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मुझे मंज़ूर गर तर्क-ए-तअल्लुक है रज़ा तेरी/ मगर टूटेगा रिश्ता दर्द का आहिस्ता आहिस्ता
मुझे मंज़ूर गर तर्क-ए-तअल्लुक है रज़ा तेरी/ मगर टूटेगा रिश्ता दर्द का आहिस्ता आहिस्ता
दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फत… मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफा आएगी
दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फत… मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफा आएगी





