हिंदू हो या मुसलमान, शरणार्थियों की खैर नहीं।

मजहबी दंगाई सियासत के लिए नागरिकता ब्रह्मास्त्र!

पलाश विश्वास

विभाजनपीड़ित हिंदुओं को बलि का बकरा बनाकर 2003 का नागरिकता संशोधन विधेयक दरअसल भारत के मुसलमानों की नागरिकता छीनने की सर्वदलीय हिंदुत्व राजनीति है।

पहले नागरिकता छीनो, फिर गैरमुसलमानों को नागरिकता दे दो, लेकिन मुसलमानों को नागरिकता कतई मत दो। यह सीधे तौर पर पूर्वी बंगाल के हिंदू विभाजनपीड़ितों को नागरिकता से वंचित रखने का स्थाई जमींदारी बंदोबस्त है।

हम खुद पूर्वी बंगाल के विभाजनपीड़ित शरणार्थी परिवार से हैं, जिनकी नागरिकता, आरक्षण और मातृभाषा के अधिकार के लिए मेरे पिता आजीवन आखिरी सांस तक लड़ते रहे हैं।

हम हर हाल में देश भर में जारी नागरिकता के लिए शरणार्थी आंदोलन के साथ हैं। लेकिन सारी राजनीति शरणार्थियों के खिलाफ है जो शरणार्थियों को शतरंज का मोहरा बनाने के बाद हिंदुत्व की पैदल सेना बनाने पर आमादा है। यह हमारे लिए निजी तौर पर बहुत बड़ा संकट है।

हम शरणार्थियों की बिना शर्त नागरिकता देने की मांग करते रहे हैं। जैसे पश्चिम पाकिस्तान के शरणार्थियों को नागरिकता मिली है, वैसे ही।

हम 2003 के नागरिकता संशोधन कानून को सिरे से रद्द करने की मांग इसीलिए करते हैं क्योंकि इसका मकसद मुसलमानों को नागरिकता से वंचित करने और हिंदू बंगाली शरणार्थियों की नागरिकता का मसला हिंदू मुसलमान विवाद से नत्थी करने का उपक्रम है जिसके तहत न मुसलमानों को नागरिकता मिलनी है और न हिंदू विभाजनपीड़ितों को।

दोनों पक्ष इस साजिश को समझ लें तो बेहतर है। हमारे पुरखे इस साजिश को समझ नही पाये तो हम भारत पाकिस्तान विवाद से निकल नहीं पा रहे हैं और इस साजिश के तहत देश के चप्पे-चप्पे पर पाकिस्तान बना रहा है दंगाई राजनीति।

यह अनवरत युद्ध है। अनंत गृहयुद्ध है। बेलगाम आत्मध्वंस है। खून की नदियां हैं। इस हिंसा की कोई सीमा नहीं है। सीमाओं के आर-पार लहू का सैलाब है। आइलान की लाशें हैं। आगजनी, हिंसा, कत्लेआम और बलात्कार कार्निवाल नतीजे हैं।

2003 के इस काला शैतानी कानून की पेचदगी किसी संशोधन से खत्म नहीं होती है, इसलिए 1955 के नागरिकता कानून को बहाल करके सबसे पहले विभाजन पीड़ितों को नागरिकता देना जरुरी है।

1971 के बाद जो लोग आये हैं, उनकी नागरिकता का मसला भी 1955 के कानून के तहत संभव है। उस कानून में संशोधन के जरिये हिंदू मुसलमान विवाद से हिंदू विभाजनपीड़ितों की समस्या सुलझेगी नहीं।

इसके उलट भारत विभाजन का इतिहास हूबहू दोहराया जा रहा है।

बंगाल में दो राष्ट्र के सिद्धांत के तहत हिंदुस्तान-पाकिस्तान बनाने की राजनीति फिर उसी मजहबी सियासत के जरिये नागरिकता के सवाल पर हिंदुओं और मुसलमानों में बंगाल, त्रिपुरा और असम में सीधे टकराव के हालात बना रही है।

इसके विपरीत पश्चिम पाकिस्तान से आये विभाजनपीड़ितों की नागरिकता के बारे में कोई विवाद नहीं रहा है। उन्हें बिना शर्त नागरिकता दी गयी तो पूर्वी बंगाल के शरणार्थियों की नागरिकता 2003 के कानून के जरिये छीनी क्यों गयी और जब फिर हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने का दावा है तब क्यों मुसलमानों को नागरिकता का सवाल बीच में क्यों खड़ा कर दिया जा रहा है। यह चुनावी समीकरण समझना जरूरी है।

जाहिर है कि बंगाल और असम में धार्मिक ध्रुवीकरण से पूरे देश का केसरियाकरण और हिंदू राष्ट्र का आरएसएस के एजंडा को पूरा करने की यह सर्वदलीय राजनीति है और महिलाओं को संसद और विधानसभा में आरक्षण हर कीमत पर रोकने की तर्ज पर यह पूर्वी बंगाल के शरणार्थियों की नागरिकता छीन लेने की सर्वदलीय राजनीति है।

असम और बंगाल में दंगे हुए तो दूसरे राज्यों से आये इन राज्यों में बसे लोगों को भी इस दंगे की आग से बचाना मुश्किल होगा। जिसका असर देश विदेश में भारी पैमाने पर होना है।

राजनीति सिर्फ यूपी जीतने की सोच रही है। बाकी देश दुनिया की उसे कोई परवाह नहीं है और न इंसानियत और न मजहब से उसका कोई नाता है।

आज इंडियन एक्सप्रेस की सबसे बड़ी खबर नागरिकाता संशोधन विधेयक के सिलसिले में हिंदू और मुसलमान शरणार्थियों में कौन असल दुश्मन है, इस पर असम सरकार के एक खास मंत्री हिमंत विश्व शर्मा का यह जिहादी बेमिसाल बयान है Choose your enemy, Hindu or Muslim migrants: Assam BJP minister Himanta Biswa Sarma, जो भोपाल में फर्जी मुठभेड़ से ज्यादा खतरनाक है। यहां लाशों की गिनती भी असंभव है।

असम में प्रस्‍तावित नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 का विरोध जारी है। इस विधेयक में बांग्‍लादेश, पाकिस्‍तान और अफगानिस्‍तान से आने वाले अल्‍पसंख्‍यक समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है।

विदेशी नागरिकों को नागरिकता देने के मुद्दे पर पूर्वोत्तर राज्य असम की राजनीति में उबाल आ गया है।

केंद्र की भाजपा सरकार ने जुलाई में नागरिकता अधिनियम, 1955 के कुछ प्रावधानों में संशोधन के लिए विधेयक पेश किया था। असम में भी भाजपा की सरकार है।

कृपया गृहयुद्ध के आवाहन की इस युद्ध घोषणा पर गौर करें।

भाजपा के नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रैटिक एलाएंस के संयोजक हेमंत विश्व शर्मा ने राज्य के लोगों से कहा है कि अपना दुश्मन चुन लीजिए, या तो 1.5 लाख या 55 लाख लोग।

हेमंत प्रदेश में सरकार में बेहद प्रभावशाली मंत्री भी हैं। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में शर्मा के इन बयानों को लिखा है।

आंकड़ों पर सफाई नहीं दी हालांकि हेमंत ने। इन आंकड़ों को धर्म विशेष से नहीं जोड़ा है, लेकिन उन्होंने यह जवाब उस समय दिया जब वह विपक्ष के असम की नागरिकता विधेयक पर जवाब दे रहे थे।

उन्‍होंने बिल का विरोध करने वालों से पूछा कि किस समुदाय ने असमिया लोगों को अल्‍पसंख्‍यक बनाने की धमकी दी है।

नागरिकता (संसोधन) बिल के जरिए पाकिस्‍तान और बांग्‍लादेश में जुल्‍म सह रहे हिंदुओं, बौद्धों, जैन, सिख और पारसियों को नागरिकता देने का प्रस्‍ताव है। हिंदू और मुसलमान माइग्रेंट में भेद करने की नीति क्‍या भाजपा की है, इस सवाल शर्मा ने कहा, ”हां, हम करते हैं। साफतौर पर हम करते हैं। देश का बंटवारा धर्म के नाम पर हुआ था। इसलिए यह नई चीज नहीं है। जब हम डिब्रूगढ़ या तिनसुखिया जाते हैं तो हमें अच्‍छा लगता है क्‍योंकि वहां पर बहुसंख्‍या में हैं। लेकिन जब आप धुबड़ी या बारपेटा जाते हैं, तब आपको ऐसा नहीं लगता।