#RSS भारतीय समाज और संस्कृति की मुख्य धारा का हिस्सा कभी रहा ही नहीं
#RSS भारतीय समाज और संस्कृति की मुख्य धारा का हिस्सा कभी रहा ही नहीं
#RSS के लिए हिंदू धर्म हमेशा राजनीति का महज एक हथियार रहा है
महेंद्र मिश्रा
क्या यह अचरज वाली बात नहीं है कि जो संगठन अपने को मूल रूप से सांस्कृतिक बताता है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद जिसका लक्ष्य है। धर्म, संस्कृति, वेद, पुराण जिसकी जुबान पर रहते हैं। उसकी स्थापना के 90 बरस हो गए हैं। बावजूद इसके वह एक ढंग का साहित्यकार भी नहीं पैदा कर सका। क्या उसकी कोख इस कदर बंजर है? ये कैसी संस्कृति के पैरोकार हैं? किस धर्म के मानने वाले हैं? किस इतिहास की बात करते हैं?
इस देश की धरती बहुत उर्वर रही है। इसने हजारों-हजार साहित्यकार, लेखक, रंगकर्मी और नाटककार समाज को दिए हैं। इन सबको इसी देश की संस्कृति, सभ्यता और परंपरा की मिट्टी ने पैदा किया, पाला-पोसा और फिर बड़ा किया। लेकिन इनमें संघ को अपनी विरासत मानने वाला कोई नहीं।
दरअसल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ #RSS भारतीय समाज और संस्कृति की मुख्य धारा का हिस्सा कभी रहा ही नहीं। हिंदू धर्म से भी इसका नाता केवल राजनीतिक ही रहा है। उसके लिए हिंदू धर्म हमेशा राजनीति का महज एक हथियार रहा है। और वो बीजेपी के जरिये उसको इस्तेमाल करता रहा है। भारतीय इतिहास की अच्छाइयों के मुकाबले इसे बुराइयां ज्यादा पसंद रही हैं। इतिहास के ही कचरों को उठाकर इसने अपनी एक झूठी-सही सोच बना ली है जिसे वह पूरे देश और समाज पर थोपना चाहता है।
इसी मौलिकता के अभाव के चलते वह न तो कोई साहित्यकार पैदा कर सका। न ही समाज के किसी और क्षेत्र में उसकी मदद से कोई दूसरी सृजनात्मक-रचनात्मक धारा निकल सकी। सच्चाई और ईमानदारी की जमीन की जगह साजिशें और झूठ ही इसके हमसफर रहे हैं। लिहाजा झूठ और अफवाह इसके वैचारिक और सांगठनिक जीवन के अभिन्न हिस्से बन गए।
पूरे जीवन में इसने उधार के लोगों से ही अपना काम चलाया। और यही सिलसिला अभी तक जारी है। लेकिन यह उधारी भी कितने दिनों तक?


