अखिलेश यादव के कथित युवा एजेंडे में तारिक कासमी और नजीब जैसे मुस्लिम युवक नहीं - रिहाई मंच
अखिलेश यादव के कथित युवा एजेंडे में तारिक कासमी और नजीब जैसे मुस्लिम युवक नहीं - रिहाई मंच

Lucknow: Samajwadi Party (SP) chief Akhilesh Yadav greets Bahujan Samaj Party (BSP) chief Mayawati on her 63rd birthday in Lucknow, on Jan 15, 2019. (Photo: IANS)
अखिलेश यादव के कथित युवा एजेंडे में तारिक कासमी और नजीब जैसे मुस्लिम युवक नहीं - रिहाई मंच
सपा ने वादा निभाया होता तो आज 10 साल से जेल में नहीं सड़ रहे होते तारिक कासमी
साम्प्रदायिक खुफिया और पुलिस अधिकारियों को बचाने के लिए तारिक जैसे बेगुनाहों को जेलों में सड़ा रही है अखिलेश सरकार
मुस्लिम विधायकों और मंत्रियों की चुप्पी शर्मनाक
लखनऊ 12 दिसम्बर 2016। अगर सपा सरकार ने आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को रिहा करने का वादा पूरा किया होता तो तारिक कासमी आज जेल से बाहर होते। सपा सरकार ने साम्प्रदायिक सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत देने वाले निमेष कमीशन पर जानबूझ कर कार्रावई नहीं की ताकि उसे तारिक और खालिद जैसे बेगुनाह मुस्लिम युवकों को आतंकी बताकर पकड़ने की खुली छूट मिली रहे। युवा अखिलेश यादव के कथित ‘युवा एजेंडे’ में तारिक कासमी और नजीब जैसे मुस्लिम युवा नहीं हैं।
ये बातें आज रिहाई मंच कार्यालय पर तारिक कासमी की फर्जी गिरफतारी की 9वीं बरसी पर आयोजित बैठक में मंच के अध्यक्ष मो. शुऐब ने कहीं।
मो. शुऐब ने आरोप लगाया कि अखिलेश सरकार ने अपने सजातीय हिंदू वोटरों को संतुष्ट करने के लिए मुसलमानों से किए गए इस चुनावी वादे से पीछे हट गई जिसमें उसने आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाह मुस्लिम युवकों को रिहा करने का वादा किया था।
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि 12 दिसम्बर 2007 को आज के ही दिन तत्कालीन मायावती सरकार में तारिक कासमी को उनके घर से कुछ दूरी पर रानी सराय चेक पोस्ट, आजमगढ़ से सादी वर्दी में बिना नम्बर प्लेट वाली गाड़ी में एसटीएफ ने अगवा कर लिया था। जिसके खिलाफ पूरे आजमगढ़ में आंदोलन शुरू हो गया था जिसके बाद बढ़ते दबाव के कारण एसटीएफ ने तारिक कासमी और इसी तरह मड़ियाहूं, जौनपुर से उठाए गए खालिद मुजाहिद को 22 दिसम्बर 2007 को आतंकी बताकर बाराबंकी स्टेशन से फर्जी गिरफतारी दिखा दी थी। जिसके बाद पुलिस की इस साम्प्रदायिक और आपराधिक कार्यशैली पर पूरे सूबे में बेगुनाहों की रिहाई (Release of innocents) जन आंदोलन का उभार हुआ था। जिसके दबाव में तत्कालीन मायावती सरकार ने इस फर्जी गिरफ्तारी पर जांच (Investigation on fake arrest) के लिए जस्टिस निमेष कमीशन (Justice Nimesh Commission) का गठन किया था।
राजीव यादव ने आरोप लगाया कि इन गिरफ्तारियों से मुस्लिम समुदाय में व्याप्त नाराजगी का राजनीतिक इस्तेमाल करने के लिए सपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को रिहा करने का वादा तो किया लेकिन चुनाव जीतने के बाद वो न सिर्फ अपने वादे से मुकर गई बल्कि खालिद मुजाहिद की हत्या भी करवा दिया। जबकि निमेष कमीशन ने तारिक और खालिद की गिरफतारी को फर्जी बताते हुए दोषी पुलिस और खुफिया अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की थी।
राजीव यादव ने कहा कि अगर मुसलमानों के वोट से सत्ता में पहुंची सपा सरकार ने अपने चुनावी वादे को पूरा किया होता तो न सिर्फ तारिक कासमी आजाद होते और खालिद जिंदा होते, बल्कि उन जैसे बेगुनाह मुसलमानों को फंसाने वाले पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह, तत्कालीन एडीजी बृजलाल, आईपीएस अधिकारी मनोज कुमार झा, चिरंजीव नाथ सिन्हा जैसे लोग जो खालिद की हत्या के भी आरोपी हैं, जेलों में बंद होते।
उन्होंने आरोप लगाया कि साम्प्रदायिक खुफिया और पुलिस अधिकारियों का मनोबल बनाए रखने के लिए ही अखिलेश सरकार ने इनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की।
राजीव यादव ने आरोप लगाया कि मुलायम सिंह ने कई सार्वजनिक सभाओं में अपने पेरोल पर काम करने वाले मौलानाओं की मौजूदगी में यह अफवाह भी फैलाने की कोशिश की कि सपा सरकार ने आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को छोड़ दिया है। इसी तरह रामगोपाल यादव ने भी राज्य सभा में इस झूट को दोहराया।
राजीव यादव ने कहा कि सपा सरकार यादव सिंह जैसे महाभ्रष्ट आदमी के बचाव में तो सुप्रीम कोर्ट चली जाती है लेकिन आतंकवाद के नाम पर फंसाए गए बेगुनाहों को छोड़ने के सवाल पर संघ परिवार से जुड़ी रंजना अग्निहोत्री द्वारा दायर याचिका के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट नहीं जाती है।
बैठक में शामिल रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने कहा कि अखिलेश सरकार में शामिल मुस्लिम मंत्रियों और सपा विधायकों ने कभी भी इन वादा खिलाफियों पर सवाल नहीं उठाया जो साबित करता है कि इनका इस्तेमाल सिर्फ मुसलमानों का वोट लेने के लिए मुलायम सिंह का कुनबा करता है। उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह की पूरी राजनीति ही मुस्लिम विरोधी रही है इसीलिए कभी भी सपा सरकारों ने हाशिमपुरा, मलियाना और कानपुर मुस्लिम विरोधी जनसंहारों की रिर्पोटों को जारी नहीं किया।
उन्होंने आरोप लगाया कि अखिलेश यादव के कथित युवा एजेंडे में तारिक कासमी और उत्तर प्रदेश के बदायूं निवासी नजीब अहमद जैसे मुस्लिम युवा नहीं हैं। अखिलेश यादव अपने बीवी बच्चों के साथ तो पूरी दुनिया घूमते हैं लेकिन उन्हें उन मुस्लिम मांओं, बीवियों और बच्चों की चिंता नहीं है जिनके बेटे, पति और बाप बिना किसी गुनाह के आतंकी बताकर जेलों में सड़ाए जा रहे हैं।
बैठक में रिहाई मंच लखनऊ यूनिट के महासचिव शकील कुरैशी, अनिल यादव, शम्स तबरेज़, हरे राम मिश्र, शरद जायसवाल व तारिक शफीक आदि उपस्थित थे।


