संचार साथी ऐप पर प्राइवेसी को लेकर घिरती सरकार

  • प्रियांका गांधी का आरोप—“निगरानी के नाम पर लोकतंत्र कमजोर किया जा रहा”
  • साइबर सिक्योरिटी बनाम डिजिटल स्वतंत्रता—कांग्रेस ने उठाए गंभीर सवाल
  • विपक्ष की मांग—संसद में पारदर्शी चर्चा और स्पष्ट जवाब

नई दिल्ली, 2 दिसंबर 2025. मोबाइल हैंडसेट पर संचार साथी ऐप को प्री-इंस्टॉल करने के दूरसंचार विभाग (DoT) के निर्देशों ने सियासी भूचाल ला दिया है। कांग्रेस महासचिव और सांसद प्रियंका गांधी ने इसे नागरिक अधिकारों पर सीधा हमला बताते हुए केंद्र सरकार पर कड़ी आलोचना की है।

प्रियंका गांधी ने कहा कि संचार साथी ऐप महज़ उपभोक्ता सुरक्षा का औज़ार नहीं, बल्कि “एक जासूसी व्यवस्था” का हिस्सा बनकर उभर रहा है, जो नागरिकों की निजी ज़िंदगी में अभूतपूर्व दखल देता है।

प्रियंका गांधी ने तीखे शब्दों में कहा, “संचार साथी एक जासूसी ऐप है, और साफ़ तौर पर यह मज़ाकिया है। नागरिकों को प्राइवेसी का अधिकार है। हर किसी को परिवार और दोस्तों को मैसेज भेजने की प्राइवेसी का अधिकार होना चाहिए, बिना सरकार की नज़र में आए”।

सरकार पर तानाशाही के रास्ते पर बढ़ने का आरोप

प्रियंका गांधी ने आरोप लगाया कि यह सिर्फ मोबाइल फोन की निगरानी तक सीमित नहीं है, बल्कि सरकार एक ऐसे ढांचे की स्थापना कर रही है जो लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर दे।

उन्होंने कहा—

“यह सिर्फ़ टेलीफ़ोन पर जासूसी नहीं है। वे इस देश को हर तरह से तानाशाही में बदल रहे हैं। संसद इसलिए काम नहीं कर रही है क्योंकि सरकार किसी भी चीज़ पर चर्चा करने से मना कर रही है। विपक्ष पर इल्ज़ाम लगाना बहुत आसान है, लेकिन वे किसी भी चीज़ पर चर्चा नहीं होने दे रहे हैं, और यह डेमोक्रेसी नहीं है।”

“फ़्रॉड रिपोर्टिंग के नाम पर निगरानी की कोशिश”

कांग्रेस महासचिव ने चेतावनी दी कि साइबर सिक्योरिटी के बहाने नागरिकों की डिजिटल स्वतंत्रता पर खतरा मंडरा रहा है।

“फ़्रॉड की रिपोर्ट करने और यह देखने के बीच एक बहुत पतली लाइन है कि भारत का हर नागरिक अपने फ़ोन पर क्या कर रहा है। इस तरह से काम नहीं करना चाहिए। साइबर सिक्योरिटी महत्वपूर्ण है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यह हर नागरिक के फ़ोन में घुसने का बहाना बने।”

उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी नागरिक को यह स्वीकार नहीं होगा कि सरकार उनके निजी संदेश और डिजिटल गतिविधियों पर नज़र रखे।

कांग्रेस का स्पष्ट रुख

कांग्रेस का कहना है कि संचार साथी जैसे प्री-इंस्टॉल्ड ऐप्स नागरिकों की सहमति, डेटा सुरक्षा और निगरानी के दायरे पर गंभीर प्रश्न खड़े करते हैं। विपक्ष ने मांग की है कि सरकार संसद में इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा कराए और ऐप की कार्यप्रणाली, उद्देश्य तथा डेटा उपयोग के बारे में साफ-साफ जवाब दे।