जिनका हुआ वारा न्यारा, जिनकी दसों उंगलियां घी में और सर हुआ कड़ाही, उन सबको बधाई।
जन गण मन अब जन धन मन हुआ, इसका मतलब भी समझ लीजिये।
पलाश विश्वास
नई सरकार के प्रमुख सुधारों को आगे बढ़ाने और उनके सफल क्रियान्वयन के प्रयासों से वित्त वर्ष 2019-20 तक भारत 4500 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकता है। डन एंड ब्रैडस्ट्रीट की एक रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है। टीवी पर विद्वतजन इकोनामिक इनक्लुजन और समावेशी विकास पर व्याख्यान दे रहे हैं तो टनों कागद कारे हैं दसमुखी विकासयात्राओं पर। गरीबी उन्मूलन असली अब हो रहा है, दावा का शोर मूसलाधार। हिन्दू माह भाद्रपद की चतुर्थी को (शुक्रवार) से पूरे देश में गणेश महोत्सव का शुभारंभ हो गया है। आगामी 10 दिनों तक महाराष्ट्र समेत देश के सभी हिस्सों में गणपति पूजा से माहौल भक्तिमय बना रहेगा।
सहज फार्मूला है गरीबी उन्मूलन का रामवाण।
गण का हुआ सफाया, गणपति बप्पा मौरिया की हांक लगने से पहले गण हो गया विसर्जित और गण पर हो रही है धनवर्षा। रसोई का भी पक्का इंतजाम कि मोदी सरकार ने यूपीए सरकार का फैसला पलट दिया है। एलपीजी उपभोक्ताओं को राहत देते हुए सरकार ने कहा कि ग्राहक 12 सस्ते सिलेंडर का अपना कोटा वर्ष के दौरान किसी भी समय ले सकते हैं।
अब अमेरिकी पूंजी खेंस में दबा लेने के बाद जापानी फ्लड गेट खोलने का इंतजाम भी पुरकश है, लुटेरों को खुल्ला आमंत्रण है कि लूट सको तो लूट लो, इस देश में सत्ता पक्ष भी अब संघ परिवार तो विपक्ष भी संघ परिवार। बाकी कोई आवाज है नहीं। बेखौफ लूट लो।
बहिष्कृत अस्पृश्य भेदभाव की शिकार जो जनता है, बजरिये आधार डिजिटल बायोमेट्रिक चमत्कार उन सबका खुलने लगा खाता बैंकों में। खाता खुलवाने में पचास लाख रोजगार का सृजन। शिवसेना माडल का रोजगार है जिसे तृणमूली रोजगार कहने में भी कोई हर्ज नहीं है।
मुफ्त बीमा के साथ मुफ्त डेबिट कार्ड भी। यानी धन निकासी किये बिना खरीददारी का पुख्ता इंतजाम भी।
हर्षद मेहता और केतन मेहता प्रकरण से देशी निवेशकों की आंखें खुली नहीं हैं और सभी मालामाल लाटरी पर दांव लगा रहे हैं, तो बाजार के तौर तरीके से अनजान, अब तक बैंकिंग से अनभिज्ञ, क्रयशक्तिहीन जनता के इस आर्थिक सशक्तीकरण से आखिर क्या मतलब सधता है, दिलचस्पी का मामला किंतु वहीं है।
जो लोग बिजनैस चैनलों में बिग एक्सपोज स्टाक मार्केट जैसे कार्यक्रम देखते हों, उन्हें बताने की जरुरत नहीं है कि सेबी और रिजर्व बैंक का बाजार पर नियंत्रण भारत सरकार से छटांक भर ज्यादा नहीं है।
जो लोग बंगाल असम और ओड़ीशा में शारदा फर्जीवाड़े के सिलसिले में पोंजी नेटवर्क की वित्तीय प्रणाली में राजनेता, पुलिस प्रशासन, सेबी, सिविल सोसाइटी, खेल मनोरंजन मीडिया और रिजर्वबैंक के तमाम चेहरों को गड्डमड्ड देख रहे हैं, उन्हें भी ज्यादा समझाने की शायद जरूरत है नहीं।
इंदिरा गांधी का समाजवादी माडल, हरित क्रांति और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम का अच्छा खासा इतिहास तो है ही, नवउदारवादी मनमोहिनी सरकार के दौर में इसी आधार भित्तिक सामाजिक परयोजनाओं मसलन मनरेगा, शहरी विकास योजना, सर्वशिक्षा अभियान, मिड डे मील वगैरह- वगैरह का जलवा और कारपोरेट उत्तरदायित्व का तामझाम हम देख ही चुके हैं।
हिंदी बिजनेस चैनल जी बिजनेस पर बिग एक्सपोज स्टाक मार्केट कार्यक्रम के तहत सात शेयरों के फर्जीवाड़े का खुलासा किया गया है। लिस्टेड होते ही इन कंपनियों का बुलरन शुरु, ग्रोथ तीनसौ फीसदी तक। फिर सब कुछ शून्य। रजिस्टर्ड दफ्तर का अता पता नहीं। कर्मचारियों और अधिकारियों का अता पता नहीं है। प्रोमोटरों का चालीस फीसद से ज्यादा हिस्सा जिसमें तीन चौथाई गिरवी पर और फंडामेंटाल कुछ भी नहीं। उन्हें निवेशकों को दिनदहाड़े लूटने की खुली छूट है और शेयर बाजार बूम-बूम है।
यह विकास कामसूत्र का सेक्सी विज्ञापन है जिसके तहत काउच पर, बिस्तर पर, बाथरुम पर, बगीचे में मसलन कहीं भी आप मस्ती कर सकते हैं और यह पोंजी बंदोबस्त आपकी अर्थव्यवस्था है जहां गण गायब है और धनवर्षा का विजुअल वर्चुअल रियलिटी है, न समाज वास्तव है और न सामाजिक सरोकार।
समाजवाद पर दिवंगत कवि गोरख पांडेय का गीत भी लगता है बदलना होगा क्योंकि केसरिया कारपोरेट सरकार ने समाजवाद शेयर बाजार मध्ये विदेशी निवेशकों की अटल आस्था के तहत लाने का पीपीपी उपक्रम चालू कर दिया है, जो एकमुश्त एफडाआई, डिइंवेस्टमेंट, इंफ्रा प्रोमोटर राज है।
मनमोहन ने विकास की फसल चुंआने का मुकम्मल इंतजाम नहीं किया था इसलिए जनता ने उन्हें अलविदा कर दिया है। अब ट्विंकल ट्विंकल ट्रिकलिंग ट्रिकलिंग हैं, कम से कम सरकार ज्यादा से ज्यादा प्रशासन के जरिये नमोमहाराज ने इसका अहसास मेघमध्ये मीडिया विमान से कर दिया है जनता को।
शेयर एक्सपोज की चर्चा हम इसलिए कर रहे हैं कि बाजार का दायरा महानगरों, नगरों और उपनगरों से बढ़ाकर बाजार का जो महाविस्तार खेतों और खलिहानों में किया जा रहा है, वहां तक नकदी प्रवाह-Cash flow या कैश लिक्विडिटी-Cash Liquidity, की दिशा लेकिन बूम-बूम उपभोक्ता बाजार है और इसीलिए इंश्योरेंस संगे डेबिट कार्ड का यह इंतजाम।
डेबिट कार्ड से किसी भी प्रकार का उत्पादन किसी भी स्तर पर बढ़ने की कोई गुंजाइश नहीं है। डेबिट कार्ड का मतलब हुआ बेहिसाब खरीददारी।
जाहिर है कि उत्पादन प्रणाली की वास्तविक समस्याओं को संबोधित किये बिना, उत्पादन प्रणाली में जनता की हिस्सेदारी सुनिश्चित किये बिना उन्हें सीमाबद्ध खरीददारी का मौका देने का इस महाराजसूय यज्ञ से किसे फायदा होने जा रहा है।
जाहिर है कि यह दानछत्र निजी विदेशी बैंकों की ओर से खोला नहीं जायेगा। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को ही बलि का बकरा बनाया जायेगा। बैड लोन-Bad loans के बहाने जिनका बेसरकारीकरण तेज है तो अब 15 -50 करोड़ लोगों को बैंकिंग जरिये पूंजी, बीमा और क्रेडिट कार्ड सुविधाएं देने के बाद रिकवरी क्तिनी होगी, इसका हिसाब तो बैंकों के कर्मचारी और अफसरान बेहतर लगा सकते हैं। लेकिन इस नकदी उत्सव के गरीबी उन्मूलन से क्रयक्षमता भले ही बढ़ जाये जनता की, आर्थिक सशक्तीकरण तो होना नहीं है क्योंक उत्पादन प्रणाली में उनकी कोई भूमिका रह ही नहीं गया है। यह तो बलि से पहले बकरों को चारा खिलाने का इंतजाम है।
आधार से जुड़े इस कार्यक्रम का सीधा मतलब हुआ बाजार को डीकंट्रोल और डीरेगुलेट करने का पुख्ता इंतजाम और सब्सिडी खत्म-Ending subsidies करने का स्थाई बंदोबस्त। जो सभी संवेदनशील सेक्टरों में एफडीआई और डिसइंवेस्टमेंट के बाद अमेरिकी रेटिंग एजंसियों और वैश्लविक संस्थानों का अनिवार्य दिशा निर्देश हैं।
पलाश विश्वास। लेखक वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आंदोलनकर्मी हैं । आजीवन संघर्षरत रहना और दुर्बलतम की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के लोकप्रिय ब्लॉगर हैं। “अमेरिका से सावधान “उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता में ठिकाना। पलाश जी हस्तक्षेप के सम्मानित स्तंभकार हैं।