मंटेक सिंह डूबे तो डूब गया योजना आयोग भी
पलाश विश्वास
कारपोरेट केसरिया रंगसाज ने मुक्तबाजार के चुनिंदा कारीगरों के स्वयंसेवी केसरिया पैनल में समूचे योजना आयोग को समाहित न कर दिया

फिक्र न करें गुसाई, सभै कर्मफल है साधो

मोक्ष के लिए गंगा नहाओ सावन हो या भादो

अनाज को मयस्सर हो जमाना त सीमेंट के इस चमचमाते जंग में बो डालो कोंदो

विवेक देवराय और डा. अमर्त्य सेन बंगाल में पूंजी के स्वर्णिम राजमार्ग पर वामसत्ता की अंधी आत्मघाती दौड़ के कोच रहे हैं। दोनों फिर दीदी के स्मार्ट सिटी पीपीपी वास्तुकार हैं। मंटेक सिंह डूबे तो डूब गया योजना आयोग भी।

कांग्रेस भी योजना आयोग को बोझ मान रही थी।

योजना आयोग कांग्रेसी जमाने में मंटेक के नेतृत्व में वैश्विक हितों के ग्लोबीकरण विश्वबैंकीय असंवैधानिक तत्वों का कबूतरखाना पूरे भारत की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करते हुए कृषि और उत्पादन के सर्वानाश का सारा सामान तैयार कर रहा था और यह सिलसिला राजीव की तकनीकी क्रांति के साथ शुरु हो गया था तो नब्वे में मनमोहनी नवउदारवादी अवतरण के साथ ही सोवियत माडल को अलविदा कहने की रस्म निभा दी गयी थी।

लालकिले की प्राचीर से प्रधानतम, सुप्रीम स्वयंसेवक की योजना आयोग के अवसान की घोषणा का इसलिए कोई खास तात्पर्य नहीं होता, अगर कारपोरेट केसरिया रंगसाज ने मुक्तबाजार के चुनिंदा कारीगरों के स्वयंसेवी केसरिया पैनल में समूचे योजना आयोग को समाहित न कर दिया होता।

अब संघ परिवार ने अपने बुनियादी एजेंडा के तहत इतिहास भूगोल शिक्षा संस्कृति जनमानस विवेक ज्ञान गरिमा सबकुछ गौरिक बनाने की ठान ली है। उसकी तैयारियां भी जोरों पर है।

स्मृति की तुलसी भूमिका की योग्यता पर मत जाइये, उन पर जो छत्रछाया है और जो सुदर्शन चक्र का वध विशेषज्ञ काया है, उससे संभल जाइये।

अब तक बंगाल के सुशील समाज के पुरस्कृत सम्मानित होने के कारण तालियां पीट रही थी दिल्ली, अब सबकी पूंछ उठाने की बारी है। खबर है कि ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी से लेकर साहित्य और संस्कृति का केसरियाकरण होने ही वाला है।

भारत भवन के दरवज्जे मत्था टेकने वाले झंडेवालान के सामने कैसे कैसे अपनी रीढ़ बचायेंगे दिखना वाकई दिलचस्प ही होगा।

वैसे सत्ता की ज्ञानपीठ वामरंगे जेएनयू का केसरिया कायाकल्प तो पूरा ही गया दीख्या जी। प्रवचन गुसाई से लेकर जनसंस्कृति तक की यात्रा अब अस्मिता कारोबार का केसरिया कारोबार है, जिस पर मंडल का मुलम्मा भी भीषण है।

हमें नहीं मालूम कि कितने दिनों तक फिर यह लेखन संभव है। कल यकायक मेरे मेल आउटबाक्स से संदेश का बहिर्गमन रोक दिया गया। अभी बमुश्किल एक खाता ओपन हो सका है, बाकी अब भी बंद हैं।

ब्लाग तो उड़ाये ही जाते रहे हैं, आईडी डीएक्टिव किये ही जाते रहे हैं, माडरेट करने के बहाने रोक भी लगती रही है, लेकिन अंतर्जाल के केसरिया एकाधिकार का लघुपत्रिका हश्र होने लगा है।

फ्लिपकार्ट अमाजेन क्रांति ने विमर्श का स्पेस फूंक दिया है और समर्थ लोग भी टीआरपी के मुरीद हो गये हैं।

जंगल में लगी है आग और कंगारु बच्चादानी के साथ सबसे ऊंची छलांग के साथ फेंस बदलने लगे हैं।

कंगारु जो है नहीं, उन शुतुरमुर्ग की मेंढक नींद भी मौसम के शबाब कबाब शराब में शामिल हैं। उनकी भी अजब गजब कारस्तानी है।

जब तोपखानों पर जंग लग गया हो तो पर्चा निकालना चाहिए

जब आसमान में लगी हो आग और हवाएं भी लहूलुहान हो

तो पांव जमीन पर रखकर जमाने के खिलाफ बाबुलंद

आवाज दहाड़ लगानी चाहिए, हालात बदले न बदले

मारे जा रहे लोगों की नींद में हर हाल में

खलल डालनी चाहिए कि बहुत तेज है

दस्तक सिंह द्वार पर, अब न जाग्यो

तो कब जागणा है मुसाफिर

तेरी गठरी ले चोर भाग्यो

लाल किले की प्राचीर से प्रधान सुप्रीम स्वयंसेवक ने संसाधनों और श्रम के अधिकतम इस्तेमाल का हुंकारा भरते हुए नक्सलियों को देख लने की चेतावनी भी दी थी।

अब इस पर गौर करें कि कभी बंगाल के किसी मरणासण्ण जराजीर्ण वृद्ध को रात के अंधेरे में लालबाजार उठाकर ले जाया गया और बाकी जो कुछ हुआ तो सिद्धार्थ बाबू जानते रहे हैं जिन्होंने पंजाब के खाढ़कुओं को भी गिल के साथ गिल्ली डंडा खेलते-खेलते ठिकाने लगा दिया। हालांकि उनके शागिर्द और तब बंगाल के पुलिस मंत्री सुब्रत मुखर्जी अब भी मां माटी मानुष सरकार में वजनदार मंत्री बने हुए हैं।

मुठभेड़ विशेषज्ञ का मां माटी मानुष से कितना गहरा ताल्लुक है, यह तो दीदी ही बता सकती हैं जो बंगाल में सबसे पहले दसों स्मार्टसिटी का लवासा मैप जारी करके सुषमा स्वराज पदचिह्ने सिंगापरु निकल पड़ी है बैंड बाजे गवइया नचनिया के साथ पूंजी को ललचाने, क्योंकि उन्हें मोदी के खिलाफ लड़ाई जारी रखनी है और बंगाल को हर हालत में गुजरात बना देना है।

दूसरी ओर, करोड़ों रुपए के शारदा चिटफंड घोटाले के सिलसिले में धनशोधन की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पश्चिम बंगाल के वस्त्र मंत्री श्यामपद मुखर्जी और ऐक्ट्रेस-डायरेक्टर अपर्णा सेन से पूछताछ की।

जाहिर है कि इस विकास पीपीपी प्रकल्प में सिद्धार्थ के शागिर्द की खासी भूमिका है, जो दीदी के सियासी उस्ताद भी हैं और जिनकी सिफारिश पर सोमनाथ चटर्जी के खिलाफ दीदी को जंगे मैदान में 1984 में उतार दिया था राजीव गांधी ने।

ज्यादा कयास लगाने की जरुरत भी नहीं है, उन चारु मजुमदार को लालबाजार में ठिकाना लगा दिया गया क्योंकि उन्होंने पहले तो भूमि सुधार मुद्दे पर एक के बाद एक दस्तावेज जारी करके सत्ताधारी वाम की नींद हराम कर दी और फिर वे कहने लगे, चीख-चीखकर, चीनेर चेयरमैन, आमादेर चेयरमैन।

चीन के खिलाफ छायायुद्ध संघियों का सबसे प्रिय खेल हैं और संघ के प्रधानतम स्वयंसेवक प्रधानमंत्री अब बांसो उछल-उछलकर नारा बुलंद कर रहे हैं कि चीन का रास्ता हमारा रास्ता। इसका क्या कहिये।

खास बात तो यह है कि स्वर्ग के सारे देव देवी एकमत हैं योजना आयोग के खात्मे पर जैसे कि वे विकास का एक ही नजरिया एफडीआई पूंजी जहां से आई। विदेशी पूंजी का रंग देखना तो साक्षात लक्ष्मी के विरुद्ध अनास्था, घनघोर पापकर्म है और इसीलिए पीपीपी है।

विनिवेश पर एकमत सर्वसम्मत तो पीपीपी के लिए तो अपना अपना हिस्सा कमीशन पैकेज बूझ लेने की बाकायदा मारामारी है। अरबों अरबपति मालामाल लाटरी जो है।

इस लाटरी में हिस्सेदारी के लिए योजना आयोग और संस्थागत तमाम प्रतिष्ठानों का सफाया और बगुला भगतों के पैनल दर पैनल हीरक बुलेट चतुर्भुज है। देव देवियों के लिए हीरा और जनता के लिए बुलेट।

बाकी जो जनता पापफल का भुगतान कर रहे हैं, उन पर सार्वजनिक आंसू क्या कम हैं।

मुश्किल सिर्फ इतनी सी है कि खून की नदियों में बाढ़ है और ग्लेशियरों से भी खूनै खून हैं, आंसू में ग्लिसरीन माफिक नहीं पड़ा तो मन्नू भाई विदा हैं, इसीलिए अभिनेता अभिनेत्रियों का बाजारभाव राजनीति में सबसे ऊंचा है।

तमाशा यह भी कम नहीं, मसलन जो है सो आगरा बाजार है। इस तमाशे के मध्य हलाल हलाली घनघोर है।

पलाश विश्वास। लेखक वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आंदोलनकर्मी हैं । आजीवन संघर्षरत रहना और दुर्बलतम की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के लोकप्रिय ब्लॉगर हैं। “अमेरिका से सावधान “उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता में ठिकाना। पलाश जी हस्तक्षेप के सम्मानित स्तंभकार हैं।