अगर वामपंथ को वामपंथियों ने न हराया होता तो हिंदुत्व की राजनीति वैसे ही हाशिये पर होती जैसे आज वामपंथी हैं
अगर वामपंथ को वामपंथियों ने न हराया होता तो हिंदुत्व की राजनीति वैसे ही हाशिये पर होती जैसे आज वामपंथी हैं
हमारे सत्तर के दशक के कामरेड मित्र राजा बहुगुणा ने लिखा हैः
लेफ्ट को लेकर आपने कल बहुत पोस्ट लिखी। मानो लेफ्ट ही मुख्य टारगेट हो। यह सब तथ्यात्मक भी नहीं था। आज की चुनौती आपकी बातों में गायब है। आज आपने वो पोस्ट हटा दी है। कृपया धारणाओं से नहीं तथ्यों से सच्चाई निकालिए, आपसे यह अपेक्षा है।
पहली बात तो यह है कि मैं अपनी बात बदलने वाला नहीं हूं, राजा खुद यह जानते हैं। यह फेसबुक की महिमा है कि पोस्ट डिलीट हो गया है। मेरा पोस्ट डिलीट होना आम बात है जैसे मुझे रिस्ट्रिक्ट करना।
दूसरी बात यह है कि मैं मुक्त बाजार और हिंदुत्व की राजनीति, कारपोरेट एकाधिकार का लगातार अपने लेखन और वक्तव्य में विरोध करता रहा हूं।
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हम अब भी मानते हैं कि वर्गीय़ ध्रुवीकरण और वैज्ञानिक सोच के बिना मौजूदा सामंती औपनिवेशिक मुक्तबाजारी व्यवस्था नहीं बदलने वाली है और न ही समता और न्याय पर आधारित समाज का निर्माण संभव है।
बदलाव चाहता ही नहीं है लेफ्ट
हम मानते हैं कि भारत में बदलाव में बहुसंख्य सर्वहारा वर्ग का नेतृत्व लेफ्ट को ही करना है। हमारी शिकायत तो यही है कि लेफ्ट बदलाव चाहता ही नहीं है। बंगाल में बंगाली अस्मिता और केरल में मलयाली अस्मिता के तहत सत्ता की संसदीय राजनीति करने वाले कामरेड वर्ग और जाति हितों के मुताबिक भगवाकरण ही कर रहे थे, कर रहे हैं।
अगर वामपंथ को वामपंथियों ने न हराया होता तो हिंदुत्व की राजनीति वैसे ही हाशिये पर होती जैसे आज वामपंथी हैं।
हम हिंदुत्व और संघपरिवार पर लगातार हमला करके हिंदुत्व के पक्ष में ध्रुवीकरण का माहौल बनाने के खिलाफ हैं।वे जैसे हैं,उनका जो चरित्र है, उसमें कोी परिवर्तन अब तक नहीं हुआ है और न होने वाला है।
वामपंथ अपनी गलतियों से सबक लेकर सर्वहारा वर्ग की एकता की प्रक्रिया जड़ों से शुरू करें,यह हिंदुत्व की राजनीति के मुकाबले का सही रास्ता है।
लेफ्ट को नहीं लेफ्ट के कुलीन वर्चस्ववादी नेतृत्व को टार्गेट कर रहे
जाहिर है कि हम लेफ्ट को टार्गेट नहीं कर रहे हैं। लेफ्ट के कुलीन वर्चस्ववादी नेतृत्व को टार्गेट कर रहे हैं, जिसने भारत में साम्यवादी आंदोलन से दगा किया है। अपने वर्ग जाति हितों के कारण।इस सच का सामना करना प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं के लिए मुश्किल है। लेकिन आत्मसमीक्षा के बिना गलतियां सुधारना मुश्किल है।
कामरेड येचुरी कामरेड सुरजीत की तरह संसदीय राजनीति के समीकरण साधने में माहिर हैं। बंगाल में जमीन पर जो हो रहा है, उसे झुठलाकर न टीएमसी का मुकाबला करना संभव है और न संघ परिवार का। हम यह नहीं मानते कामरेड महासचिव को सच मालूम नहीं होगा।
त्रिपुरा में भी सच को नजरअंदाज किया जाता रहा है।
बिहार और यूपी जैसे राज्यों में वामपक्ष के सफाये के लिए क्या नेतृत्व जिम्मेदार नहीं है?
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क्या पार्टी और जनसंगठनों, ट्रेड यूनियनों के करोड़ों कैडरों के होते हुए लेफ्ट ने केंद्र की जनसंहारी नीतियों के खिलाफ टोकन विरोध की रस्म अदायगी के अलावा लगातार आंदोलन प्रतिरोध किया है?
मलयाली कामरेड कांग्रेस के साथ गठबंधन की बंगाल लाइन के खिलाफ हैं, जिसके प्रतिनिधि खुद कामरेड महासचिव हैं, क्या यह सच नहीं है ?


