पहलगाम हमला: सांप्रदायिक कथानक बनाम कश्मीरी एकजुटता – वास्तविक प्रश्न
Pahalgam Attack: Communal Narrative vs Kashmiri Solidarity – The Real Questions पहलगाम हमले की चौंकाने वाली प्रकृति आतंक के बीच कश्मीरी नागरिकों ने दिखाई मानवता आदिल हुसैन शाह - कश्मीर को जिस हीरो की जरूरत है कश्मीर के नागरिकों की जमीनी हकीकत भारत-पाकिस्तान शांति के लिए एक ईमानदार अपील पहलगाम हमले में आतंकवादियों ने गोलीबारी...

some questions about pahalgam attack
Pahalgam Attack: Communal Narrative vs Kashmiri Solidarity – The Real Questions
पहलगाम हमले की चौंकाने वाली प्रकृति
आतंक के बीच कश्मीरी नागरिकों ने दिखाई मानवता
आदिल हुसैन शाह - कश्मीर को जिस हीरो की जरूरत है
कश्मीर के नागरिकों की जमीनी हकीकत
भारत-पाकिस्तान शांति के लिए एक ईमानदार अपील
पहलगाम हमले में आतंकवादियों ने गोलीबारी से पहले पीड़ितों से धार्मिक आयतें पढ़ने को क्यों कहा? इसके बावजूद, कश्मीरियों ने पर्यटकों को बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाली। मानवता, प्रतिरोध और सांप्रदायिक आख्यानों पर सवाल उठाए जाने की अनकही कहानियों को जानें।
पहलगाम हमले को लेकर कुछ सवाल.
आतंकवादियों द्वारा किया गया पहलगाम हमला शत प्रतिशत सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का जीता जागता उदाहरण नजर आ रहा है. गोली चलाने के पहले धर्म पूछना या कलमा पढ़ने के लिए कहना इसका मतलब क्या है ?
लेकिन कश्मीर के आम लोगों ने इसे पूरी तरह से नकार दिया है. वहां पर विभिन्न प्रकार की सेवा देने वाले कश्मीरी लोगों ने अपनी जान पर खेलकर यात्रियों को बचाने की कोशिश की है.
इस हादसे के बाद श्रीनगर के ऑटो ड्राइवरों ने अपने ऑटो से आए हुए यात्रियों को वापस जाने के लिए हवाई अड्डे से लेकर रेलवे स्टेशन पर छोड़ने के लिए फ्री सर्विस देने की पहल, उसका प्रमाण है. उन्होंने अपने ऑटो के कांच पर फ्री सर्विस के स्टिकर लगाए हैं.
सबसे अहम बात हादसे की जगह पर मारे गए 26 यात्रियों में एक नाम आदिल हुसैन शाह है, जो अपने टट्टू से यात्रियों को ले-आने की सवारी करता था. मंगलवार को आतंकियों के हमले के दौरान वह खुद आतंकवादियों से भिड़ गया और उन्हें बोला कि "इन्हें मत मारो, कश्मीर के मेहमान हैं". और उसने आतंकवादियों के पास की एके - 47 बंदूक छीनने की कोशिश की तो आतंकवादियों ने उसकी छाती पर तीन बार गोली दागकर उसे मार डाला. आदिल अपने माँ बाप का इकलौता बेटा था. इसी तरह और दूसरे ने भाजपा के पार्षद और उसके परिवार को सही-सलामत बचाने में भूमिका निभाई है.
हमारे देश में पिछले कुछ सालों से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बहुत बड़े पैमाने पर करने में सांप्रदायिक तत्वों को कामयाबी मिली है. लेकिन मैंने पचास वर्ष से अधिक समय से कश्मीर में आने - जाने के दौरान काजीगुंड से लेकर श्रीनगर तथा विभिन्न जगहों पर यात्रियों को विभिन्न प्रकार की सेवा देने वाले होटल वाले से लेकर दुकानदार, टॅक्सी - ड्रायवरों से लेकर नौकाचालकों से लेकर श्रीनगर विश्वविद्यालय के छात्र और शिक्षकों से लेकर वकील डॉक्टरों तथा हुर्रियत कॉंफ्रेंस के नेताओं, जिनमें मीरवाईज उमर फारुख से लेकर अन्य कश्मीर के नागरिकों साथ बातचीत में हमेशा ही आतंकवादियों के खिलाफ बोलते हुए देखा है. क्योंकि कश्मीर की अर्थव्यवस्था का दारोमदार पर्यटन व्यवसाय ही है. और कश्मीर सरकार के विभागों में पर्यटन मंत्रालय को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है. इसलिए आतंक के माहौल में कोई भी पर्यटक नहीं जाता, इसलिए कश्मीर के ज्यादातर लोग लोग शांति और सद्भाव ही चाहते हैं.
2016 के अगस्त में बुरहान वानी की हत्या के बाद हुए बंद में मैं दो हफ्ते जम्मू-कश्मीर में रह कर आया हूँ. उस दौर में मुझे कश्मीर टाइम्स के श्रीनगर एडिशन के संपादक जहूर साहब ने कहा कि "आप इतने नाजुक हालात में कश्मीर के चप्पे-चप्पे में घूम रहे हैं. यह देख कर सीनियर गिलानी आपसे मिलना चाहते हैं. तो आप उनसे मिलकर ही कश्मीर छोड़िए." और मैं कश्मीर छोड़ने के पहले गिलानी के साथ मिलने के लिए उनके घर चला गया. तो वह हाउस अरेस्ट थे, तो सिक्युरिटी अफसर ने वायरलेस से अपने वरिष्ठ अफसर को फोन कर के मेरा पहचान पत्र पढ़कर मेरा नाम और पता बताया और उसने कहा "कि हमारे वरिष्ठ अफसर ने आपको गिलानी से मिलने की इजाजत दी है. लेकिन बड़ी हैरत की बात है कि आपसे कुछ समय पहले ही यशवंत सिन्हा आकर गए, लेकिन उन्हें नहीं जाने दिया. और आपको मिलने दे रहे हैं." और उसने खुद ही कहा कि आपके साथ मुझे सेल्फी लेना है." हो सकता यह सेल्फी भी उसके ड्यूटी का हिस्सा हो. खैर गिलानी से मिलते ही उन्होंने कहा कि "अल्लाह आपको सलामत रखे. आप अपनी जान की परवाह किए बिना इतने कड़े बंद में भी दो हफ्ते से वैली में खेत - खलिहानों से लेकर लोगों को मिल रहे हैं. यह बहुत ही अच्छी बात है". मैंने उन्हें कहा कि "आज अगस्त से लेकर अब तक दो महीने हो गए हैं. बंद चल रहा है. लोगों को अस्पताल में ले जाने वाले वाहनों को भी रोका जा रहा है. क्या आपको लगता नहीं कि अब बंद समाप्त होना चाहिए ?" तो उन्होंने कहा कि अब लोग मेरी बात नहीं मान रहे हैं."
यह बात उनके मुंह से सुनकर मैं समझ गया था कि तथाकथित कश्मीरी अलगाववादियों से लोगों का विश्वास कमजोर हो गया है. और कुछ लोगों को तो मैंने इन सभी को कोसते हुए भी देखा है, कि इन्हें इस तरह के बंद से कोई परेशानी नहीं है. परेशान तो हम लोग हैं. यह तो दोनों सरकारों से मिले हुए हैं इनके बाल बच्चे विदेशों में पढ रहे हैं. परेशानी तो हम लोग झेल रहे हैं. हमारे बच्चों के स्कूल बंद हैं, और रोजी-रोटी के लिए रोजगार के लिए घर से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं. नेताओं को सब कुछ घरों में रहते हुए भी सब सुविधाएं मिल रही हैं.
और ए. एस. दुलत जो आई बी के प्रमुख थे, और उसके पहले पच्चीस साल से अधिक समय तक कश्मीर में तैनात रहे हैं, उन्होंने अपनी किताब 'कश्मीर द वाजपेयी इयर्स' में आतंकवाद के बारे में जो लिखा है, वो बहुत ही चौंकाने वाला है. उन्होंने दोनों सरकारी एजेंसियों की साठगांठ से क्या - क्या किया है, इसका खुलासा किया है. जो पढ़ने के बाद 2016 से ही मैंने उन पर कार्रवाई करने की मांग की है. लेकिन कारर्वाई तो दूर की बात है. उन्होंने और पाकिस्तान के आईएसआई के पूर्व प्रमुख असद दुर्रानी ने मिलकर लिखी हुई 'स्पाई क्रॉनिकल' शीर्षक की किताब में तो और भी हैरतअंगेज तथ्यों को उजागर किया है. और दोनों लेखक अपने - अपने देश की सबसे बड़ी एजेन्सियों के सर्वोच्च पदों पर अपने जीवन का सबसे बड़ा समय देकर काम कर चुके हैं.
मैं इस बहाने पाकिस्तान के आम लोगों को भी निवेदन कर रहा हूँ कि पिछले 78 सालों से दोनों देशों के बीच में बंटवारा होने के बावजूद सुरक्षा के लिए जो बजट में खर्च हो रहा है. और दोनों तरफ के लोगों की जाने जा रही है. वह और भी संगीन बात है. क्या हम एक दूसरे से आपस में बात कर के जो भी विवाद है, उन्हें हल नहीं कर सकते ? दोनों देशों की अपने देश के लोगों के लिए, प्राथमिकता में अपने - अपने देश के लोगों को बेहतर जीवन देने के लिए यह रक्षा के लिए अपना संसाधन बर्बाद करना कब तक चलेगा ? राजनीति करने वाले लोगों की राजनीतिक रोटियां सेंकी जा रही हैं लेकिन किस कीमत पर ?
डॉ. सुरेश खैरनार,
24 अप्रैल 2025, नागपुर.


