पॉक्सो केस वापसी: एक सत्ताधारी सांसद को मिली छूट?

  • महिला पहलवानों के धरने से संसद तक: लोकतंत्र की सच्ची तस्वीर
  • बृजभूषणशरण सिंह का राजनीतिक रसूख और न्याय की अनदेखी
  • बेटी बचाओ बनाम राजनीतिक संरक्षण: दोहरापन क्यों?

पॉक्सो केस की वापसी, महिला पहलवानों के साथ अन्याय, और बृजभूषण सिंह को मिली छूट—क्या भारत में बेटी बचाओ अभियान सिर्फ नारा रह गया है?

भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष, और भाजपा के सांसद बृजभूषण सिंह के खिलाफ पॉक्सो केस वापस ले लिया गया.

'हिंदू बनाम हिंदू' यह चालीस पन्ने की डॉ. राम मनोहर लोहिया की साठ साल पुराने किसी एक भाषण की छोटी सी पुस्तिका है, जो भारत के पिछले तीस पैंतीस सालों से वर्तमान समय तक भारतीय जनता पार्टी की तरफ से चलाए जा रहे द्वेषपूर्ण उग्रहिंदुत्वादि राजनीतिक स्थिति का हूबहू वर्णन किया है. नई संसद के उद्घाटन समारोह एक तरफ जारी था और उसी इमारत से कुछ दूरी पर स्थित पार्लियामेंट स्ट्रीट के रस्ते पर जंतर-मंतर पर हमारे देश की महिला खिलाड़ियों की तरफ से उनके साथ बृजभूषण सिंह द्वारा किए गए लैंगिक शोषण के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए धरना जारी था. अचानक दिल्ली पुलिस ने उस धरना स्थल पर जाकर जोर-जबरदस्ती से उन बच्चियों को उठा-उठाकर गाड़ियों में डालकर किसी अज्ञात स्थानों पर अलग-अलग ले जाने की कार्रवाई के साथ ही, उनके जंतर-मंतर पर के तंबू और व्यक्तिगत सामान को तहस-नहस करने का काम किया था.

लगभग सभी बच्चियां हिंदू समुदाय की हैं, और हरियाणा जैसे राज्य की हैं, जहाँ पर महिलाओं को पुरुषों की तुलना में आज भी कमतर माना जाता है. और काफी महिलाओं के सर से घूंघट दूर हुआ नहीं है. लड़की को पैदा होने के पहले ही गर्भजल परीक्षा में गर्भपात करने का अनुपात भी हरियाणा में काफी है.

उस हरियाणा के मां बाप के मन पर आज क्या असर हो रहा होगा ? यह तो आपातकाल की घोषणा के बाद जयप्रकाश नारायण ने विनाशकाले विपरीत बुद्धि जैसे शब्द प्रयोग किया था. आज मुझे हूबहू वर्तमान समय के सत्ताधारी दल के व्यवहार से ऐसा ही लगता है.

अखिल भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों ने यौन शोषण किया. यह आरोप 2023 के शुरू में ही करने के बाद उन्हें आश्वासन दिया था "कि हम अंतर्गत जांच कर रहे हैं." लेकिन उसके बाद भी कुछ नहीं हुआ. तो फिर 24 अप्रैल से जंतर-मंतर पर धरना शुरू किया. जिसमें उन्हें समर्थन देने के लिए सभी विरोधी दलों के नेताओं से लेकर, देशभर के विभिन्न जनांदोलनों के लोगों ने दिल्ली जाकर समर्थन देना संभव था उन्होंने दिल्ली में सांकेतिक रूप से कुछ समय उनके साथ बैठ कर समर्थन दिया था. और लगभग देश के हर जगह पर भी उन्हें समर्थन देने के लिए लोगों ने धरना-प्रदर्शन किया था.

हमारे देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भी दिल्ली पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के लिए आदेश जारी किया था. और बड़ी मुश्किल से दिल्ली पुलिस ने एफआईआर दर्ज किया. लेकिन कोई कार्रवाई करना तो बहुत दूर की बात है. जिस आदमी के ऊपर अपराधी होने का आरोप है, वह गोंडा उत्तर प्रदेश के संसदीय क्षेत्र से सातवें बार लोकसभा में बीजेपी का सदस्य था. और इसका पूर्व चरित्र को देखते हुए इस पर एक दर्जन से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं. और एक हत्या का भी मामला है.

हन मायावतीजी के मुख्यमंत्री रहते हुए बीजेपी के वरिष्ठ नेता नानाजी देशमुख की सूचना के अनुसार गोंडा के नाम की जगह जयप्रकाश नारायण नगर नाम देने की मांग की थी. और मायावतीजी ने जयप्रकाश नारायण नगर नाम देने का फैसला ले लिया था. लेकिन बृजभूषण सिंह ने घोषणा की "कि अगर गोंडा की जगह जयप्रकाश नारायण के नाम देने से गोंडा में खून की नदियाँ बहा देंगे." तो आज भी जयप्रकाश नारायण के नाम की जगह गोंडा नाम बदस्तूर जारी है.

वर्तमान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश को गुंडाराज से मुक्त करने की घोषणा की है. और अतीक अंसारी या उसके बेटे की हत्या उसी कड़ी के रूप में देखी जा रही है. लेकिन गोंडा के सांसद लगातार सात बार वहां से लोकसभा सदस्य बनने के कारण आदित्यनाथ से लेकर पार्टी विद डिफरंस का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी की हिम्मत नहीं हो रही है कि इस आदमी के ऊपर कार्रवाई करे.

और प्रधानमंत्री बेटी बचाओ अभियान की घोषणा लगातार किए जा रहे हैं. लेकिन उनके नाक के नीचे राजधानी दिल्ली में पैंतीस दिनों से भी अधिक समय से धरना देने वालीं महिला खिलाड़ियों की मांगों के ऊपर कार्रवाई करना तो दूर की बात है. उल्टा नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में एक तरफ "भारत के जनतंत्र को विश्व के सभी जनतंत्र की माँ है" बोलते हुए दूसरी तरफ अपने ऊपर हुए अत्याचार को लेकर धरना दे रही भारत की किसी मां-बाप की बच्चियों को घसीटकर जोर-जबरदस्ती से पुलिस उठा-उठाकर अज्ञात स्थलों पर लेकर चले गए. और उन्होंने अपनी बारिश तथा धूप से बचाव के लिए लगाए हुए तंबू तहस-नहस कर दिए. और उनके व्यक्तिगत सामान को भी.

और प्रधानमंत्री नई संसद में दुनिया के लोकतंत्र की माँ भारत के लोकतंत्र को बोल रहे थे. ऐसे दुष्कर्मों को करने वाले लोगों को छुपाने वाली माँ हमें नहीं चाहिए. जालिम फिर वह खुद का बेटा क्यों न हो उसे उसके गुनाहों की सजा देने वाली माँ चाहिए, न ही सिर्फ बेटी बचाओ अभियान में बोलने वाले या विश्व के लोकतंत्र की माँ कहने वाले पाखंडियों की भाषा. यह पाखंड दिखा-दिखा कर ही गत 11 वर्ष से इस देश की एकता और अखंडता को खतरा पैदा करने वाले लोगों को यह भाषण शोभा नहीं देता है. क्योंकि पंद्रह अगस्त 2014 के लालकिले के प्रथम संबोधन में प्रधानमंत्री ने संपूर्ण भारत की जनता को टीम इंडिया की उपमा दी थी. लेकिन चंद दिनों के भीतर उसी टीम इंडिया में से कुछ लोगों को मॉब लिंचिग में मारने का क्रम जारी हुआ. प्रधानमंत्री ने खुद उन्हें गुंडों की उपमा दी. लेकिन गुंडों के ऊपर क्या कार्रवाई हुई यह विचार का विषय है.

एक तरफ राजदंड के सामने साष्टांग दंडवत, और दूसरी तरफ बेटी बचाओ अभियान के नारे लगाने वाले देश की राजधानी में 35 दिनों से अधिक समय तक अपने साथ हुए यौन शोषण करने वाले गुनाहगारों के ऊपर कार्रवाई करने की मांग करने वाली बच्चियों को दिल्ली पुलिस के द्वारा जबरन धरनास्थल से उठाकर गुप्त जगहों पर ले जाने की हरकतों से क्या संदेश दे रहे हैं ?

महिला खिलाड़ियों ने भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और उनके सहयोगी कितने आपत्तिजनक यौन शोषण के गुनाह कर चुके हैं, और उन बच्चियों में एक बच्ची सोलह साल के नीचे उम्र की है. जिसके साथ किया गया गुनाह पॉक्सो के कानून के दायरे में आता है. इन सभी बच्चियों ने वैश्विक स्तर पर भारत का मान बढ़ाया है. किसी ने ऑलंपिक में तो किसी ने एशियाई स्तर के खेल में भारत को पदक दिलाया है. आज बृजभूषण सिंह के खिलाफ पॉक्सो अंतर्गत दायर मुकदमा खारिज करने की खबर है.

यदि इतनी आंतराष्ट्रीय स्तर पर नाम की हुई बच्चियों के साथ इस तरह के अन्यायपूर्ण व्यवहार होने के बाद भी भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय ने जब एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया तब एफआईआर दर्ज किया. लेकिन जिस अपराधियों के ऊपर कार्रवाई होनी चाहिए वह आराम से आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुए घूम रहा है और अब तो बाईज्जत बरी कर दिया गया है.

28 मई 2023 को भारत के नए संसद भवन का उद्घाटन एक तरफ हो रहा था, प्रधानमंत्री दुनिया के जनतंत्र की माँ जैसे उपमा देते हुए भाषण दे रहे थे. और कुछ मीटर की दूरी पर उसी मां की संतानों के साथ क्या व्यवहार किया जा रहा है ? क्या यह प्रधानमंत्री को मालूम नहीं है ?

और यह कम लगा तो उसी क्षण संसद भवन से चंद मीटर की दूरी पर पैंतीस दिनों से अपने ऊपर हुए अत्याचारों के खिलाफ, न्याय मांगने के लिए बैठी हुई बच्चियों को दिल्ली पुलिस की मदद से जिस तरह से शारीरिक हमले करते हुए, धरनास्थल से हटाकर अज्ञात जगहों पर ले जाने की कृति भारत के लोकतंत्र की धज्जियाँ उड़ाने का कृत्य है. पूरा विश्व यह देखकर हतप्रभ है, कि एक तरफ 145 करोड़ आबादी के विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के देश की नई संसद भवन का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री विश्व के लोकतंत्र की माँ है बोल रहे थे और उसी क्षण इस देश की बच्चियां पैंतीस दिनों से भी अधिक समय से अपने ऊपर हुए अन्याय के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग कर रही थीं. उन्हें न्याय देना तो दूर की बात है, उल्टा पुलिस के द्वारा जबरदस्ती से शारीरिक और उनके धरना स्थल के तंबू को तोड़कर उनके व्यक्तिगत सामान को फेंककर, उन बच्चियों को अज्ञात जगह पर ले जाने का कृत्य क्या भारतीय लोकतंत्र की धज्जियाँ उड़ाने का कृत्य, और उद्घाटन समारोह में भारत विश्व के लोकतंत्र की माँ जैसी बात करना पाखंड नहीं है ?

भारतीय कुश्तीगीर संघ का पूर्व अध्यक्ष ऐसा कौन पहलवान है ? जिससे भारत का संविधान भी डर रहा है ? सर्वोच्च न्यायालय के कार्रवाई करने के लिए कहने के बावजूद उसके ऊपर कार्रवाई तो दूर की बात है. उल्टा पीड़ित लड़कियों को दिल्ली पुलिस ने जिस तरह से शारीरिक हमले जैसी कार्रवाई की, उससे आपके बेटी बचाओ अभियान की धज्जियाँ उड रही थीं. और विश्व लोकतंत्र की माँ की सरेआम बेइज्जती हो रही थी. और अब तो मामले को रफा-दफा कर दिया गया है.

डॉ. सुरेश खैरनार

29 मई, 2025, नागपुर.