अच्छे दिनों का मतलब कारपोरेट की खुशी है
अच्छे दिनों का मतलब कारपोरेट की खुशी है
पलाश विश्वास
आज सुबह के आनंद बाजार पत्रिका को पढ़ने पर मेरे ज्ञानचक्षु खुल गये कि हमारी पीढ़ी तो अब भी नाबालिग है लेकिन अब शिशुओं का बालिग बनाने के अंधेरे बाक्स का विकाससूत्र इंतजाम कितना चाकचौबंद है।
यह अंधेरा जितना घना होगा, सामने जितनी तेज चकाचौंध होगी और जितनी उन्नत होगी तकनीकी क्रांति कारपोरेट समय का हिंदुत्व पद्म प्रलय उतना ही तेज होगा।
अच्छे दिनों का मतलब कारपोरेट की खुशी है तो उल्लास बहुआयामी युवाजनों के लिए है।
ब्लू फिल्मों पर रोक लगा नहीं सकती सरकार, लेकिन सिनेमाघरों से लेकर दफ्तरों को चकलाघर बनाकर रोजगार सृजन का अंधकार चमत्कार है।
खबर यह कि साठ रुपये की बलकनी टिकट के बदले सिनेमा के एक शो में तीन दफा की शिफ्ट पर प्लाईवूड के कापल बाक्स में ढाई सौ रुपये के टिकट पर एक घंटे से लेकर तीन घंटे तक के फ्री सेक्स का इंतजाम है और टिकट के साथ धारीदार सुगंधित विकाससूत्र भी फ्री है।
हाल में बंगाल के अति संवेदन शील राजनीतिक युद्धक्षेत्र आरामबाग में बंद कलासरूम में नौवीं और दसवीं के छात्र छात्राओं के ग्रुप सेक्स का मामला आया था।
अभिनेत्रियों के देहव्यापार की कथाएं भी अनंत है।
रैव पार्टी फैशन है।
दफ्तरों में लगातार दो दिन रात की ड्यूटी में फ्रीसेक्स के इंतजाम की कहानी भी पुरानी हो गयी है।
अब प्रगतिशील ज्योतिष तंत्र मंत्र आच्छादित केसरिया हो रहे बंगाल में जापानी तेल, सौंदर्य कारोबार,वियाग्रा ,प्लेब्वाय, वेब पत्रकारिता के पिनअप समय और साढ़ संस्कृति के पद्मप्रलय का चरमोत्कर्ष लेकिन कालेजों और विद्यालयों से सीधे स्कूल यूनिफार्म में सिनेमाहाल के अंधेरे में दाखिल होकर नाबालिगों के बालिग बनने का यह कारोबार शारदा फर्जीवाड़ा से कम पोंजी नहीं है।
जो वायरल फीवर की तरह बढ़ रहा है। कोचिंग केंद्रों में जो होता है, वह भी छुपा नहीं है। स्त्री को गुलाम बनाये रखकर उसको देहमुक्ति के बहाने बाजार में झोंकने का तंत्र आदिगन्त है। स्कूल से पकड़ी जा रही है कन्याएं, जिसे मानवतस्करी कारोबार को भी खतरा पैदा होने लगा है और यौन व्यवसाय के बेरोजगार हो जाने के आसार है।
अखबार ने उन तमाम हालों का और उनमें शिफ्ट, कपड़े बदलने से लेकर कंडोम तक के इंतजाम के बारे में जो खुलासा किया है, उससे कोलकाता के सारे उपनगरों और ग्रामीण क्षेत्रों में भी मुक्तबाजार का बुलेट विकास सेनसेक्सी हिंदुत्व का खुलासा हो गया है।
शिक्षा के कायाकल्प के संघी एजेंडे में यह देह व्यापार भी सम्मिलित है या नहीं, बाबाओं और स्वामियों की अरम्पार महिमा के बावजूद कहना बेहद मुश्किल है।
हम मूल खबरें इस टिप्पणी के साथ सचित्र पेश कर रहे हैं सूची समेत, देखते हैं कि हिंदुत्व की जिस्म में कोई फर्क पड़ता है या नहीं क्योंकि हिंदू राष्ट्र के एजेंडा में जो मनुस्मृति शासन का घोषित लक्ष्य है, वह आम्रपाली नगरवधू उत्सव के साथ-साथ चित्रलेखा वृतांत भी प्रासंगिक हैं।
दूसरी ओर नागरिकों की गोपनीयता की धज्जियां उड़ाकर जिस बायोमेट्रिक डिजिटल नागरिकता की संघी परियोजना यूपीए की विकलांगता के बाद नये मुलम्मे के प्रधान स्वयंसेवक की लालकिले की प्राचीर से हुए दहाड़ के मुताबिक आर्थिक सशक्तिकरण का लांच पैड है, सब्सिडी खत्म करने का बहाना है और खुफिया निगरानी चौबीसो घंटे का इंतजाम भी है, जिसे हम लगातार संप्रभुता, निजता और गोपनीयता की हत्या बताते हुए निराधार नागरिकों के हक हकूक की खुली लूट बता रहे थे, उसका कायाकल्प बजरंगी भी हो रहा है।
यूनिक जो आइडेंडिटी है, जिसके लिए आंखों की पुतलियों की तस्वीर के साथ उंगलियों की छाप भी जरूरी है, बजरंगी बली ने अपना आधार बनवाकर विशुद्ध मनुस्मृति शासन का संदेश जारी कर दिया है।
हिंदू राष्ट्र के सूत्रधारों और संघ परिवार के लिए वाह क्या आनंद है, परिवेश है क्योंकि पवनपुत्र हनुमान का आधारकार्ड बन गया है।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम मंदिर के निर्माण और युद्ध सहयोगी रणनीतिक बेडपार्टनरों अमेरिका और इजरायल के यरूशलम दखल के लिए भी यह कारनामा बेहद खास साबित हो सकता है धार्मिक ध्रूवीकरण के तहत, लेकिन आधार प्रकल्प की प्रामाणिकता को तो बाट लग ही गयी है।
दोनों खबरों को एक साथ नत्थी करने का मकसद यह बताना है कि धर्म के नाम पर अधर्म का तंत्र मंत्र यंत्र कितना फ्री सेनसेक्स है। संस्कृति के नाम पर नागरिकता हनन और बेदखली के परिवेश में न्यूनतम सरकार विनियंत्रकित विनियमित बाजार में क्या हो रहा है।
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