बिजन भट्टाचार्या की जन्मशताब्दी वर्ष : पटना में याद किया गया

पटना (विनीत राय/ राजन कुमार सिंह) 12 अक्टूबर 2016 “1940 के दशक में बंगाल के भयावह अकाल के बाद अकाल की मार से प्रभावित होकर 'नवान्न' के द्वारा विजन भट्टाचार्या ने नाटकों की दुनिया में युगांतकारी बदलाव लाया. विजन भट्टाचार्या के नाटकों ने बंगाल के अकाल की विभीषका से देश को परिचित कराया. उस महान जननाट्य आंदोलन की विरासत और चुनौती है कि जनता के दुःख-दर्द, स्वप्नों, आकांक्षाओं को हम अपने नाटकों से उजागर करें."

ये बातें बांग्ला कवि और श्रमिक नेता विद्युत् पाल ने रंगकर्मियों-कलकारों के साझा मंच 'हिंसा के विरुद्ध संस्कृतिकर्मी’ द्वारा आयोजित बिजन भट्टाचार्य जन्म शताब्दी समारोह में बोलते हुए कहा।

बातचीत का विषय था 'बिजन भट्टाचार्य और जन नाट्य आंदोलन की विरासत'

विद्युत पाल ने स्पष्ट कहा कि इप्टा एक संगठन नहीं, सांस्कृतिक आन्दोलन का नाम है, जिसे बादल सरकार और बिजन भट्टाचार्य ने आगे बढ़ाया था.

बिजन दा ने नवान्न, देवीगर्जन सहित कुल 26 नाटक लिखे थे. उनकी एक जिद थी कि गाँव में ही नाटक करेंगे. बिजन दा ने जिस नाट्य आन्दोलन को ताकत दी, उस नाट्य आन्दोलन का ही परिणाम था कि जब कल्लोल नाटक को बंद किया गया तो पूरे बंगाल में हड़ताल हुई.

अवकाश प्राप्त प्रोफ़ेसर, वयोवृद्ध रंगकर्मी एवं जन नाट्य संघ, छपरा के दशकों तक अध्यक्ष रहे अमिय नाथ चटर्जी ने लेनिन के कथन ‘क्वालिटी महत्वपूर्ण होती है क्वांटिटी नहीं’ को उद्धृत करते हुये अपनी बात शुरु करते हुये कहा –

“आज के ज्यादातर युवा रंगकर्मी वैचारिक शून्यता के शिकार हो रहे हैं। भूले-बिसरे अपने पुराने साथियों को याद करना हमारा संस्कार है, जो हमारे रंगकर्म को समृद्ध करेगा।“

बिजन दा ने बेजुबान, दबे-कुचले– शोषित जन के दुःख को जुबान दिया.

उन्होंने आगे कहा

“बिजन भट्टाचार्य के नाटकों में प्रमुख है- जबान बंदी, देवीगर्जन, गोत्रातर. ये ऐसे प्रसिद्ध नाटक हैं जिस जमीन पर खड़े होकर बिजन दा ने नाटक को क्रांति का हथियार बनाया। उन्होंने ऋत्विक घटक की महान फिल्मों – मेघे ढाका तारा, सुवर्ण रेखा, कोमल गांधार में अभिनय किया। यह दुखद है कि बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने सिर्फ इस कारण उनको याद नहीँ किया कि वे वामपंथी थे।"

बिजन बाबू के भीतर रवि बाबू का स्प्रिट भरा था तो उन्होंने नाटक को युद्ध के हथियार की तरह इस्तेमाल किया।

बिजन दा के अधूरे सपनों को महाश्वेता और नवारुण ने आगे बढ़ाया। हमें बिजन दा को याद करते हुए सफ़दर को भी याद करना होगा कि बिजन दा की लीक पर नाटक करते हुए सफ़दर ने अपनी शहादत दी है।

हिंसा के विरुद्ध संस्कृतिकर्मी द्वारा आयोजित इस समारोह के लिए कोलकाता के संस्कृतिकर्मी पलाश विश्वास द्वारा भेजे गए बिजन भट्टाचार्य पर भेजे गए आलेख का पाठ पत्रकार पुष्पराज ने किया और बिजन भट्टाचार्या, उनकी पत्नी प्रख्यात लेखिका महाश्वेता देवी एवं उनके इकलौते कवि-पुत्र नवारुण भट्टाचार्य के रचनात्मक प्रतिबद्दता की चर्चा की।

‘बिहार आर्ट थियेटर’ (बैट) के महासचिव कुमार अनुपम ने कहा

"बिजन दा ने नाटक को दुःख और यातना से मुक्ति का इन्कलाब साबित किया। बिजन भट्टाचार्य ने नाटक को मनोरंजन की बजाय जीवन में बदलाव का अस्त्र बना दिया। बिजन दा नगाड़े की आवाज़ हैं, जिनकी चर्चा करने से रंगमंचीय सन्नाटा कम होता है. हम बिजन दा का जन्म शताब्दी समारोह नहीं मनाने वाली बंगाल सरकार को बिहार के रंगकर्मियों आर्ट थिएटर की ओर से प्रतिवाद पत्र भेजना चाहते हैं. बिहार आर्ट थिएटर की ओर से हम बिजन दा के नाटकों का मंचन करना चाहते हैं, शर्त यह कि उनके नाटकों का हिंदी रूपांतरण हमें उपलब्ध हो सके।

बहस को आगे बढ़ाते हुये रंगकर्मी अनीश अंकुर ने कहा

"एक्टीविस्ट थियेटर की परम्परा की शुरुआत का श्रेय बिजन भट्टाचार्य के नाटकों को जाता है। उनके नाट्कों ने बंगाल में रंगमंच की पुरानी दुनिया को बदल कर रख दिया। जन नाट्य आंदोलन ने नाटकों को एक तरफ शास्त्रीयता और परम्परागत लोक नाटकों की जड़ता से मुक्त कराया। नृत्य, संगीत सबों पर प्रगतिशील प्रभाव डाला। जन नाट्य ने भारत में पहली बार मंच सज्जा, अभिनय, रंग-तकनीक के स्वरूप में बदलाव लाकर आधुनिक रंग संकल्पना को जन्म दिया।“

अकाल से भूख और भूख से मौत की भाषा बांग्ला होती है

अनीश अंकुर ने बिजन दा के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा कि जब नवान्न के हिंदी रूपांतरण का पूर्वाभ्यास चल रहा था तो पी.सी. जोशी ने राहुल सांकृत्यायन से नवान्न के पूर्वाभ्यास का मार्गदर्शन करने कहा था।

राहुल सांकृत्यायन ने नवान्न के हिंदी मंचन में बांग्ला जुबान को नाटक की गति बताते हुए कहा था कि मुल्क को मालूम होना चाहिए कि अकाल से भूख और भूख से मौत की भाषा बांग्ला होती है।

नवान्न का मंचन शहरी दर्शकों के लिए इसलिए भी अजीबोगरीब था कि नाटक का मंच जूट और बोरों से भर गया था इसलिए कि अकाल के बाद बोरों के चीथड़े ही लोगों के वस्त्र थे। बिहार में नवान्न के प्रभाव से शुरू हुए इप्टा के नाटकों को जमींदार ‘शर्मा जी का टैंक कहते थे ‘। (कार्यानन्द शर्मा किसानों के बड़े नेता थे )।

बातचीत में हस्तक्षेप करते हुये मैथिली और हिंदी के वरिष्ठ रंगकर्मी कुणाल ने कहा-

“रंगमंच के साथ-साथ साहित्य और कला का मुख्य कर्म आलोचना ही है। प्रतिरोध रंगकर्म का स्वाभाविक चरित्र है, इसी प्रवृति और प्रकृति ने बिजन भट्टाचार्य को नाटक का इन्कलाब घोषित किया। लोकनाटक को जो लोग फूहड़ कहते हैं, उन्हें लोकनाटक की शास्त्रीयता का पता नहीं है।“

प्रख्यात कवि आलोक धन्वा ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में कहा,

"पलाश जी का आलेख ही इस आयोजन का आधार वक्तव्य है। तुमुल कोलाहल के माहौल में बिजन बाबू को याद करने का मतलब है कि हम यथास्थिति को कबूल नहीं करते हैं। विजन बाबू उन लोगों में थे, जिन्होंने मूक लोगों को वाणी प्रदान किया। आज़ादी की लड़ाई में शामिल विजन भट्टाचार्या ने नाटकों व फिल्मों के माध्यम से समाज को बेहतर बनाने का काम किया"।

बातचीत में शामिल लोगों में थे वरिष्ठ रंगकर्मी कुमार गगन, जनशक्ति के संपादक प्रियरंजन, युवा रंगकर्मी सिकंदर-ए- आज़म, गजेंद्रकांत शर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता सतीश, फ़ार्वर्ड ब्लाक से जुड़े बालगोविंद, मूर्तिकार बीरेंद्र कुमार, कला समीक्षक मनोज कुमार बच्चन, सुमन कुमार, साहित्यकार अरुण शाद्वल, युवा साहित्यकार जीतेंद्र वर्मा, बिहार खोज खबर डॉट कॉम के अरुन सिंह, एटक के जीतेंद्र कुमार, विनीत राय, माकपा के गोपाल शर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता ग़ालिब खान, युवा रंगकेर्मी विशाल तिवारी, गौतम गुलाल, राजन कुमार सिंह, मनोज, अजय चौहान, विक्रांत चौहान आदि।