रणधीर सिंह सुमन

पाकिस्तान में कहावत है कि सिन्धु नदी के स्नान से बेवफाई आ जाती है। लाल कृष्ण अडवानी जब पाकिस्तान यात्रा पर गये तो शायद सिन्धु स्नान कर लिया था, तभी उनको जिन्ना याद आने लगे थे (वैसे पाकिस्तान जाने से पहले कश्मीर में अडवाणी जी सिन्धु दर्शन शुरू कर चुके थे) लेकिन अब सिन्धु स्नान का असर कम हो रहा है और भारतीय राजनीति में समन्वयवादी नेता के रूप में अपनी छवि स्थापित करना चाहते हैं।
बाबरी मस्जिद विध्वंस के महानायक और देश में साम्प्रदायिकता की लहर चलाने वाले अडवानी प्रधानमन्त्री बनना चाहते हैं इसी लिये नागपुर मुख्यालय की छिपी हुयी रणनीति के तहत गुजरात नरसंहार के नायक नरेन्द्र मोदी का नाम प्रधानमन्त्री पद के लिये उछाला गया है जिससे एनडीए के घटक दलों को यह सन्देश जाये कि यदि नरसंहारी प्रधानमन्त्री नहीं चाहते हो तो उनसे कम अडवानी को प्रधानमन्त्री का दावेदार मान लो। इसी रणनीति के तहत शिवसेना जैसी उग्र हिन्दुवात्वादी पार्टी भी नरेन्द्र मोदी का विरोध कर रही है और अन्त में अडवानी को नागपुर मुख्यालय प्रधानमन्त्री पद का दावेदार बनाना चाहता है लेकिन सबसे बड़ा खतरा यह है कि अडवानी ने अगर पुन: सिन्धु स्नान कर लिया तो देश के साथ कितनी वफ़ा करेंगे? इन हिन्दुत्ववादियों का तो इतिहास ही रहा है मुँह में राम, बगल में छुरी।