फिदेल कास्त्रो : एक क्रांतिकारी जीवन का उत्सव

विनीत तिवारी

इंदौर। फिदेल कास्त्रो 90 वर्ष की उम्र में एक दीर्घ सक्रिय जीवन जीने के बाद 25 नवंबर 2016 को इस दुनिया से रुखसत हुए लेकिन वे हमेशा के लिए बसे रहेंगे।

वे बेेशकीमती दुनिया के दूसरे सिर पर मौजूद एक छोटे से देश के शासक थे, लेकिन उन्होंने अनेक देशों की आशादायी की लहराई में निर्णायक भूमिका निभाई और बेहतरीन मानवीय गुणों वाले मनुष्यों को बनाया।

कहा जा सकता है कि अगर फिदेल नहीं होते तो अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के अनेक देशों के मुक्ति संघर्षों का नतीजा बहुत अलग रहा होता।

उनके निधन के उपरांत इंदौर में उनके प्रशंसकों ने तय किया कि फिदेल की याद में कोई कार्यकम शोक या श्रद्धांजलि का नहीं किया जाएगा बल्कि उनकी याद में एक क्रांतिकारी जीवन का उत्सव मनाया जाएगा।

इसलिए 5 दिसंबर को इंदौर के सभी प्रगतिशील-जनोवादी और वामपंथी संगठनों द्वारा फिदेल कास्त्रो की याद में "फिदेल कास्त्रो : एक क्रांतिकारी जीवन का उत्सव" का कार्यक्रम आयोजित किया।

अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता संघ (एप्सो), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (एसयूसीआई), भारतीय जन नाट्य संघ, जनवाणी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ, मेहन्तकश, रूपांकण और संधर्भ केंद्र का ये संयुक्‍त आयोजन हिंदी साहित्य समिति में किया गया। वक्ताओं में उनके नाम तय किए गए जो क्यूबा जा चुके हैं और अपनी नज़रों से क्यूबा देख चुके हैं।

इंदौर में ऐसे दो ही नाम दूँढे जा सकते हैं। एक अर्थशास्त्री डॉ. जय महेठा का जो धीढ़ के दस्तक में कुछ महिनों के लिए क्यूबा गईं थी, एक बैंक अधिकारी यूनियन के प्रमुख राष्ट्र्रीय नेता आलोक खरे का, जो कुछ वर्षों पहले ट्रेड यूनियन के अंतर्गत राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने क्यूबा गए थे और एक भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार लज्जाशंकर हरदेनिया, जो सिधु के दस्तक में क्यूबा के दशक में।