विजय शाह का बयान: BJP की नफरती राजनीति और मुस्लिम विरोध का खतरनाक चेहरा
भाजपा मंत्री विजय शाह का मुस्लिम सेना अधिकारी पर आपत्तिजनक बयान देश में नफरत की राजनीति और धार्मिक ध्रुवीकरण की गहराई को उजागर करता है।

vijay shahs statement and background
विजय शाह का बयान और उसकी पृष्ठभूमि
- कर्नल सोफिया कुरैशी पर विवादास्पद टिप्पणी
- नफरत की राजनीति का संगठित चेहरा
- हाईकोर्ट की सख्ती और प्रशासन की उदासीनता
- बीजेपी नेतृत्व की चुप्पी और संगठन की प्रतिक्रिया
- IT सेल की भूमिका और ट्रोलिंग की राजनीति
- कर्नल सोफिया का जवाब: भारतीय सेना की धर्मनिरपेक्ष पहचान
- क्या यह सिर्फ व्यक्तिगत टिप्पणी थी या संगठित सोच का हिस्सा?
- नफरत का भस्मासुर और समाज पर उसका असर
भाजपा मंत्री विजय शाह का मुस्लिम सेना अधिकारी पर आपत्तिजनक बयान देश में नफरत की राजनीति और धार्मिक ध्रुवीकरण की गहराई को उजागर करता है।
विजय शाह लक्षण हैं, नफरती वायरस का जखीरा कुनबा है
मोहन यादव की सरकार में मंत्री खुद को तथाकथित कुंवर बताने वाले, विजय शाह (Kunwar Vijay Shah) ने इस बार खुद अपने ही कुनबे को चौंकाते हुए, भद्रता की सारी सीमायें ध्वस्त करते हुए भारतीय सेना की कर्नल सोफिया कुरैशी (Indian Army Colonel Sofia Qureshi) के बारे में निहायत आपराधिक और आपत्तिजनक बात कह दी।
इंदौर के महू में एक सभा में बोलते हुए कैबिनेट मंत्री विजय शाह ने तीन दिन के युद्ध के बाद भारत की अंतर्राष्ट्रीय हैसियत को कमतर करने वाले युद्धविराम पर अपने मोदी जी के उस धमाल और कमाल – जो हुआ ही नहीं - को गिनाते हुए कहा कि जिन पाकिस्तानी आतंकियों ने हमारे लोगों के कपड़े उतरवाए थे उन्हें मोदी जी ने करारा जवाब दिया। अब मोदी जी कपड़े तो नहीं उतरवा सकते थे तो उन्होंने ‘उन्हीं कटे पिटो की बहन’ सोफिया कुरैशी को उन्हीं के खिलाफ, उनका जवाब देने के लिए खड़ा कर दिया।
इस तरह भाजपा के मंत्री ने भारतीय सेना की कर्नल, युद्ध के दौरान हुई प्रेस ब्रीफिंग्स में देश और सेना की प्रतिनिधि के रूप में दुनिया के सामने भारत का चेहरा बनी कर्नल सोफिया कुरैशी को, उनके मुसलमान होने की वजह से पाकिस्तानियों और आतंकियों की बहन बता दिया। इस तरह की बेहूदा, आपराधिक और साम्प्रदायिक तुलना से देश भर में विक्षोभ, आक्रोश और गुस्सा भड़कना स्वाभाविक भी था। यह धर्म पता करके किये जाने वाला अपराध ही था। युद्ध से अभी उबर रहे वातावरण में ऐसी कुटिल विभाजनकारी बातों की सांघातिकता और बढ़ जाती है। ऐसे बयान देश में ही नहीं दुनिया भर में वायरल होते हैं और अंतर्राष्ट्रीय पैमाने पर भारत की उस छवि को और बिगाड़ते हैं, जिस बिगड़ी छवि के चलते इस बार उसे पहली बार इतना कूटनीतिक अलगाव देखना पड़ा है। इन सभी कारणों और मंत्री की उग्र और अश्लीलता की हद लांघती भाषा शैली को देखते हुए उम्मीद की जा रही थी कि विजय शाह या तो मंत्रिमंडल से बर्खास्त किये जायेंगे या उनसे इस्तीफा लिया जाएगा। मगर इन पंक्तियों के लिखे जाने तक इन दोनों में से कुछ नहीं हुआ। इस्तीफा विस्तीफा तो दूर की बात है भाजपा के किसी भी नेता ने सार्वजनिक रूप से विजय शाह के बयान की निंदा तक नहीं की, उसे गलत और अनुचित तक नहीं बताया।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की युगल बेंच ने स्वतः संज्ञान लेते हुए मंत्री की कही बातों पर सख्त नाराजगी जताई, कड़ी आलोचनात्मक टिप्पणियाँ की और मध्यप्रदेश के पुलिस महानिदेशक को चार घंटे के अन्दर एफआईआर दर्ज कर आपराधिक कायम करने का आदेश दिया।
कायदे से इस उच्च अदालती आदेश के बाद इस्तीफ़ा या बर्खास्तगी हो जानी चाहिए थी; नहीं हुई। हाईकोर्ट के समयबद्ध निर्देश के 6 घंटे बाद मानपुर थाने में एफआईआर हो भी गयी। इस्तीफा बर्खास्तगी अब भी नहीं हुई। सुनते हैं मंत्री जी सुप्रीम कोर्ट गए हैं।
ऐसा नहीं है कि कुछ भी नहीं हुआ। पहले भाषण को गलत तरीके से समझे जाने की किन्तु परन्तु के साथ ‘फिर भी किसी को बुरा लगा हो तो माफ़ी’ के लट्ठमार अंदाज में मंत्री ने विडियो जारी किया। उसके बाद भी 10 बार माफ़ी माँगता हूँ कहा, लेकिन उसमें भी विचलित होने. आहत होने का पंख जोड़ दिया। बिना कुछ किये डैमेज कण्ट्रोल करने के लिए सोफिया के मध्यप्रदेश के घर भाजपा नेता चाय पीने पहुंच गए। यहाँ से सांसद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं, सो मंत्री के बयान पर उनने थोड़ी बहुत नाखुशी जता दी। अखबार में खबर चलवा दी गयी कि भाजपा के संगठन मंत्री ने विजय शाह को बुलाकर फटकारा है। मगर इस्तीफा न माँगा गया, न लिया गया। मंत्री के चेहरे पर भी कोई ग्लानि या शिकन नहीं है। वे न तो नौसिखिये हैं, ना ही अज्ञानी; अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के जमाने से, अपने बाल्यकाल से संघ के कुनबे में हैं. कोई 8 बार विधायक और चार बार से मंत्री हैं। चम्बल में एक कहावत है;
"जैसे जाके नदी नाखुरे तैसे ताके भरिका
जैसे जाके बाप महतारी तैसे ताके लरिका।"
कहावत की तर्ज पर कहें तो इनकी दुष्टई इनकी निजी योग्यता नहीं है, यह वैचारिक परवरिश का हासिल है। इनकी आवाज और लहजा भी इसके दो नंबरी नेता जैसा है, और ऐसे ही नहीं है। यह शाखा श्रृगालों का ठेठ ठाठ है। वे जो कह रहे थे वह उनका नहीं उनके कुनबे का आख्यान था।
पूरे देश ने देखा है कि कुनबे की नफरती ब्रिगेड – आई टी सैल – सैन्य टकराव के बीच भी मुस्लिम विरोधी नफरत (Anti-Muslim hate) उभारने की अपनी हरकतों से बाज नहीं आई थी। मोदी के सबसे भरोसेमंद प्रचारतंत्र के इस समूह ने विदेश सचिव की बेटी तक को नहीं बख्शा। इतनी भद्दी और अश्लील गालीगलौज की कि देश के सर्वोच्च आधा दर्जन अधिकारियों में से एक विदेश सचिव मिस्री (Foreign Secretary, Misri) को अपना ट्विटर अकाउंट प्राइवेट करना पड़ा। सेना द्वारा प्रेस कांफ्रेंस के लिए समझदारी के साथ चुनी गयी टीम की लड़कियों, खासकर कर्नल सोफिया कुरैशी को इस आई टी सैल ने युद्ध के बीचो-बीच भी मुसलमान होने के नाते भद्दी और अश्लील टिप्पणियों की ट्रोल का निशाना बनाया था। पहलगाम में आतंकियों के हमले में मारे गए नौसेना अधिकारी की पत्नी हिमांशी नरवाल को ट्रोल और अपमानित किया गया। विजय शाह कुनबे के उसी आख्यान को आगे बढ़ा रहे थे, जिसे खुद उनके प्रधानमंत्री ने अपने राष्ट्र के नाम संबोधन में दूसरी तरह से आगे बढ़ाया है। पहलगाम के आतंकी हमले के जिक्र में उस दौरान और उसके बाद कश्मीरी अवाम की शानदार भूमिका और साहस का उल्लेख, उनकी सराहना, पाकिस्तान के हमलों में मारे गए नागरिकों का जिक्र और अफ़सोस किसी भी प्रधानमंत्री के भाषण का हिस्सा होता – मगर यहाँ प्रधानमंत्री नहीं मोदी बोल रहे थे, इसलिए इस सबका कोई उल्लेख तक नहीं था।
नियम यह है कि नफ़रत भस्मासुरी होती है, अपनों को भी नहीं बख्शती। विजय शाह जिस सोच के भस्मासुर हैं उसमें सिर्फ मुसलमान ही नहीं दलित और महिलायें भी निशाने पर रहती हैं। अपने ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की जीवन संगिनी के बारे में अत्यंत घिनौनी कामुक टिप्पणी करके वे इसका उदाहरण भी प्रस्तुत कर चुके हैं। तब भी फूं फां तो बहुत हुयी थी मगर इनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं पाया था। इसलिए कि विजय शाह लक्षण हैं, उस वायरस के वाहक हैं जिसका जखीरा कुनबे के पास है, और कोई अपने ही खिलाफ कार्यवाही कैसे कर सकता है। वे उस प्रवृत्ति के विषाणु हैं जिसकी संक्रामक बीमारी ने आज भारत को दुनिया में ऐसी दीन, हीन, अलग थलग स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है जहां वह पिछले हजार वर्ष में भी नहीं रहा।
बहरहाल हर अँधेरे में कही न कहीं कोई रौशनी छुपी होती है। इस बार यह रोशनी सेना की प्रवक्ता कर्नल सोफिया कुरैशी के कथन में दिखी है। पाकिस्तानी सेना के दावे कि भारतीय सेना ने कुछ मस्जिदों को भी निशाना बनाया पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा कि, "भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और हमारी सेना हमारे संविधान की मूल भावना 'सेक्युलरिज्म' की सच्ची प्रतिनिधि है। हमारी सेना हर धर्म और हर पूजा स्थल का पूरा स्थल का पूरा सम्मान करती है। किसी भी धार्मिक स्थल को निशाना नहीं बनाया गया है।" कर्नल सोफिया का यह बयान भले पाकिस्तानियों के दुष्प्रचार का जवाब था, मगर इधर वालों को भी उसे पढ़ लेना चाहिए।
बादल सरोज
सम्पादक लोकजतन. संयुक्त सचिव अखिल भारतीय किसान सभा


