क्या यूपी में अखिलेश के सामने राहुल को छोटा दिखाने में लगी है यूपी कांग्रेस ?
अमलेन्दु उपाध्याय का विश्लेषण — क्या उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अंदरूनी खेल से राहुल गांधी की लोकप्रियता को अखिलेश यादव के सामने कमज़ोर किया जा रहा है? भारत जोड़ो न्याय यात्रा, सपा-कांग्रेस सीट बंटवारे और गठबंधन राजनीति के पीछे की रणनीति पर नज़र

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कौन है पर्दे के पीछे का मोहरा?
अमलेन्दु उपाध्याय
राहुल गाँधी की मणिपुर से मुंबई तक की भारत जोड़ो न्याय यात्रा (Rahul Gandhi's Bharat Jodo Nyay Yatra from Manipur to Mumbai) कोई अराजनीतिक यात्रा नहीं है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक की भारत जोड़ो यात्रा भी कोई गैर राजनीतिक यात्रा नहीं थी। इसीलिए कांग्रेस कर्नाटक और तेलंगाना की जीत का श्रेय राहुल गांधी और उनकी यात्रा को देती है।
लोकसभा चुनाव से लगभग तीन महीने पहले राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा का उद्देश्य कांग्रेस के खोए जनाधार को जोड़ना और सोए कार्यकर्ताओं को चुनाव के लिए तैयार करना ही माना जाएगा। उसकी कोशिश यह भी होगी कि अपने सहयोगी दलों पर ज्यादा सीटें हासिल करने का दबाव भी बनाया जाए।
लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि बंगाल में उसे ममता और सीपीएम के साथ तालमेल करना है, झारखंड में झामुमो के साथ सीटें साझी करनी हैं तो बिहार में लालू और नीतीश के साथ। वहीं यूपी में सपा और बसपा के साथ, अगर बसपा को गठबंधन में लाया जाता है तो।
यात्रा अभी आसाम में है और कुछ दिनों में बंगाल, झारखंड और बिहार होते हुए यूपी आएगी। लेकिन कांग्रेस बंगाल, झारखंड और बिहार में गठबंधन और सीट शेयरिंग पर उतनी जल्दबाजी नहीं दिखा रही है जितनी यूपी में दिखा रही है। वहां उसका फोकस फिलहाल राहुल की यात्रा को सफल बनाने पर है।
यूपी में कांग्रेस ने 20 दिसंबर से 6 जनवरी तक सहारनपुर से लखनऊ तक की पद यात्रा भी की जो मुस्लिम बहुल इलाका कहा जा सकता है। सनद रहे कि कांग्रेस और सपा दोनों इसी वोट बैंक के भरोसे हैं। हालांकि यह धारणा तेज़ी से मज़बूत हुई है कि मुसलमान सपा से नाराज़ है और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ जा सकता है। इस यात्रा के खत्म होने के बाद राहुल गांधी की यात्रा का उत्तर प्रदेश का जो रूट जारी हुआ उसमें भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल ज़िले शामिल किए गए। यानी कोशिश यही लगती है कि राहुल सपा से मुसलमानों की नाराजगी को और बढ़ा कर अपनी बारगेनिंग पावर बढ़ाना चाहते थे। मीडिया ने इसे इसी तरह देखा भी।
रणनीतिक समझ इसी में थी कि यात्रा के यूपी से गुज़र जाने के बाद ही कांग्रेस इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग पर बात करती। तब राहुल और प्रियंका की लोकप्रियता उफान पर होती। लेकिन अखिलेश यादव चाहते थे कि किसी भी तरह यूपी में यात्रा के आगमन से पहले सीट शेयरिंग हो जाए।
अब यूपी में, जहाँ यात्रा को इन तीन राज्यों के बाद आना है वहाँ का नेतृत्व सपा के साथ सीट शेयरिंग के लिए ज़्यादा उतावला दिख रही है। इसे स्वाभाविक और वो भी कांग्रेस जैसी देर से फैसले लेने वाली पार्टी के लिए तो स्वाभाविक नहीं ही कहा जा सकता।
याद रहे एक बार तो अखिलेश यादव कह भी चुके हैं कि कांग्रेस गठबंधन पर कोई निर्णय लेने में बहुत वक्त बर्बाद कर देती है।
इधर चर्चा यह भी है कि समाजवादी पार्टी यूपी की कोई भी मुस्लिम बहुल लोकसभा सीट कांग्रेस के लिए छोड़ने को राजी नहीं है। यानी कांग्रेस के कंधे पर चढ़कर सपा खुद तो लाभ लेना चाहती है लेकिन कांग्रेस को गर्त में धकेलना चाहती है।
तो फ़िर अचानक सब कुछ जल्दी- जल्दी क्यों हो रहा है? क्या ऐसा करके वो राहुल की लोकप्रियता जो मुस्लिम बहुल इलाकों से गुजरते वक्त बढ़ती उसे अपने पक्ष में इस्तेमाल करने के बजाए वो राहुल को कमज़ोर दिखाना चाहता है?
इन सवालों का जवाब कांग्रेस के अंदर के खेल और खिलाड़ियों के रिकॉर्ड पर ध्यान खींचता है। बताया जाता है कि कुछ दिनों पहले मुकुल वासनिक के घर हुई सपा और कांग्रेस के नेताओं की बैठक में याद करिए सलमान खुर्शीद के साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय, नवनियुक्त महासचिव अविनाश पांडेय के अलावा आराधना मिश्रा मोना भी थीं। मुकुल वासनिक दिल्ली सिस्टम के आदमी समझे जाते हैं। सलमान खुर्शीद फुल टाइम नेता कम और सुप्रीम कोर्ट के वकील ज़्यादा हैं, जो यूपी और राजनीति दोनों से कट चुके हैं, लिहाजा अपने फीडबैक के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं। अजय राय अभी नए हैं । अविनाश पांडेय अभी डेढ़ महीने पहले ही यूपी भेजे गए हैं। वहीं राज्य में कई सालों से संगठन देख रहे राष्ट्रीय सचिव कहीं नहीं दिख रहे।
बचीं आराधना मिश्रा यानी प्रमोद तिवारी की बेटी जो प्रतापगढ़ की रामपुर खास सीट से विधायक हैं। मोना मिश्रा के खिलाफ़ विधान सभा चुनाव में सपा ने प्रत्याशी नहीं उतारा था। यानी वो टेकनिकली आधा सपा और आधा कांग्रेस की विधायक हैं। उनके पिता के मुलायम सिंह यादव से रिश्ते छुपे नहीं हैं। प्रमोद तिवारी सपा के समर्थन से राज्यसभा भी जा चुके हैं यानी कांग्रेस के लिए बल्लेबाजी वो कर रहा है जो पूरी तरह दूसरी टीम का कृपापात्र है।
तो क्या यह खेल अखिलेश के सामने राहुल को छोटा साबित करने और सपा को फ़ायदा पहुंचाने के लिए किया जा रहा है? और क्या ऐसा करके इंडिया ब्लॉक भाजपा को रत्ती भर भी चुनौती दे भी पाएगा ? क्या धोखे पर धोखा खाने की नियति से गांधी परिवार निकल पायेगा? यह सवाल अभी बने रहेंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
Is UP Congress busy in belittling Rahul in front of Akhilesh?


