन्माद पैदा करने की सभी कोशिशों का अंत हो चुका है। इसी तरह साम्यवाद के प्रचलित रूपकों की भी विदाई हो चुकी है। रूपकों में राजनीति अब संभव नहीं है। यही परिप्रेक्ष्य है जिसमें हिन्दुत्व की नई लामबंदी शुरू हुई है, इसमें कानून भंजन को नार्मल बना दिया गया है।
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