आईईईएफए की रिपोर्ट: बांग्लादेश-भारत मैत्री परियोजना वित्तीय अव्यवस्था की ओर

  • क्या है रामपाल कोयला आधारित विद्युत परियोजना?
  • फंसी हुई संपत्ति बनने का खतरा और करदाताओं पर बोझ
  • भारतीय एक्जिम बैंक के लिए वित्तीय जोखिम और अंतरराष्ट्रीय दबाव
  • सुंदरवन के पास परियोजना से पर्यावरणीय संकट की आशंका
  • चरम मौसमी परिस्थितियों से उत्पन्न खतरे और अवैज्ञानिक योजना
  • सौर ऊर्जा जैसे विकल्पों से बांग्लादेश-भारत के लिए बेहतर संभावनाएँ

इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (IEEFA) ने अपनी रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि बांग्लादेश-भारत मैत्री परियोजना के तहत रामपाल कोयला आधारित विद्युत संयंत्र वित्तीय अव्यवस्था और पर्यावरणीय संकट का कारण बन सकता है। सुंदरवन के पास स्थित यह परियोजना करदाताओं पर भारी बोझ डालेगी और अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय एक्जिम बैंक की साख पर भी असर डाल सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि सौर ऊर्जा जैसे विकल्प अधिक सुरक्षित और टिकाऊ समाधान हो सकते हैं।

नई दिल्ली, 17 जून 2016 : इंस्‍टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्‍स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (Institute of Energy Economics and Financial Analysis आईईईएफए) ने आशंका जताई है कि बांग्‍लादेश-भारत मैत्री परियोजना (Bangladesh-India Friendship Project) वित्‍तीय अव्‍यवस्‍था के साथ खत्‍म हो सकती है।

आईईईएफए द्वारा आज जारी की गयी रिपोर्ट के अनुसार सुंदरवन के सदाबहार जंगल के पास स्थित खुलना शहर के नजदीक एक कोयला आधारित विद्युत संयंत्र स्‍थापित किया जाना प्रस्‍तावित है। यह भारत और बांग्‍लादेश की सरकारी इकाइयों का संयुक्‍त उपक्रम है। इस परियोजना के लिये भारी अनुदान दिया गया है, जो निवेशकों, करदाताओं और उपभोक्‍ताओं के लिये बड़ा जोखिम लेकर आया है और हालात को देखकर लगता है कि यह परियोजना एक फंसाऊ सम्‍पत्ति बनने जा रही है।

इक्विटोरियल्‍स के प्रबन्‍धन साझीदार और इस रिपोर्ट के लेखक जय शारदा ने कहा कि

“हमने रामपाल कोयला आधारित विद्युत परियोजना को वित्‍तपोषण, निवेश, उत्‍पादन लागत, ईंधन की आपूर्ति और चरम मौसमी परिस्थितियों से पैदा होने वाले जोखिमों के पैमाने पर जांचा-परखा है। यह परियोजना इन सभी मोर्चों पर नाकाम साबित हुई है। इससे निवेशकों के लिये स्‍पष्‍ट जोखिम भी उजागर हुआ है।”

क्या है रामपाल कोयला आधारित विद्युत परियोजना (What is Rampal coal-fired power project)

भारत सरकार के व्‍यापक मालिकाना हक वाला नेशनल थर्मल पॉवर कॉरपोरेशन (National Thermal Power Corporation) बांग्‍लादेश पॉवर डेवलपमेंट बोर्ड (बीपीडीबी) के साथ मिलकर एक ऊर्जा संयंत्र की स्‍थापना कर रहा है। 50-50 प्रतिशत की भागीदारी वाला यह संयुक्‍त उपक्रम बांग्‍लादेश-इंडिया फ्रेंडशिप पॉवर कम्‍पनी (बीआईएफपीसीएल) के नाम से जाना जाता है। नवगठित बीआईएफपीसीएल 30 प्रतिशत इक्विटी (54.6 करोड़ अमेरिकी डॉलर) का निवेश करेगी और भारत सरकार इंडिया एक्जिम बैंक के जरिये 70 प्रतिशत कर्ज (1.6 अरब अमेरिकी डॉलर) मुहैया कराएगी।

एक फंसाऊ सम्‍पत्ति बनने का जोखिम (The risk of becoming a trapping property)

इस परियोजना के जरिये उत्‍पादित होने वाली बिजली की लागत बांग्‍लादेश में पैदा की जाने वाली बिजली की औसत लागत से 32 प्रतिशत ज्‍यादा होगी। वह भी ऐसा तब होगा जब भारत और बांग्‍लादेश इस पर एक के बाद एक सब्सिडी देंगी और यह माना जाएगा कि औसत संयंत्र लोड फैक्‍टर (पीएलएफ) 80 प्रतिशत होगा।

यह देखने वाली बात है कि चीन, अमेरिका और भारत में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों का पीएलएफ 50 से 60 प्रतिशत ही है। बांग्‍लादेश में वर्ष 2014-15 में औसत पीएलएफ दर 63.9 प्रतिशत थी। ऐसे में यह सोचने की कोई वजह ही नहीं है कि रामपाल परियोजना इन आंकड़ों को पीछे छोड़ेगी।

सरकारी अनुदान के तौर पर तीन अरब डॉलर से ज्‍यादा का खर्च

पहला, इंडियन एक्जिम बैंक से बाजार के मुकाबले कम ब्‍याज दर पर कर्ज दिये जाने का सीधा मतलब 98 करोड़ 80 लाख डॉलर की सब्सिडी से है जो प्रभावी रूप से भारतीय करदाताओं को बांग्‍लादेशी उपभोक्‍ताओं को चुकानी होगी।

दूसरा, बांग्‍लादेश की सरकार ने इस संयंत्र के लिये आयकर में 15 साल के लिये आयकर माफ करने की पेशकश रखी है। छूट की यह धनराशि 93 करोड़ 60 लाख डॉलर के बराबर होगी।

तीसरा, बांग्‍लादेश रखरखाव निकर्षण के जरिये सालाना दो करोड़ 60 लाख की सब्सिडी देगा ताकि संयंत्र के लिये कोयले की सुपुर्दगी सुनिश्चित हो सके।

शारदा ने कहा “रामपाल परियोजना को भारी अनुदान दिये जाने की वजह से भारतीय करदाताओं को बेइंतहा बोझ उठाना पड़ेगा। इससे अन्‍य परियोजनाएं भी प्रभावित हो सकती हैं।”

भारत एक्जिम बैंक पर विदेशी वित्‍तपोषण खोने का खतरा

एक्जिम बैंक अपने कामकाज के लिये अन्‍तर्राष्‍ट्रीय बाजारों में विदेशी करेंसी उधार लेने पर काफी हद तक निर्भर करता है। वित्‍तीय वर्ष 2015 में कुल उधार करेंसी में से 41.5 प्रतिशत हिस्‍सा विदेशी करेंसी का था। बहरहाल, अन्‍तर्राष्‍ट्रीय बाजारों का मन अब परियोजनाओं या कोयला आधारित बिजली परियोजनाओं का वित्‍तपोषण करने से हटने लगा है।

आस्‍ट्रेलेशिया में आईईईएफए के निदेशक (ऊर्जा वित्‍त अध्‍ययन) टिम बकली ने कहा “नार्वेजियन गवर्नमेंट पेंशन फंड्स काउंसिल ऑफ एथिक्‍स ने रामपाल परियोजना का प्रायोजक बनने की वजह से एनटीपीसी को अपने निवेश दायरे से बाहर कर दिया है। इसी तरह यह मानने का भी कोई कारण नहीं है कि भविष्‍य में एक्जिम बैंक के खिलाफ अन्‍य निवेश कोषों के जरिये इसी तरह की कार्रवाई नहीं की जाएगी।”

खासकर प्रतिस्‍पर्द्धी लागत और कम कार्बन उत्‍सर्जन वाले विकल्‍प उपलब्‍ध होने के बावजूद कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों को लगातार सरकारी अनुदान दिया जा रहा है। रामपाल परियोजना में भी इस सिलसिले को जारी रखा जा रहा है, ऐसे में यह परियोजना सतत विकास के सिद्धांतों का भी खण्‍डन करती है।

आर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एण्‍ड डेवलपमेंट (ओईसीडी) के सदस्‍य देशों (Organization for Economic Co-operation and Development (OECD) member countries), बड़ी संख्‍या में बहुपक्षीय बैंकों और निर्यात क्रेडिट एजेंसियों ने पहले ही कोयला आधारित संयंत्रों तथा उनसे सम्‍बन्धित गतिविधियों का वित्‍तपोषण रोकने की प्रतिज्ञा की है। ऐसे हालात में इंडियन एक्जिम बैंक बहुत जोखिम भरे हालात से घिर जाएगा। जब 12 साल का प्रस्‍तावित कर्ज परिपक्‍व हो जाएगा तो बैंक को रामपाल परियोजना के पुनर्वित्‍तपोषण के इच्‍छुक अन्‍य अन्‍तर्राष्‍ट्रीय वित्‍तीय संस्‍थान ढूंढने से भी नहीं मिलेंगे। ऐसी स्थिति में एक्जिम बैंक के पास फंसाऊ कर्ज का ढेर हो जाएगा।

सुंदरवन से 14 किलोमीटर की दूरी

प्रस्‍तावित रामपाल परियोजना की स्‍थापना दक्षिण-पश्चिमी बांग्‍लादेश के गांगीय टाइडल फ्लडप्‍लेन में प्रस्‍तावित है। यह स्‍थान सुंदरवन के अति संवेदनशील और सदाबहार जंगल से 14 किलोमीटर उत्‍तर में स्थित है। सुंदरवन यूनेस्‍को द्वारा घोषित विश्‍व धरोहर है और विलुप्ति की कगार पर खड़े बंगाल टाइगर्स का घर है।

सुंदरवन के नजदीक कोयला आधारित इतना बड़ा विद्युत संयंत्र (Such a large coal-based power plant near Sundarbans) लगाने का मतलब पारिस्थितिकी के लिहाज से संवेदनशील उस क्षेत्र के लिये बरबादी बुलाना है जो अनूठी जैव-विविधता का घर है। इस संयंत्र में इस्‍तेमाल के लिये आने वाला कोयला अकरम प्‍वाइंट से लाया जाएगा, जो सुंदरवन में ही स्थित है। इस कोयले को छोटी नावों पर लादकर पसूर नदी के रास्‍ते रामपाल परियोजना स्‍थल तक लाया जाएगा। वे नाव सुंदरवन से होती हुई रोजाना 400-500 फेरे करेंगी। बीआईएफपीसीएल को अकरम प्‍वाइंट से परियोजना स्‍थल के बीच नावें लाने और ले जाने के लिये 36 किलोमीटर क्षेत्र में फैली पसूर नदी को चौड़ा करने की जरूरत पड़ेगी।

बकली के मुताबिक “रामपाल परियोजना से जुड़ना इक्‍वेटर सिद्धांतों का स्‍पष्‍ट उल्‍लंघन है। इससे अन्‍तर्राष्‍ट्रीय बाजारों से प्रतिस्‍पद्धी दामों पर उधार लेने की एक्जिम बैंक की क्षमता के लिये जोखिम उत्‍पन्‍न होगा।”

चरम मौसमी परिघटनाओं की आशंका वाले क्षेत्र में स्‍थापना

बांग्‍लादेश के ‘विंड रिस्‍क जोन’ में रामपाल परियोजना का स्‍थापित होना एक सुस्‍पष्‍ट वित्‍तीय जोखिम की तरफ इशारा करता है। ऐसा इसलिये है क्‍योंकि इस क्षेत्र में मौसम की चरम स्थितियां जैसे कि तूफान इत्‍यादि आने की प्रबल सम्‍भावनाएं होती हैं, नतीजतन इससे परियोजना को नुकसान हो सकता है। एक सामान्‍य से तूफान का सामना करने के लिये भी कोई पुख्‍ता योजना नहीं है। इसे देखते हुए इस क्षेत्र में बिजली परियोजना लगाने का फैसला अवैज्ञानिक और प्रयोग मात्र नजर आता है।

शारदा ने कहा “हमारा मानना है कि तंत्र विविधता के जरिये बांग्‍लादेश ऊर्जा सुरक्षा निर्माण के लिहाज से बेहतर स्थिति में होगा, वहीं भारत अगर वैकल्पिक सौर ऊर्जा समाधान को बढ़ावा देता है तो वह उसके बेहद कामयाब सौर अभियान का फायदा भी ले सकता है। इससे भारतीय निर्यात को बढ़ावा मिलेगा और बांग्‍लादेश के अक्षय ऊर्जा कार्यक्रम में सहयोग देकर भारत सरकार अपने महत्‍वाकांक्षी अभियान मेक-इन-इंडिया को भी ताकत दे सकती है। भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्‍स (भेल) के लिये यह बांग्‍लादेश में पुरानी और प्रदूषणकारी कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के मुकाबले बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा संयंत्रों की श्रंखला स्‍थापित करना कहीं ज्‍यादा आसान होगा।”