पानी की कमी का संकट केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के लगभग सभी देशों की एक विकट समस्या बन चुका है। इन्हीं परिस्थितियों को देखते हुए जल संरक्षण और रखरखाव को लेकर दुनिया भर में लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिवर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है। सही मायने में यह दिन जल के महत्व (Importance of water) को जानने, समय रहते जल संरक्षण को लेकर सचेत होने तथा पानी बचाने का संकल्प लेने का दिन है।
विश्व जल दिवस मनाए जाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 1992 में रियो द जेनेरियो में आयोजित ‘पर्यावरण तथा विकास का संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन’ (यूएनसीईडी) में की गई थी। संयुक्त राष्ट्र की उसी घोषणा के बाद पहला विश्व जल दिवस 22 मार्च 1993 को मनाया गया था।
Celebration of World Water Day 2021 – Valuing Water
दरअसल दुनियाभर में इस समय करीब दो अरब लोग ऐसे हैं, जिन्हें स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं हो पा रहा और साफ पेयजल उपलब्ध न होने के कारण लाखों लोग बीमार होकर असमय काल का ग्रास बन जाते हैं।
भारत के संदर्भ में बात करें तो महाराष्ट्र हो या राजस्थान, बिहार हो या झारखण्ड या फिर देश की राजधानी दिल्ली, हर साल खासकर गर्मी के मौसम में
‘इंटरनेशनल एटोमिक एनर्जी एजेंसी’ का कहना है कि पृथ्वी पर उपलब्ध पानी की कुल मात्रा में से मात्र तीन प्रतिशत पानी ही स्वच्छ बचा है और उसमें से भी करीब दो प्रतिशत पानी पहाड़ों व ध्रुवों पर बर्फ के रूप में जमा है जबकि शेष एक प्रतिशत पानी का उपयोग ही पेयजल, सिंचाई, कृषि तथा उद्योगों के लिए किया जाता है। बाकी पानी खारा होने अथवा अन्य कारणों की वजह से उपयोगी अथवा जीवनदायी नहीं है। पृथ्वी पर उपलब्ध पानी में से इस एक प्रतिशत पानी में से भी करीब 95 फीसदी पानी भूमिगत जल के रूप में पृथ्वी की निचली परतों में उपलब्ध है और बाकी पानी पृथ्वी पर सतही जल के रूप में तालाबों, झीलों, नदियों अथवा नहरों में तथा मिट्टी में नमी के रूप में उपलब्ध है। इससे स्पष्ट है कि पानी की हमारी अधिकांश आवश्यकताओं की पूर्ति भूमिगत जल से ही होती है लेकिन इस भूमिगत जल की मात्रा भी इतनी नहीं है कि इससे लोगों की आवश्यकताएं पूरी हो सकें। वैसे भी जनसंख्या की रफ्तार तो तेजी से बढ़ रही है किन्तु भूमिगत जलस्तर बढ़ने के बजाय घट रहा है, ऐसे में पानी की कमी का संकट तो गहराना ही है।
पर्यावरण संरक्षण पर प्रकाशित पुस्तक ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ में स्पष्ट किया गया है कि देश में जल संकट गहराते जाने की प्रमुख वजह है भूमिगत जल का निरन्तर घटता स्तर।
Yet 2 billion people are still forced to drink unsafe water.
एक रिपोर्ट के अनुसार इस समय दुनिया भर में करीब तीन बिलियन लोगों के समक्ष पानी की समस्या मुंह बाये खड़ी है और विकासशील देशों में तो यह समस्या कुछ ज्यादा ही विकराल होती जा रही है, जहां करीब 95 फीसदी लोग इस समस्या को झेल रहे हैं।
The problem of water is taking a very serious form in Asia and especially in India.
पानी की समस्या एशिया में और खासतौर से भारत में तो बहुत गंभीर रूप धारण कर रही है। विश्व भर में पानी की कमी की समस्या तेजी से उभर रही है और यह भविष्य में बहुत खतरनाक रूप धारण कर सकती है। अधिकांश विशेषज्ञ आशंका जताने लगे हैं कि जिस प्रकार तेल के लिए खाड़ी युद्ध होते रहे हैं, जल संकट बरकरार रहने या और अधिक बढ़ते जाने के कारण आने वाले वर्षों में पानी के लिए भी विभिन्न देशों के बीच युद्ध लड़े जाएंगे और हो सकता है कि अगला विश्व युद्ध भी पानी के मुद्दे को लेकर ही लड़ा जाए। दुनियाभर में पानी की कमी के चलते विभिन्न देशों में और भारत जैसे देश में तो विभिन्न राज्यों में ही जल संधियों पर संकट के बादल मंडराते रहे हैं।
गहराता जा रहा है पृथ्वी पर जल संकट
संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान कुछ समय पूर्व दुनिया को चेता चुके हैं कि उन्हें इस बात का डर है कि आगामी वर्षों में पानी की कमी गंभीर संघर्ष का कारण बन सकती है। अगर पृथ्वी पर जल संकट इसी कदर गहराता रहा तो इसे निश्चित मानकर चलना होगा कि पानी हासिल करने के लिए विभिन्न देश आपस में टकराने लगेंगे तथा दो अलग-अलग देशों के बीच युद्ध की नौबत भी आ सकती है और जैसी कि आशंकाएं जताई जा रही है कि अगला विश्व युद्ध भी पानी की वजह से लड़ा जा सकता है। अगर जलसंकट बढ़ते जाने की स्थिति में वाकई ऐसा ही कुछ हुआ तो इस दुनिया का क्या हाल होगा, इसकी कल्पना करते हुए भी कलेजा कांप उठता है। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच पानी के मुद्दे को लेकर तनातनी चलती रही है। इसके अलावा उत्तरी अफ्रीका के कुछ देशों के बीच भी पानी की वजह से झगड़े होते रहे हैं। इजराइल तथा जोर्डन और मिस्र तथा इथोपिया जैसे कुछ अन्य देशों के बीच भी पानी को लेकर काफी गर्मागर्मी देखी जाती रही है।
खैर, दूसरे देशों की तो बात ही छोड़िये, अपने ही देश में विभिन्न राज्यों के बीच पानी के बंटवारे के मामले में पिछले कुछ दशकों से बहुत गहरे मतभेद बरकरार हैं और इस वजह से राज्यों के आपसी संबंधों में काफी खटास भी उत्पन्न हो चुका है तथा वर्तमान में भी जल वितरण का मामला लगातार अधर में लटका रहने से कुछ राज्यों में जलसंकट की स्थिति काफी गंभीर बनी हुई है।
We have to understand the importance of water in time.
पानी की महत्ता को हमें समय रहते समझना ही होगा। इस तथ्य से हर कोई परिचित है कि जल ही जीवन है और पानी के बिना धरती पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती लेकिन जब हम हर जगह पानी का दुरूपयोग होते देखते हैं तो बहुत अफसोस होता है। पानी का अंधाधुध दोहन करने के साथ-साथ हमने नदी, तालाबों, झरनों इत्यादि अपने पारम्परिक जलस्रोतों को भी दूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। हमें समझ लेना होगा कि बारिश की एक-एक बूंद बेशकीमती है, जिसे सहेजना बहुत जरूरी है। अगर हम वर्षा के पानी का संरक्षण किए जाने की ओर खास ध्यान दें तो व्यर्थ बहकर नदियों में जाने वाले पानी का संरक्षण करके उससे पानी की कमी की पूर्ति आसानी से की जा सकती है और इस तरह जल संकट से काफी हद तक निपटा जा सकता है।
- योगेश कुमार गोयल
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा पर्यावरण मामलों के जानकार हैं और पर्यावरण पर 190 पृष्ठों की पुस्तक ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ लिख चुके हैं)