अपनी कुंठाओं के लिए देश से बड़ी कीमत अदा करा रहे हैं मोदी
अपनी कुंठाओं के लिए देश से बड़ी कीमत अदा करा रहे हैं मोदी
आत्मश्लाघा, आत्ममुग्धता और कुंठाओं जैसे व्यक्तिगत भावों से मोदी ग्रस्त हैं। अमेरिका का नाम आते ही उनकी कुंठाएं चरम पर आ जाती हैं।
मोदी की कुंठा की कीमत ?
नरेंद्र मोदी दीर्घकाल तक अमेरिकी वीजा से वंचित रहने की अपनी कुंठा से मुक्त नहीं हो पाये हैं। भारत के प्रधानमंत्री की संवैधानिक मान्यता प्राप्त होने पर संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाग लेने वह अमेरिका गए थे, अमेरिका के निमंत्रण पर नहीं, तब प्रवासी भारतीयों के एक हिस्से के अलावा वहां कोई नहीं था जो गर्मजोशी से उनका स्वागत करता। स्वयं ओबामा और अमेरिकी प्रेस ने उन्हें उतना सम्मान नहीं दिया जितना कभी मनमोहन सिंह को दिया था। भारतीयों के एक हिस्से ने तो मोदी के विरोध में प्रदर्शन भी किया था। लेकिन बिकाऊ भारतीय मीडिया ने अतिरंजना पूर्ण महिमामंडन किया था और भक्तगण गदगद हो रहे थे। एक टीवी चैनल पर तो चाटुकारिता में शीर्षक भी यही दिया जा रहा था-"अमेरिका ? लो मैं आ गया !" यह कुंठाओं की अभिव्यक्ति ही थी।
अपनी अमेरिका रवानगी से ठीक पहले वहां के कारपोरेट को खुश करने के लिए जीवन को जरूरी कई ऐसी दवाओं को नियंत्रण मुक्त कर दिया था जिन्हें अमेरिकी कम्पनियाँ बनाती हैं और इस तरह उनकी भारत में कीमत आसमान छू गई। कैंसर के मरीजों पर सबसे बड़ा बोझ पड़ा। यह लूट की छूट थी। अब अपने कार्यकाल के पहले ही गणतंत्र दिवस पर अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा को मुख्य अतिथि बनाना भी मोदी सरकार की नीति पर मोदी की व्यक्तिगत कुंठा का प्रभाव स्पष्ट कर रहा है। वह सुरक्षा के नाम पर हमारे प्रोटोकाल से समझौता कर रहे हैं और हम हर अपमानजनक शर्त पर "हाँजी हाँजी" किये जा रहे हैं। गणतंत्र दिवस की गरिमा, संविधान की सार्थकता, उसके आधारभूत ढांचे को चुनौतियां आदि सब बहस-मुबाहिसा पीछे छूट गया है और ओबामा की सुरक्षा तथा गुणगान केंद्र बिंदु बन गए हैं।
निःसंदेह भारत 'अतिथि देवो भवः' की संस्कृति का देश है लेकिन इस बार अतिथि बोझ-सा लग रहा है। अपव्यय प्रतीत हो रहा है संसाधनों का यह आतिथ्य। जिन समझौतों पर हस्ताक्षर होने हैं वे सामान्य राजनयिक व्यवहार में संभव थे। जनता में इस अतिथि के लिए कोई उत्साह नहीं है अपितु विरोध के स्वर सुनाई दे रहे हैं। लेकिन मोदी अपनी कुंठाओं के लिए देश से बड़ी कीमत अदा करा रहे हैं। आत्मश्लाघा, आत्ममुग्धता और कुंठाओं जैसे व्यक्तिगत भावों से मोदी ग्रस्त हैं। अमेरिका का नाम आते ही उनकी कुंठाएं चरम पर आ जाती हैं।
मधुवन दत्त चतुर्वेदी


