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जस्टिस यशवंत वर्मा
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जस्टिस यशवंत वर्मा (Justice Yashwant Verma) दिल्ली हाईकोर्ट के एक वरिष्ठ न्यायाधीश थे जो वर्तमान में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में पदस्थ हैं, जिन्होंने कई संवेदनशील मामलों पर ऐतिहासिक निर्णय दिए हैं। न्यायिक स्वतंत्रता, संविधान की व्याख्या, नागरिक अधिकारों और प्रेस की स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में उनकी टिप्पणी और फैसले अक्सर चर्चा में रहते हैं। हस्तक्षेप न्यूज़ इस टैग के अंतर्गत जस्टिस वर्मा से जुड़ी खबरें, फैसले, विश्लेषण और अदालती टिप्पणियाँ प्रस्तुत करता है।
जस्टिस यशवंत वर्मा के अहम फ़ैसले
जस्टिस यशवंत वर्मा इलाहाबाद और दिल्ली हाई कोर्ट में पिछले लगभग 11 साल से जज के रूप में काम कर रहे हैं. इस दौरान उन्होंने कई अहम मामलों की सुनवाई की और फ़ैसले दिए.
वर्ष 2018 में जस्टिस यशवंत वर्मा ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान डॉ. कफ़ील ख़ान को जमानत दी थी.
अगस्त, 2017 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में कथित तौर पर ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित होने के कारण 60 बच्चों की जान चली गई थी. इस मामले में डॉ. कफ़ील ख़ान पर चिकित्सीय लापरवाही का आरोप लगा था और उन्हें सात महीने तक हिरासत में रहना पड़ा था.
तब जस्टिस वर्मा ने डॉ. ख़ान को ज़मानत देते हुए कहा था, "ऑन रिकॉर्ड ऐसी कोई सामग्री नहीं मिली है जिससे यह बात साबित हो सके कि याचिकाकर्ता (कफ़ील ख़ान) ने चिकित्सीय लापरवाही की है."
उनके इस फ़ैसले ने चिकित्सीय जवाबदेही, सरकारी लापरवाही और मानवाधिकारों के मुद्दों पर लोगों का ध्यान खींचा था.
ख़ारिज की कांग्रेस की याचिका : लोकसभा चुनाव 2024 से पहले मार्च में कांग्रेस पार्टी ने इनकम टैक्स को लेकर एक याचिका दायर की थी. दरअसल, कांग्रेस पार्टी को आयकर विभाग ने 13 फरवरी 2024 को 100 करोड़ से ज़्यादा बकाया टैक्स की वसूली के लिए नोटिस भेजा था.
आयकर विभाग ने कांग्रेस पर 210 करोड़ का जुर्माना लगाया था और कांग्रेस का दावा था कि उसके बैंक खाते फ्रीज़ कर दिए गए. इस कार्रवाई के ख़िलाफ़ कांग्रेस नेता और वकील विवेक तन्खा ने इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल में याचिका लगाई थी लेकिन इसे ख़ारिज कर दिया गया.
इसके बाद कांग्रेस ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. मामले की सुनवाई जस्टिस यशवंत वर्मा और जस्टिस पुरूषेन्द्र कुमार कौरव की बैंच ने की. हाई कोर्ट ने कांग्रेस की याचिका ख़ारिज करते हुए इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल के आदेश को बरकार रखा.
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की शक्तियों पर बड़ा पैसला : जनवरी 2023 में जस्टिस वर्मा की एकल पीठ ने फ़ैसला सुनाया कि ईडी मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत मनी लॉन्ड्रिंग के अलावा किसी दूसरे अपराध की जांच नहीं कर सकती. जांच एजेंसी खुद से यह नहीं मान सकती कि कोई अपराध किया गया है.
जस्टिस वर्मा ने 24 जनवरी, 2023 को दिए गए फ़ैसले में कहा, "पूर्व निर्धारित अपराध की जांच और सुनवाई आवश्यक रूप से उस संबंध में क़ानून द्वारा सशक्त अधिकारियों द्वारा की जानी चाहिए."
इस फै़सले से ईडी के अधिकारों संबंधी सीमाओं पर स्पष्टता आई और इसे जांच शक्तियों के दुरुपयोग को रोकने की कोशिश के तौर पर देखा गया.
दिल्ली आबकारी नीति मामले की मीडिया रिपोर्टिंग : नवंबर, 2022 में दिल्ली के कथित शराब घोटाले में जस्टिस वर्मा आम आदमी पार्टी नेता और शराब नीति मामले में अभियुक्त विजय नायर की याचिका से संबंधित सुनवाई कर रहे थे. इस दौरान कथित ग़लत रिपोर्टिंग के लिए उन्होंने कुछ न्यूज़ चैनलों से जवाब मांगा था. नायर ने अपनी याचिका में अदालत को बताया था कि न्यूज़ चैनलों ने जांच एजेंसियों की संवेदनशील जानकारी सार्वजनिक डोमेन में लीक कर दी गई थी. इसके बाद अदालत ने न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (एनबीडीए) से कहा कि वह अपने सदस्य मीडिया कंपनियों को बुलाकर लीक हुई जानकारी और इसी तरह की अन्य जानकारी के स्रोतों के बारे में पूछताछ करे.
रेस्तरां बिल पर सर्विस चार्ज : जस्टिस वर्मा ने जुलाई, 2022 में केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) के दिशा-निर्देशों पर रोक लगा दी थी. इन दिशा-निर्देशों में कहा गया था कि रेस्तरां और होटल को बिल पर अपने ढंग से सर्विस चार्ज नहीं जोड़ना चाहिए और किसी अन्य नाम से सर्विस चार्ज नहीं वसूला जाना चाहिए. जस्टिस वर्मा का कहना था कि इस तरह के सर्विस चार्ज को मेनू में प्रमुखता से दिखाया जाना चाहिए.
जस्टिस वर्मा ने आदेश दिया, "याचिकाकर्ता एसोसिएशन के सदस्यों को यह सुनिश्चित करना होगा कि क़ीमत और टैक्स के अतिरिक्त प्रस्तावित सर्विस चार्ज लगाया जाए. ग्राहकों को उसका भुगतान करने के दायित्व को मेनू या दूसरी जगहों पर उचित रूप से और प्रमुखता से दिखाया जाए."
हालांकि, सितंबर 2023 में इस आदेश को जस्टिस प्रतिभा सिंह ने पलट दिया और "सर्विस चार्ज" शब्द को "स्टाफ़ कॉन्ट्रिब्यूशन" से बदल दिया, साथ ही कहा कि ऐसा कॉन्ट्रिब्यूशन पूरे बिल के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता है.
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