अगला हफ़्ता सुप्रीम कोर्ट के नाम होगा, हमें न्याय और सत्य की स्वतंत्र भूमिका का इंतज़ार रहेगा

The next week will be in the name of the Supreme Court, we will wait for the independent role of justice and truth

भ्रष्ट मुख्यमंत्री येदीयुरुप्पा जैसे ही दिखाई दे रहे थे वकील हरीश साल्वे

सुप्रीम कोर्ट का जज दूध पीता बोध-शून्य बच्चा नहीं होता जिसे अपनी शक्ति का अहसास नहीं होता है। राजनीति के बजाय वह अपनी कुर्सी की नैतिकता से भी बंधा होता है। वह सरकार में थोड़े समय के लिये आए नेताओं का दास नहीं होता है। प्रेमचंद की ‘नमक का दरोग़ा’ कहानी को कमतर नहीं समझना चाहिए। यह आदमी के अहम् से जुड़ा पहलू है जिसे छोड़ कर वह अपनी पहचान को लुप्त किया करता है।

इसीलिये सत्ता के दलाल वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे जब सुप्रीम कोर्ट को सरकार के इशारों पर नाचने वाले कठपुतले की तरह चित्रित कर रहे थे, वे कर्नाटक के भ्रष्ट मुख्यमंत्री येदीयुरुप्पा जैसे ही दिखाई दे रहे थे जो अमित शाह को सुप्रीम कोर्ट का भगवान समझते हैं।

सुप्रीम कोर्ट को इस हफ़्ते भारतीय राष्ट्र और प्रशासन के बारे कुछ दूरगामी महत्व के फ़ैसले सुनाने हैं। बाबरी मस्जिद का मामला है, राफ़ेल की ख़रीद की जाँच का, वित्त विधेयकों को धन विधेयकों के रूप में पारित कराके राज्य सभा के साथ धोखाधड़ी का और कश्मीर का भी मामला है।

मोदी पहले ही भारत की शक्ल-सूरत बिगाड़ चुके हैं।

मोदी भारत के सर के ताज जम्मू और कश्मीर को खंडित कर चुके हैं। राम मंदिर को लेकर वे इसी बिखराव को जन-मन में स्थाई करने की फ़िराक़ में हैं। सत्ता पर एकाधिकार और भ्रष्टाचार का चोली-दामन का संबंध हुआ करता है। वित्त विधेयक और राफ़ेल की ख़रीद इसी के प्रतीक हैं। कश्मीर का विषय भारत के संघीय ढाँचे और नागरिक अधिकारों के हनन का, अर्थात् हमारे संविधान की आत्मा से जुड़ा मुद्दा बन गया है। इसे आतंकवाद से निपटने की क़ानून और व्यवस्था की बात भर नहीं समझा जा सकता है।

मोदी अभी आदतन विदेश यात्रा पर हैं। जब भी भारत में कुछ कठिन बातें होने की होती हैं, विदेश चले जाना उनकी फ़ितरत बन चुका है।

नोटबंदी, जीएसटी के वार से अर्थ-व्यवस्था की कमर तोड़ने वाले मोदी अभी आरसीईपी पर हस्ताक्षर करके भारत की अर्थ-व्यवस्था को पूरी तरह से विदेशियों को सौंप देने का कुकर्म करने की फ़िराक़ में हैं। उन्हें एशियान की बैठक(2-4 नवंबर) में भारत को सुर्ख़ियों में रखने की सनक है। सुर्ख़ियों में ही तो उनके प्राण बसते हैं !

बहरहाल, हमारी नज़र आगामी हफ़्ते सुप्रीम कोर्ट पर होगी। हरीश साल्वे की बातों में इस सच को ज़रूर नोट किया था कि जजों की अपनी विचारधारा नाम की भी कोई चीज़ होती है।

लेकिन न्याय और सत्य अभी भारत की नियति से जुड़ गये हैं। भारत का खंडित मुकुट भी इसकी गवाही दे रहा है। हमें इसी न्याय और सत्य की स्वतंत्र भूमिका का इंतज़ार रहेगा।

-अरुण माहेश्वरी