संसद घेरो ! दिल्ली चलो !

भूमि अधिग्रहण का काला कानून रद्द करो!

निमंत्रण

विस्थापन - भूमि लूट के खिलाफ

और

प्राकृतिक संसाधनों व आजीविका अधिकार पर समुदाय के

नियंत्रण हेतु

राष्ट्रीय आंदोलन

3 - 5 अगस्त जंतरमंतर, नई दिल्ली

15 जुलाई 2011

प्रिय साथियों,
जिंदाबाद!

1979 में नर्मदा जलविवाद प्राधिकरण ने परियोजना प्रभावितों के लिये भूमि के बदले भूमि की नीति को माना, जो कि बाद में मध्य प्रदेश की 1987 में बनी पुनर्वास व पुनर्स्थापना नीति का आधार बनी और बाद में बनी अनेक सरकारी ऐजंेसियों व आंदोलन समूहो की नीतियों के ड्रॉफ्ट में भी आई।

लगभग तीन दशकों के बाद जब तथाकथित विकास योजनाओं के लिये पूरे देश में अनचाहे विस्थापन - भूमि लूट की खिलाफत तेजी से सामने आई है। तब राजनैतिक दलो और व्यवसायिक घरानों की कोशिश हो रही है की भूमि के बदले मात्र पैसा दे दिया जाये।

सन् 2000 से जनआंदोलन सफलतापूर्वक कलिंगनगर, नियमागिरी, सिंगुर, नंदीग्राम, सोमपेटा, चंद्रपुर, नर्मदा घाटी, रायगढ़, केरल, जगतपुर, मुंबई, ग्रेटर नौएडा और अन्य हजारो जगहो पर भूमिलूट के खिलाफ खड़े हुये है। आदिवासी-महिला-दलित-किसान-कामगार-भूमिहीन मजदूर और अन्य सभी अपने भूमि अधिकार के लिये संघर्षरत है। साथ ही सदियों से जगंलों में रह रहे वनवासी भी अपने भूमि-आजीविका अधिकार के लिये लड़ रहे है। बावजूद इसके की 2006 में सरकार ने कानून भी बनाया है। जिसका लाभ भी उन्हे नही मिल पाया।

देशभर में चल रहे भूमि रक्षा आंदोलनो मंे अनेको शहीद हुये है। 6 साथी फोरबसगंज, बिहार में; चार साथी नौएडा, उत्तर प्रदेश में; चार साथी घनबाद, झारखंड में; एक साथी जैतापुर, महाराष्ट में; तीन साथी सोमपेटा, आंध्रप्रदेश में; दो साथी नारायणपटना, ओडिसा में; आठ साथी मुदीगोंडा, आंध्र प्रदेश में; ग्यारह साथी नंदीग्राम, पश्चिम बंगाल में; तेरह साथी कलिंगनगर, ओडिसा में; चार साथी गोहाटी, आसाम में शहीद हुये!!! और इस तरह से ये सूची बहुत लम्बी है।

इन आदिवासी-महिला-दलित-किसान-कामगार-भूमिहीन मजदूर और अन्य सभी ने अपने प्राणों की आहुति अपने प्राकृतिक संसांधनों जो कि उनकी आजीविका के साधन है, की रक्षा के लिये दी है।

1894 के काले भू-अर्जन कानून का इस्तेमाल सरकारें भूमि लूट के लिये करती रही है। आंदोजन समूह इसे समाप्त करने के लिये वर्षो से अभियान चला रहे है। दूसरी तरफ बन चुकी व बन रही परियोजनाओं से हुये विस्थापित अपने न्यायपूर्ण पुनर्वास-पुनर्स्थापना के लड़ रहे है। उनके लिये एक न्यायपूर्ण पुनर्वास-पुनर्स्थापना कानून की आवश्यकता है।

1998 में जब श्री बाबागौडा पाटील ग्रामीण विकास मंत्रालय के मंत्री थे तब मंत्रालय के सामने ‘जनअंादोलनो का राष्ट्रीय समंवय’ के नेतृत्व में ‘‘ग्रामसभा स्तर पर विकास योजना बने और कोई अनचाहा विस्थापन ना हो’’ का विषय उठाया गया था। जिसके बाद यह विषय विभिन्न स्तरों पर जो कि आज ‘राष्ट्रीय विकास, विस्थापन और पुनर्वास’ बिल के रुप में सामने आया है। जिसे पहली राष्ट्रªीय सलाहाकार परिषद्, 2006 ने स्वीकार किया था।

इसके बाद ‘‘संघर्ष’’ के बैनर तले देशभर की परियोजनाओं से विस्थापितों और भविष्य के अनचाहे विस्थापन के खिलाफ चल रहे आंदोलनों की सांझी लड़त चल रही है। भूमि अधिकार की रक्षा के मुद्दे देशभर के अन्य आंदोलन, समंवयों की लडाइऱ् को एक बड़ी विजय वनअधिकार कानून 2006 के रुप में मिली।

एक बार फिर उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नौएडा क्षेत्र के भूमि संघर्ष ने ऐसा वातावरण बना दिया कि हर राजनैतिक दल वर्तमान भू-अर्जन कानून में बदलाव की बात कर रहा है और 13 जुलाई, 2011 तक यूपीए सरकार प्रस्तावित मानसून सत्र में ऐसा करने की घोषणा कर रही थी।

यह एक स्वागत योग्य कदम है कि नये ग्रामीण विकास मंत्री श्री जयराम रमेश ने दो विधेयको { प्रस्तावित भू-अर्जन (संशोधन) और पुनर्वास/पुनस्थापना राष्ट्रीय कानून} के स्थान पर एक नया सम्पूर्ण कानून बनाना स्वीकार किया है। किन्तु यह मात्र पहला कदम है, रास्ता अभी और है।

हम एक बार फिर से दोहरायेंगे कि यूपीए सरकार अवश्यः-

1. भूमि-अधिग्रहण का काला तुरंत कानून रद्द करेे! और दो विधेयकों के स्थान पर एक सम्पूर्ण राष्ट्रीय विकास, बिना अनचाहे विस्थापन और पुनर्वास बिल लाया जाये। जिसमें ग्रामीण विकास पर स्थायी समिति (2007-08) के प्रगतिशील तत्वों को, न्यूनतम् विस्थापन, न्यायपूर्ण पुनर्वास और संविधान के अनुच्छेद 243, पेसा 1996 और वन अधिकार कानून 2006 के सिद्धंात पर आधारित एक विकेंद्रित विकास नियोजन कानून बने। जिसके पहले प्रभावित समुदायों, आंदोलन समूहों और किसान समूहों के साथ चर्चा हो।

2. देशभर में सभी भू-अर्जनों पर तत्काल रोक लगे जब तक की नया सम्पूर्ण कानून पूरा ना बन जाये।

3. आजादी से आज तक हुये भूमि-अधिग्रहण, विस्थापन के कारण और पूर्ण हुये पुनर्वास पर एक श्वेत पत्र जारी करे! इस श्वेत पत्र में आना चाहिये-अधिग्रहित भूमि का प्रयोग, सार्वजनिक हित के लिये अधिग्रहित की गई भूमि जिसका कोई उपयोग नही किया गया और आज भी बिमार और बंद पड़े उद्योगों व अन्य ढ़ांचागत परियोजनाओं ने वापिस नही की गई। इन जानकारियों से पूर्ण श्वेत पत्र आम जनता के सामने लाया जाये।

यह समय है कि हम सब साथ खड़े होकर भविष्य की पीढ़ी हेतु खाद्य सुरक्षा हेतु भूमि अधिकार व कृषि भूमि बचाये। आज के वर्तमान संदर्भ में बढ़ती खाद्य मांग की पूर्ति हेतु; विकास की जरुरतों की पूर्ति हेतु; करोड़ो लोगो के आजिविका अधिकार की रक्षा के लिये भूमि उपयोग पर नये सिरे से विचार करने की आवश्यकता है।

इसी संदर्भ में हम आपको दिल्ली में जंतरमंतर पर अगस्त 3 से 5 तारिख के लिये आंमत्रित कर रहे है। देशभर में अनचाहा विस्थापन और भूमिअधिग्रहण की खिलाफत और विकास नियोजन पर एक सम्पूर्ण कानून हमारी मांग है।

इस धरने में वन अधिकार कानून 2006 द्वारा दिये गये भू स्वामित्व के अधिकारियों जोकि दोनो बिलों से भी प्रभावित हो रहे है; समुद्रकिनारे के मछुआरों; खनन से प्रभावित आदिवासी-किसान; सेज व ढ़ांचागत परियोजनाओं से प्रभावित कृषि कामगार आदि शामिल होंगे।

शहरी गरीब, जोकि विभिन्न विकासगत परियोजनाओं से अपने बस्तियों और आजिविका से वंचित किये जा रहे है; वे किसान जिनकी जमीने लगातार शहरी विकास के लिये छीनी जा रही है, ये सभी इस धरने में शामिल होंगे।

भू-अर्जन कानून की समाप्ति के अलावा धरना अन्य विशेष विषयों पर भी केद्रित रहेगाः बांध (नर्मदाघाटी, उत्तरपूर्वी राज्यों, हिमाचल, उत्तराखंड और मध्य भारत); थर्मल ऊर्जा परियोजनायें; शहरी विस्थापन; वन अधिकार और समुदायिक प्रशासन; औद्योगिक घरानों के खिलाफ संघर्ष (पास्को, जेपी, डेनिस, टाटा, कोका कोला, वेदांता, मित्तल, रिलांयस, जिंदल आदि) और शहरी व ग्रामीण समुदायों द्वारा आजिविका अधिकार हेतु संघर्ष जैसे सार्वभौमिक पीडीएस एंव बीपीएल धारको को समुचित लाभ और नकद भुगतान का विरोध।

हमें आशा है कि आप इन दिनों में अपना समय निकालकर भविष्य रक्षा के लिये चल रहे संघर्ष में साथ देंगे। कृप्या अपने आने की सूचना हमें दे और जिस भी तरह से सहयोग कर सके अवश्य करे।

कार्यक्रम के लिये जरुरत हैः-
विभिन्न कामों हेतु कार्यकर्ता, भोजन, कनात, कार्यालय खर्च आदि।
विस्तृत व लगातार जानकारी के लिये कृप्या संपर्क में रहे।

संसाधन बचाओं! आजिविका बचाओं!

विकास चाहिये! विनाश नही!
लड़ेगे! जीतेंगे!

सहयोग में

मेधा पाटकर - नर्मदा बचाओं आंदोलन व जनअंादोलनो का राष्ट्रीय समंवय
अशोक चौधरी, मुन्नीलाल - वन कामगार और वनवासियों का राष्ट्रीय मंच
आर. वी. राजगोपाल - एकता परिषद्
प्रफुल्ल सामंत्रा - लोक शक्ति अभियान, एनएपीएम ओडिसा
रोमा, शंाता भटाचार्य, कैमूर क्षेत्र महिला - मजदूर किसान संघर्ष समिति, उप्र
गौतम बंधोपाध्याय - नदी घाटी मोर्चा, छत्तीसगढ़
गुमान सिंह - हिम नीति अभियान, हिमाचल
उल्का महाजन, सुनीती एस आर, प्रसाद भागवे - सेज विरोधी मंच और एनएपीएम महाराष्ट्र
डा0 सुनीलम्, एड0 अराधना भार्गव - किसान संघर्ष समिति, मप्र
गेबरियेला - पेरिनियम इयक्कम् और एनएपीएम, तमिलनाडु
दयामनी बारला - आदिवासी मूलनिवासी अस्तित्व रक्षा मंच, झारखंड
शक्तिमान घोष - राष्ट्रीय हॉकर फैडरेशन
भूपेन्द्र रावत, राजेन्द्र रवि - जनसंघर्ष वाहिनी और एनएपीम, दिल्ली
अखिल गोगाई - किसान मजदूर संघर्ष समिति, आसाम
अरुंधती धुरु - एनएपीएम, उप्र
सिस्टर सीलिया - डोमेस्टिक वर्कर यूनियन, एनएपीम, कर्नाटक
सिंप्रीत सिंह - घर बचाओ, घर बनाओ आंदोलन और एनएपीम, मुंबई
माता दयाल - बिरसा मुंडा भू अधिकार मंच और एनएफएफपीडब्लयू, मप्र
डा0 रुपेश वर्मा - किसान संघर्ष समिति, उप्र
चितरंजन सिंह - इंसाफ
महेश गुप्ता - जन कल्याण उपभोक्ता समिति, उप्र
विमलभाई - माटू जनसंगठन, उत्तराखंड
बिलास भोंगाडे - गोसी खुर्द प्रकल्प ग्रस्त संघर्ष समिति, महाराष्ट्र
जन संघर्ष समंवय समिति

विस्तृत जानकारी के लिये संपर्कः-
6/6 जंगपुरा बी, नई दिल्ली - 110014; ईमेलः[email protected]
शीला महापात्राः 9212587159ए मधुरेश कुमारः 9818905316ए विजयन एम जेः 9582862682