कौन कहता है कि अंधेरे में गीत नहीं गाए जाते? अंधेरे में तो प्रहसन भी किए जाते हैं।
कौन कहता है कि अंधेरे में गीत नहीं गाए जाते? अंधेरे में तो प्रहसन भी किए जाते हैं।

अभिषेक श्रीवास्तव (Abhishek Shrivastava), जनपक्षधर, यायावरी प्रवृत्ति के वरिष्ठ पत्रकार हैं। उनकी शिक्षा दीक्षा आईआईएमसी में हुई है
नई दिल्ली। दिल्ली के मावलंकर सभागार में आज देश भर के तमाम लेखकों, इतिहासकारों, अकादमिकों, वैज्ञानिकों, पत्रकारों, समाजशास्त्रियों और औसतन पढ़े-लिखे लोगों ने असहिष्णुता के माहौल का कड़े पुलिस बंदोबस्त के बीच प्रतिरोध किया। आज से तकरीबन दो माह पहले यानी 4 सितंबर को इसकी चिंगारी जिन उदय प्रकाश ने भड़कायी थी, वे खुद इस कार्यक्रम में अज्ञात कारणों से अनुपस्थित रहे। बड़े पत्रकार पी. साइनाथ वहां अप्रत्याशित रूप से दिखे। दिलचस्प था कि उनके होने की जानकारी आयोजकों को थी ही नहीं, लेकिन उन्हें देखने वाले सभी यही समझते रहे कि वे अब बोलेंगे तब बोलेंगे, लिहाजा किसी ने उनके होने की जानकारी आयोजकों को दी भी नहीं। वे बोलते, तो शायद कुछ नया आयाम जुड़ता।
रोमिला थापर, कृष्णा सोबती और इरफान हबीब को सुनना बेशक जबरदस्त था, लेकिन प्रो. रमेश दीक्षित ने यह कहकर कि "पिकनिकबाज़ी से काम नहीं चलेगा" और माओ टाइप लाइन देकर कि "गांवों की ओर चलो", महफिल लूट ली। उन्हें सुनकर लगा कि आखिर कोई तो बोला किसानों और मजदूरों के बारे में।
बाकी, आयोजन की भव्यता में कोई कमी नहीं थी। बिलकुल अशोक वाजपेयी ब्रांड प्रोग्राम था। एकदम इम्पैक्टफुल। मुफ्त की चाय लगातार उपलब्ध रही। बाहर सीपीएम और उससे संबद्ध संस्थाओं के बुकस्टॉल "सहमत" के कनवेंशन जैसा लुक दे रहे थे। इसके अलावा "असतो मा सद्गमय" और "वैष्णव जन" के गायन ने भी कुछ परंपरागत सेकुलर टाइप छवि निर्मित कर दी। इसीलिए अधिकतर लोग इस गफ़लत में रह गए कि सम्मेलन सेकुलरिज्म पर है और अली जावेद अंधविश्वास के खिलाफ ही बोलते रह गए।
डॉ. मेधा पानसरे को सुनना प्रेरक था।
तीस्ता एकदम प्रोफेशनल थीं। वही बोलीं जो कई साल से बोल रही हैं।
एक वैज्ञानिक भी आए थे। श्रोताओं में कई एलीट चेहरे दिखे। बीच की पंक्ति में आठवीं कतार की दाहिने से दूसरी कुर्सी पर बैठी एक धवलकेशी महिला ने अपनी समरूप सहेली की जिज्ञासा पर उसे बताया, "कलबुर्गी वाज़ मर्डर्ड इन केरल"।
गुजरात की उनींदे आंखों वाली एक एंटी-मोदी एक्टिविस्ट महिला ने बताया कि पुरस्कार वापसी के बाद उन्होंने हिंदी साहित्य पढ़ना शुरू कर दिया है एंड "आइ एम टू इम्प्रेस्ड विद इट"।
किसी ने अंत में पूछा कि क्या सम्मेलन में कोई कार्ययोजना बनी है। किसी ने जवाब दिया कि वो तो आज रात अशोक वाजपेयी के घर रसरंजन के दौरान बनेगी।
बहरहाल, इन सैकड़ों लोगों की हज़ारों टन चिंताओं के बीच कथित किसान नेता और एकता परिषद के मुखिया पी.वी. राजगोपाल को सोनिया गांधी ने नेशनल इंटिग्रेशन के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार दे दिया। वही पी.वी., जिन्होंने आगरा में जयराम रमेश से डील की थी और संसद मार्ग पर वाम संगठनों की भूमि अधिग्रहण पर विशाल रैली के दिन रवीश कुमार ने जिन्हें विशेष कवरेज दी थी।
अरे, रवीश से याद आया- एनडीटीवी से इस प्रोग्राम को कवर करने डिफेन्स बीट का रिपोर्टर आया था। कौन कहता है कि अंधेरे में गीत नहीं गाए जाते? अंधेरे में तो प्रहसन भी किए जाते हैं।
अभिषेक श्रीवास्तव


