अक्षय ऊर्जा का विस्तार करने के मामले में कर्नाटक सबसे अव्वल
अक्षय ऊर्जा का विस्तार करने के मामले में कर्नाटक सबसे अव्वल
अक्षय ऊर्जा का विस्तार करने के मामले में कर्नाटक सबसे अव्वल
डॉ. सीमा जावेद
इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एण्ड फिनांशियल एनालीसिस (आईईईएफए) की एक ताजा अध्ययन रिपोर्ट में पाया गया है कि अक्षय ऊर्जा का विस्तार करने के मामले में कर्नाटक ने तमिलनाडु को पीछे छोड़ दिया है। इस राज्य की कुल अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता 12.3 गीगावॉट है और उसने तमिलनाडु को 1.7 गीगावॉट के अंतर से पछाड़ दिया है।
गौरतलब है कि भारत में बिजली उत्पादन के माध्यमों का तेजी से रूपान्तरण हो रहा है। वर्ष 2017 में देश में अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के मुकाबले तीन गुने से ज्यादा की वृद्धि हुई है। ऐसे में कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों की भविष्य की सम्भावनाएं यकीनन गिरावट की ओर हैं और अक्षय ऊर्जा पर खासा जोर है।
सेंटर फॉर फाइनेंशियल अकाउंटेबिलिटी की एक रिपोर्ट में पाया गया है कि वर्ष 2017 में तमिलनाडु, तेलंगाना ,कर्नाटक ओडिशा, पंजाब और उत्तराखंड राज्यों ने केवल अक्षय उर्जा परियोजनाओं के विकास के लिए ही बैंक ऋाण लिए और इन राज्यों द्वारा कोयला आधारित परियोजनाओं के लिए कोई कदम नहीं बढाया।
कर्नाटक की अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता अब अपने यहां कोयला आधारित संयंत्रों की कुल उत्पादन क्षमता से 2.5 गीगावॉट ज्यादा हो चुकी है।
मार्च 2018 तक कर्नाटक ने अपनी सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता में 4 गीगावॉट की बढ़ोत्तरी की है। मार्च 2018 के अंत तक कर्नाटक के पास कुल सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता 5 गीगावॉट, वायु ऊर्जा उत्पादन क्षमता 4.7 गीगावॉट और लघु पनबिजली, बायोमास और हीट एवं पॉवर सहउत्पादन क्षमता 2.6 गीगावॉट थी।
एनर्जी फाइनेंस स्टडीज, ऑस्ट्रेलिया, आईईईएफए के निदेशक टिम बकले ने कहा कि
“इस साल तक अक्षय ऊर्जा के मामले में तमिलनाडु सबसे आगे था और वायु बिजली उत्पादन के मामले में वह अब भी अग्रणी बना हुआ है। दूसरी ओर कर्नाटक ने उद्योगों के प्रति मित्रवत नीतियां अपनाकर अपनी सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता में बहुत तेजी से वृद्धि की है। दो प्रगतिशील राज्यों के बीच यह स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा देखकर अच्छा लग रहा है, मगर ये दोनों राज्य वायु ऊर्जा उत्पादन क्षमता का पूर्ण दोहन करने के लिये और भी काफी कुछ कर सकते हैं।
ऐसे में कर्नाटक को कोयले से चलने वाले किसी नये बिजली संयंत्र की जरूरत नहीं है। 1.7 गीगावॉट क्षमता वाले रायचूर थर्मल पॉवर प्लांट के सम्भावित प्रतिस्थापन को छोड़कर, जो वर्ष 2022 तक कालातीत हो जाएगा, जैसा कि नेशनल इलेक्ट्रिसिटी ड्राफ्ट 2018 में कहा गया है।
ज्ञात हो कि कोयले पर हमारी निर्भरता वायु प्रदूषण के रूप में हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रही है, वहीं इससे जलवायु परिवर्तन भी हो रहा है।
लांसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एण्ड क्लाइमेट द्वारा किये गये अनुसंधान में शामिल विश्लेषण से पता चलता है कि कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के कारण होने वाले प्रदूषण से भारत में हर साल औसतन 81,286 लोगों की मौत होती है। ये आंकड़ा केवल कोयला जलने के कारण होने वाले प्रदूषण से जुड़े परिणाम का ही है। अन्य प्रकार के प्रदूषण से मरने वालों की तादाद इससे कहीं ज्यादा होगी। कम से कम इस तरीके से अर्जित की गयी बिजली को सस्ती ऊर्जा नहीं कहा जा सकता।
देश में बिजली की बढ़ती मांग ने दो प्रमुख चिंताओं को जन्म दिया है। पहली, ऊर्जा संयंत्रों, औद्योगिक इकाइयों तथा ईंधन संचालित परिवहन साधनों से निकलने वाली प्रदूषणकारी गैसों, धूल और धुएं के उत्सर्जन को रोकने के लिये सख्त नीतियों का अभाव, जिससे भारत में वायु प्रदूषण की समस्या गहराती जा रही है। दूसरा प्रतिव्यक्ति ऊर्जा उपभोग में बढ़ोत्तरी की व्यापक सम्भावनाओं और बिजली की पहुंच बढ़ाने पर ज्यादा जोर दिये जाने से भविष्य में उपरोक्त मुद्दों की शक्ल और खराब होती जाएगी।
ऐसे में भारत ने ऊर्जा की पहुंच बनाने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन के सम्बन्ध में महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किये हैं। इन प्राथमिकताओं का परिणाम देश की कुल बिजली उत्पादन क्षमता में अक्षय ऊर्जा की उल्लेखनीय हिस्सेदारी के रूप में सामने आयेगा। भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक 175 गीगावॉट और 2027 तक 275 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा उत्पादन की योजना तैयार की है। इसका मतलब यह है कि वर्ष 2021-22 और 2026-27 तक देश के कुल बिजली उत्पादन में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी क्रमश: 20.3 प्रतिशत और 24.2 फीसद रहेगी।
(लेखिका डॉ. सीमा जावेद पर्यावरणविद एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं।)


