PM को CM के खत से बदलेगी नहीं कयामत की फिजां! कदम-कदम कदमबोशी करने वाले बागी हो नहीं सकते
PM को CM के खत से बदलेगी नहीं कयामत की फिजां! कदम-कदम कदमबोशी करने वाले बागी हो नहीं सकते
पलाश विश्वास
यूपी जीतने के लिए कायदा कानून और अर्थव्यवस्था से लेकर मुक्त बाजार के व्याकरण को जैसे ताक पर रखकर नोटबंदी जारी की गयी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों और देश के कारपोरेट घरानों के एकाधिकार वर्चस्व के लिए जैसे जबरन कैशलेस डिजिटल इंडिया बनाने के लिए अर्थव्यवस्था को ही लाटरी में तब्दील कर दिया गया है, तो 2014 के उस जनादेश की परिणति के बारे में मतदाताओं को अपने वजूद के लिए सोचना चाहिए, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। इसलिए जनादेश से कुछ बदलने के आसार कम है।
एक बार फिर यूपी के रास्ते हिंदुस्तान फतह करने के लिए सत्ता वर्ग बुनियादी मसलों को किनारे करके हिंदुत्व की सुनामी राम के सौगंध के साथ बनाने में जुटे हैं और यूपी की जनता को ही वानर सेना में तब्दील करके हिंदुस्तान फतह करने की चाकचौबंद तैयारी है। जिसका प्रतिरोध अगर संभव है तो वह करिश्मा यूपी वालों को ही कर दिखाना है।
दूसरी ओर, चुनाव जीतने के मकसद से बजट के इस्तेमाल के इरादे के तहत पहली जनवरी को ही बजट पेश करने की जिद को सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग की हरी झंडी मिल जाने से, फिर उस बजट में पांच राज्यों में विधानसभा के मद्देनजर चुनाव आयोग ने बजट प्रावधान पर जो निषेधाज्ञा लागू कर दी है, उससे पांचों राज्यों के लिए और उनकी जनता के लिए यह नोटबंदी के बाद दुधारी मार है।
उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा के लोग सालभर अगर झुनझुना बजाने के लिए छोड़ दिये गये, तो आगे उनका गुजारा कैसे होगा, यह नोटबंदी करने वाले झोलाछाप विशेषज्ञ ही तय करने वाले हैं। हमारे पास झुनझुना बजाने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है।
नशाग्रस्त पंजाब में हालात और खराब होंगे और यूपी कितना और पिछड़ जायेगा, यह बाद में देखा जाना है। झुनझुना बजाने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है।
भारत में बहुमत का जलवा हम अक्सर समझ नहीं पाते और चुनाव से पहले और चुनाव के बाद जनादेश की भूमिका, देश की अर्थव्यवस्था, कायदा कानून, बहुलता विविधता, लोकतांत्रिक संस्थानों पर उसके दीर्घस्थायी असर, राष्ट्रीय संसाधनों से लेकर जलवायु पर्यावरण, भूख, बेरोजगारी जैसी बुनियादी चुनौतियों, समता और न्याय के लक्ष्य, बुनियादी सेवाओं और जरुरतों के बारे में वोट डालने से पहले हम कतई नहीं सोचते।
अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रबंधन, नीति निर्धारण के बारे में बहुजनों की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती, यही मनुस्मृति के फासिस्ट नस्ली राजकाज की पूंजी है।
भावनाओं में बहकर हवाओं के इशारों से हम अपना नुमाइंदा चुनकर जो जनादेश बनाते हैं, उसे सामूहिक आत्महत्या कहे तो वह भी कम होगा।
हर बार हम जनादेश मार्फत सामूहिक आत्महत्या ही करते हैं।
मसलन अमेरिका में पचास राज्य हैं और उनकी किस्मत का फैसला चुनिंदा कुछ राज्यों के वोट से हो जाता है जैसे डोनाल्ड ट्रंप का चुनाव अमेरिकी बहुमत के खिलाफ हो गया और इसका खामियाजा सिर्फ अमेरिका ही नहीं, बाकी दुनिया को भी भुगतना होगा।
जनादेश यूपी वालों का होगा और उसका दीर्घकालीन असर पूरे देश पर होना है।
भारत में भी यूपी बिहार तमिलनाडु मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भावनाओं की सुनामी से पूरे मुल्क को फतह करने का सिलसिला आजाद भारत का लोकतंत्र है।
यूपी का जनादेश हमेशा पूरे देश की किस्मत का फैसला करने वाला होता है और इसीलिए देश के सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री यूपी से ही चुने जाते रहे हैं।
ओड़ीशा, झारखंड, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ , केरल, गोवा, पंजाब, राजस्थान और पूर्वोत्तर के राज्यों से राष्ट्रीय नेतृत्व का उभार असंभव है।
हालांकि गुजरात से नरेंद्र मोदी का उत्थान एक अपवाद ही कहा जा सकता है लेकिन यह भी जनप्रतिनिधित्व या लोकतंत्र का करिश्मा नहीं है। हिंदुत्व के एजंडे के मुताबिक भावनाओं की जिस सुनामी से मोदी देश के नेता बने, उस तरह किसी माणिक सरकार, चंद्रबाबू नायडु या नवीन पटनायक और यहां तक कि किसी ममता बनर्जी या नीतीश कुमार के भी के प्रधानमंत्री बनने के आसार नहीं है।
अजूबा लोकतंत्र हमारा है, जहां राजनीति में स्त्री के प्रतिनिधित्व से पितृसत्ता के तहत पूरी राजनीति लामबंद है।
उत्तराखंड जैसा राज्य और पूर्वोत्तर के तमाम राज्य केंद्र सरकार की मेहरबानी पर निर्भर है क्योंकि राष्ट्रीय नेतृत्व के लिए ये राज्य निर्णायक नहीं है।
ऐसे राज्यों में नेतृत्व न पिद्दी है और न पिद्दी का शोरबा है।
बहरहाल मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मांग की है आम बजट को विधानसभा चुनाव के बाद पेश करने पर विचार करें, ताकि उत्तर प्रदेश के विकास व जनता के हित में योजनाओं की घोषणा हो सके। अखिलेश ने अपने पत्र में चुनाव आयोग की ओर से भारत सरकार को 23 जनवरी को जारी किए गए पत्र का हवाला देते हुए लिखा है। इस पत्र में आयोग ने निर्देश दिया है कि भारत सरकार के आगामी बजट में चुनाव आचार संहिता से प्रभावित पांच राज्यों के हित में कोई भी विशेष योजना घोषित नहीं की जाए।
इसकी कोई सुनवाई होने के आसार नहीं है।
पीएम को किसी सीएम के खत से हालात बदलने बाले नहीं है।
कदम-कदम कदमबोशी करने वाले बागी हो नहीं सकते।
देश किसी कुनबे का महाभारत या मूसलपर्व भी नहीं है कि धोबीपाट से जीत लें।
अखिलेश का भी इसे चुनावी मुद्दा बनाने के अलावा हकीकत की चुनौतियों से निबटने का कोई इरादा लग नहीं रहा है क्योंकि उन्होंने यूपी को हिंदुत्व के एजंडे का गिलोटिन बनाने से रोकने के लिए अब तक कुछ भी नहीं किया है बल्कि फासिज्म के राजकाज को मजबूती से अंजाम देने में वे सबसे आगे रहे हैं।
इसके उलट यूपी से सबसे ज्यादा लोकसभा सदस्य और राज्यसभा सदस्य हैं तो राष्ट्रपति चुनाव में अप्रत्यक्ष मतदान में यूपी के वोट का मूल्य सबसे ज्यादा है।
अखिलेश यादव अगर बाहैसियत सीएम यूपी वालों का ईमानदारी से नुमांइदंगी कर रहे होते तो यूपी की सरजमीं का बेजां इस्तेमाल रोककर नरसंहारी अश्वमेधी अभियान को रोकने में उनकी कोई न कोई पहल जरुर होती।
आवाम की रहमुनमाई करने के बजाय अखिलेश ने यूपी और यूपीवालों को फासिज्म का सबसे उपजाऊ उपनिवेश बना दिया है।
अंदेशा यही है कि इस खुदकशी का अंजाम यूपी के जनादेश में भी नजर आयेगा।
आजादी के बाद के मतदान का पूरा इतिहास उठा लें तो राष्ट्र के भविष्य निर्माण में सकारात्मक नकारात्मक दोनों प्रभाव हमेशा यूपी का ज्यादा रहा है।
भारत की राजनीति जिस हिंदुत्व के एजंडे से सिरे से बदल गयी है, उसके पीछे जो आरक्षण विरोधी आंदोलन हो या राममंदिर आंदोलन और बाबरी विध्वंस हो, उसकी जमीन यूपी है। गुजरात नरसंहार और 1984 में सिखों के नरसंहार यूपी की ताकत, यूपी के जनादेश के बेजां इस्तेमाल का अंजाम हैं। तो दूसरी ओर सामाजिक बदलाव के आंदोलन के तहत यूपी में भाजपा 16 साल से और कांग्रेस 29 साल से सत्ता से बाहर है।
क्या यूपी वालों का नेतृत्व करके फासिज्म के खिलाफ लड़ाई में अखिलेश आगे आने को तैयार हैं, इस सवाल का जबाव यूपी वालों को खुद से जरूर पूछना चाहिए और उसके मुताबिक फैसला करना चाहिए कि उनका जनादेश क्या हो।
यूपी वाले अपनी अपनी निर्णायक ताकत को समझें और जनादेश को समूचे देश के लिए सामूहिक आत्महत्या बनने न दें, आज सबसे बड़ी चुनौती यही है।
अखिलेश ने अपने पत्र में लिखा है कि अगर चुनाव से पहले बजट पेश होता है तो यूपी के लिए आप किसी योजना का ऐलान नहीं कर सकते, ऐसे में यूपी का बड़ा नुकसान होगा। यूपी राज्य जिसमें देश की बड़ी जनसंख्या निवास करती है को भारत के आगामी सामान्य/रेल बजट में कोई विशेष लाभ/योजना प्राप्त नहीं हो सकेगी, जिसका सीधा प्रतिकूल प्रभाव यूपी के विकासकार्यों एवं यहां के 20 करोड़ निवासियों के हितों पर पड़ेंगा। साथ ही अखिलेश ने यह भी लिखा है कि 2012 में राज्यों के चुनाव की वजह से चुनाव बाद बजट पेश किया गया था।


