प्रसिद्ध दलित चिंतक और लेखक भंवर मेघवंशी का आरएसएस में बिताए वर्षों का अनुभव और जातिगत भेदभाव के उनके आरोप। जानिए उनके विचार, संघर्ष और संघ से जुड़े विवादों पर उनका पक्ष। भंवर मेघवंशी एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार और लेखक हैं, जो जातिवाद, सामाजिक न्याय और दलित अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं। अपने किशोरावस्था में आरएसएस से जुड़े रहने के बाद, उन्होंने संगठन में जातिगत भेदभाव का सामना किया और इस पर खुलकर लिखना शुरू किया। उनकी पुस्तक 'मैं एक कारसेवक था' में उन्होंने आरएसएस के जातिवादी चरित्र पर गहरी आलोचना की है। हाल ही में, उन्होंने आरएसएस विचारक प्रो. राकेश सिन्हा के दावों को चुनौती देते हुए संघ की जातिवादी मानसिकता को उजागर किया है।

आरएसएस विचारक प्रोफेसर राकेश सिन्हा जी ने बीबीसी हिन्दी सेवा को दिये साक्षात्कार में यह दावा किया है कि –

"संघ में कोई साधारण से साधारण कार्यकर्ता भी जातिवादी व्यवहार नहीं करता है। "

सिन्हा ने यह दावा मेरे इस आरोप के जवाब में किया है, जिसमें मैंने आरएसएस के लोगों द्वारा मेरे साथ किये गये जातिगत भेदभाव की कहानी सार्वजनिक की।

मैं फिर से दौहरा रहा हूँ कि –

"आरएसएस एक सवर्ण मानसिकता का पूर्णत: जातिवादी चरित्र का अलोकतांत्रिक संगठन है, जो इस देश के संविधान को खत्म करके मनुस्मृति पर आधारित धार्मिक हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहता है। "

मैं अपने साथ संघियों द्वारा किये गये अस्पृश्यतापूर्ण भेदभाव की कहानी के एक-एक शब्द पर आज भी कायम हूँ।

मैं फिर से बताना चाहता हूँ कि मैं महज 13 वर्ष की अल्पायु में खेल खेलने के लालच में आरएसएस के झाँसे में आया। अपने गाँव की शाखा का मुख्य शिक्षक रहा, पहली बार कारसेवा में गया। टूण्डला में गिरफ्तार हुआ। दस दिन आगरा के बहुउद्देशीय स्टेडियम की अस्थाई जेल में रहा। संघ का प्रथम वर्ष किया। एक वर्ष तक जिला कार्यालय प्रमुख रहा।

भीलवाड़ा में 12 मार्च 1992 को हुई गोलीबारी का साक्षी रहा, पुलिस की लाठियां खाई और कर्फ्यू की तकलीफों को सहा।

मैं पूर्णकालिक प्रचारक बनना चाहता था, मगर मुझे कहा गया कि संघ को आप जैसे विचारक नहीं, विचारधारा को बिना विचारे फैलाने वाले प्रचारक चाहिये।

इतना ही नहीं बल्कि यह कहकर भी मुझे संतुष्टि दी गई कि बंधु अभी हमारा हिन्दू समाज बहुत विषम है, कल प्रचारक बनने के बाद आपको जाति आधारित कटु अनुभव होने पर आप संघ के प्रति गलत धारणाएं बना लेंगे, इसलिये उत्तम यह होगा कि आप कुछ समय विस्तारक बन कर निकलो। फिर देखेंगे कि आप प्रचारक बनने की स्थिति में होते हो या नहीं।

बाद में मैं ना प्रचारक बना और ना ही विस्तारक बन पाया, क्योंकि अस्थिकलश यात्रा के साथ चल रहे संघियों ने मेरे घर पर खाना खाने से साफ मना कर दिया। भोजन पैक करवा कर ले गये और अगले गांव भगवानपुरा के मोड़ पर फेंक गये।

इसका जब मुझे पता चला तो मैं स्पष्टीकरण मांगने पहुंचा।

जवाब दिया गया हाथ से छूटकर गिर गया। अब गिरा हुआ खाना तो कैसे खाते ?

सच्चाई इसके विपरीत थी मेरे घर से गया खाना सड़क किनारे फेंका गया और देर रात एक पण्डित के घर खाना बनवा कर खाया गया।

मैंने इस घटना को लेकर जिला प्रचारक से लेकर सरसंघ चालक तक पत्र लिखे, जिनका कोई जवाब नहीं मिला। तब मैंने पहली बार जनवरी 1993 में इस पूरी घटना पर आर्टिकल लिखा जो उस वक्त भीलवाड़ा से प्रकाशित साप्ताहिक दहकते अंगारे नामक समाचार पत्र में विस्तारपूर्वक छपा।

बाद में यह कहानी कई नामचीन समाचार पत्र पत्रिकाओं में कई बार प्रकाशित हुई। हजारों सभा सम्मेलनों में इसे मैंने सार्वजनिक रूप से खुलेआम माईक पर साझा किया। यूट्यूब तक पर कई वर्षों से यह मौजूद है। कभी कोई प्रतिक्रिया संघ की ओर से नहीं की गई।

हां, वर्ष 2012 में मुझ पर भाजपा में शामिल होने के लिये डोरे डाले गये। तब संघ के उच्चस्तरीय पांच वरिष्ठ प्रचारकों ने जरूर इस घटना पर यह कहकर मौखिक खेद जताया कि - आपके साथ हुआ यह दुर्भाग्यपूर्ण व्यवहार संघ का अधिकृत व्यवहार नहीं था, बल्कि कुछ स्वयंसेवकों की व्यक्तिगत त्रुटि थी। लेकिन घटना के लगभग 25 साल बाद अब संघ के एकमात्र विचारक प्रोफेसर राकेश सिन्हा कह रहे हैं कि - अगर कोई व्यक्ति ऐसा (संघ पर जातिवादी है) कहता है तो उसका निजी स्वार्थ होगा या फिर वह झूठ बोल रहा है।

प्रोफेसर सिन्हा मुझे व्यक्तिगत रूप से बिल्कुल भी नहीं जानते। हम कभी कहीं भी नहीं मिले।

जिन दिनों मैं आरएसएस में रहा, तब तक मैंने ऐसे किसी विचारक का नाम तक नहीं सुना और ना ही उनके विचारों से लाभान्वित हुआ। तीन चार साल से उनका चेहरा टीवी चैनल्स की पैनल चर्चाओं में दिखने से पता चला कि वे आरएसएस के घोषित विचारक हैं तथा भारत नीति प्रतिष्ठान के मानद निदेशक होकर दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसियेट प्रोफेसर है।

साथ ही मैंने यह भी जाना कि वे संघ संस्थापक के बी हेडगेवार और गुरूजी गोलवलकर के अधिकृत जीवनीकार हैं।

पता चला है कि उन्होंने और भी कई किताबें लिखी हैं।

अच्छा लगा कि आरएसएस आजकल सिन्हा साहब जैसे प्रचारक किस्म के विचारकों की कद्र करने लगा है।

मुझे उनके आरएसएस विचारक होने पर कुछ भी नहीं कहना है, पर मेरी आपत्ति इस बात को लेकर जरूर है कि उन्होंने बीबीसी जैसे प्रतिष्ठित अन्तर्राष्ट्रीय न्यूज नेटवर्क पर मुझे झूठ बोलने वाला कहा है।

राकेश सिन्हा बिना मुझे जाने, बिना मुझसे बात किये, बिना मेरी कहानी सुने, बिना मेरा पक्ष जाने झट से बोल दिया कि संघ पर जातिवाद का आरोप लगाने वाला झूठा है।

मुझे घोर आश्चर्य है कि उन्होंने तथ्य व सत्य जाने बगैर ऐसा कैसे कहा होगा?

मैं किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा मगर यह जरूर समझ पाया कि यह उनके झूठ बोलने के संघ प्रदत्त सहज संस्कारों और गोयबल्स सैद्धांतिकी की वजह से ही संभव हुआ होगा।

सिन्हा जी यह जानते है कि संघ अपने आप में आज के दौर में झूठ बोलना सिखाने की विश्व की सबसे बड़ी फैक्ट्री है, इसलिये उन्हें पक्का भरोसा है कि जो व्यक्ति पांच साल संघी रहा है, वह झूठ बोलना तो अच्छे से सीख ही गया होगा।

दूसरा उन्हें यह भी यकीन है कि हर संघी, चाहे हो वर्तमान हो या निवृतमान हो, वह आवश्यक रूप से अनिवार्य तौर पर झूठा होगा ही।

दरअसल उन्होंने अपने अनुभव और आरएसएस के चरित्र के आलोक में ही मुझे झूठा ठहराने की कोशिश की होगी, ऐसा मेरा मानना है।

खैर, मैं संघ विचारक प्रोफेसर राकेश सिन्हा जी को बेहद आदर के साथ कहना चाहता हूँ कि आप एक बार व्यक्तिगत रूप से कभी मिलकर मुझसे मेरा पक्ष जरूर जान लीजियेगा अथवा किसी भी जांच एजेन्सी से जांच करवा लीजिये।

मैं अपने आरोप पर कायम हूँ। रही बात झूठ बोलने की तो मैं तो झूठ की फैक्ट्री कभी की छोड़ आया। आप उसे अभी तक चला रहे हैं सिन्हा साहब।

आपका यह दावा बेहद हास्यास्पद है कि आरएसएस का कोई साधारण से साधारण कार्यकर्ता भी जातिवादी व्यवहार नहीं करता!

आप साधारण स्वयंसेवक की बात कर रहे हैं और मेरा दावा है कि "संघ के पपू" ( परम् पूज्य ) सरसंघचालक श्रीमान मोहन भागवत तक घनघोर जातिवादी हैं। दलित, आदिवासी, पिॆछड़ा, अल्पसंख्यक, और महिला विरोधी हैं। आरक्षण के तो घोर निन्दक हैं ही, पक्के मनुवादी भी हैं।

इतना ही नहीं अभी भी आपके संघ की अखिल भारतीय कार्यसमिति में आज तक 90 वर्ष बाद भी एक भी दलित या आदिवासी नहीं है।

Main Ek Karsewak Tha book by Bhanwar Meghwanshi
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सारे महत्वपूर्ण फैसले आपकी आरएसएस नामक ब्राह्मण महासभा करती है, उन्हें धरातल पर लागू करने वाले हरावल दस्तों में जरूर कई दलित आदिवासी अपवाद रूप में मौजूद हैं, पर वे अभी भी शूद्रों की भांति सेवक ही बनकर प्रसन्न दिखाई पड़ते हैं। नेतृत्व तो उच्चवर्णीय हिन्दुओं के पास ही है।

सिन्हा साहब आपका संघ आज भी गाय सरीखे चौपाया को दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक इंसान से ज्यादा पवित्र मानता है और उसकी रक्षा के नाम पर इनकी जान लेने से भी नहीं चूकता है। आप लोगों ने एक पशु को इतना ऊपर उठा रखा है कि मानव की गरिमा गिर कर भूलुंठित हो चुकी है। आपके लाखों साधारण और असाधारण स्वयंसेवक आज भी दलितों का हाथ का छुआ पानी पीने में हिचकते हैं पर गाय का पेशाब बड़ी शान से पी जाते हैं और बचा खुचा इत्र की तरह खुद पर छिड़क लेते हैं।

आपका एक भी पपू सरसंघचालक अजा, जजा और पिछड़े वर्ग से नहीं आया। क्या यह जातिवाद नहीं है ?

सच तो यह है सिन्हा जी कि आपने गणवेश से सिर्फ हाफपैंट ही छोड़ी है, जातिजन्य वैचारिक नग्नता तो आज भी जस की तस है।

अंत में संघ विचारक जी मैं आपसे जानना चाहता हूँ कि आज तक संघ ने जाति विनाश के लिये कोई आन्दोलन क्यों नहीं चलाया ?

आपके कितने प्रतिशत स्वयंसेवकों नें जाति तोड़कर अन्तर्जातिय विवाह किये ? आपके संगठन में कितने प्रतिशत प्रचारक दलित व आदिवासी वर्ग के हैं ?

संघ ने आज तक दलितों के समानता के लिये किये गये कितने आन्दोलनों में शिरकत की ?

सच्चाई तो यह है सिन्हा साहब कि आज भी आरएसएस के लिये दलित,पिछड़े और आदिवासी सिर्फ उपयोग की सामग्री मात्र हैं और हर वो व्यक्ति आपकी नजर में झूठा और स्वार्थी है जो आपसे इस्तेमाल होने से इंकार कर देता है।

वैसे भी एक दोगले, पाखण्डी, संकीर्ण,जातिवादी और संविधानविरोधी तथा मनु समर्थक सवर्ण पितृसत्तात्मक अलोकतांत्रिक फासिस्ट संगठन से जुड़े शख्स से सत्यवादी होने का सर्टीफिकेट चाहिये किसको?

हमें अच्छे से पता है कि आपकी फैक्टरी से "झूठ बोलो, झट से बोलो और जोर जोर से बोलो" वाले उत्पाद तेजी से उत्सर्जित हो रहे हैं। कोई यूं ही आपको 'रूमर्स स्प्रेडिंग सोसायटी' ( आरएसएस ) थोड़े ही कहता है !!

भंवर मेघवंशी

लेखक प्रसिद्ध दलित चिंतक हैं।

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Bhanwar Meghwanshi
Bhanwar Meghwanshi