अफ्सपा रद्द हो ताकि इरोम शर्मिला की रिहाई हो सके-जस्टिस राजेन्द्र सच्चर
अफ्सपा रद्द हो ताकि इरोम शर्मिला की रिहाई हो सके-जस्टिस राजेन्द्र सच्चर
नईदिल्ली। अफ्सपा हटाने की मांग को लेकर पिछले 14 वर्षों से संघर्ष कर रही इरोम शर्मीला के समर्थन में सोशलिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं ने डॉ. राममनोहर लोहिया की पुण्यतिथि (12 अक्तूबर) को दिल्ली समेत सभी राज्यों में एक दिन का सांकेतिक अनशन किया। दिल्ली में जंतर-मंतर पर आयोजित अनशन में सोशलिस्ट पार्टी के साथ सोशलिस्ट युवजन सभा (एसवाईएस) के कार्यकर्ता भी बड़ी संख्या में शामिल हुए। इस मौके पर जस्टिस राजेन्द्र सच्चर ने कहा कि इरोम शर्मीला की अविलंब रिहाई के लिए सुरक्षा बल विशेषाधिकार कानून (असम व मणिपुर) 1958 तुरंत हटाया जाना चाहिए। भारत के सभी लोकतंत्र और अहिंसा में विश्वास रखने वाले नागरिकों को पुरजोर तरीके से यह मांग उठानी चाहिए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट को इस गंभीर मसले में हस्तक्षेप करके इसे सुलझाना चाहिए।
मणिपुर की सामाजिक कार्यकर्ता और इरोम शर्मीला की साथी बीना लक्ष्मी नेपराम ने कहा कि मणिपुर और पूरे उत्तर पूर्वी राज्यों में रहने वाले लोगों की देशभक्ति पर शक नहीं किया जा सकता। वे सच्चे भारतीय हैं जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना खून बहाया है और जेलें काटी। अंग्रेजी हुकूमत में सबसे ज्यादा सालों तक जेल में रहने वाली महिला मणिपुर की थी। फिर हमारे घरों और खेत-खलिहानों में सेना की तैनाती क्यों? उन्होंने इरोम शर्मिला की लड़ाई को नागरिक स्वाधीनता की लड़ाई बताया और कहा कि अफ्सपा गैर संवैधानिक कानून है जिसे तुरंत हटाया जाना चाहिए।
अनशन में एनडी पंचोली, अरुण कुमार श्रीवास्तव, डॉ. अपूर्वानंद, डॉ. वीरभारत तलवार, प्रो. वीपी श्रीवास्तव, अरुण त्रिपाठी, बाबा विजेन्द्र मोहम्मद रफीक, सुल्तान कुरैशी, इमामुर्रहमान, डॉ. भगवान सिंह, श्याम गंभीर, डॉ. ओंकार मित्तल, वीरेंद्र लोबो, पीसी हमजा, डॉ. राकेश राणा समेत कई बुद्धिजीवी और एक्टिविस्ट शमिल हुए। सुमित चक्रवर्ती, प्रो. अनिल सदगोपाल, अनिल नौरिया और सुरेंद्र कुमार ने अपना संदेश भेज कर समर्थन जाहिर किया।
अनशन की अध्यक्षता सोशलिस्ट पार्टी के महासचिव डॉ. प्रेम सिंह ने की। उन्होंने देश के सभी बुद्धिजीवियों ओर एक्टिविस्टों से अपील की कि वे लोकतांत्रिक मूल्यों की लड़ाई लड़ने वाली इरोम शर्मिला के समर्थन में आगे आएं। उन्होंने बताया कि जस्टिस सच्चर, कुलदीप नैयर, डॉ. संदीप पांडे और पन्नालाल सुराणा राष्ट्रपति से मुलाकात करके इरोम शर्मीला की रिहाई कर मांग करेंगे। अनशन के अंत में राष्ट्रपति को निम्न ज्ञापन दिया गया:-
12 अक्तूबर 2014
ज्ञापन
महामहिम
श्री प्रणब मुखर्जी
भारत के राष्ट्रपति
आदरणीय महोदय
14 साल पहले 2 नवंबर 2000 में इंफाल के एक बस स्टैंड पर सुरक्षा बल के जवानों ने गोलियां चलाकर 10 निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया था। मृतकों में एक 80 वर्षीय वृद्धा और वीरता पुरस्कार जीतने वाला एक बच्चा भी शामिल था। इस घटना ने इरोम चानू शर्मिला को झकझोर कर रख दिया। जिस सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (असम और मणिपुर) 1958 (अफ्सपा) की आड़ में सुरक्षा बलों ने अंधाधुंध गोलियां चलाकर निर्दोषों को मार डाला था, उसके खिलाफ घटना के तीसरे दिन शर्मिला अनिश्चितकालीन उपवास पर बैठ गईं। तब से अब तक 14 साल बीत चुके हैं और सरकार उन्हें आत्महत्या का प्रयास करने के जुर्म में अस्पताल में कैद किए हुए है। अस्पताल वार्ड में रहते हुए इरोम शर्मिला ने गांधी जी के अहिंसा सिद्धांत के पालन की मिसाल कायम की है। वे हमेशा अपने सिराहने महान भक्त कवयित्री मीराबाई की मूर्ति रखती हैं।
इस साल अगस्त महीने में अदालत ने शर्मिला को यह कहते हुए बरी कर दिया कि उनके खिलाफ आत्महत्या के प्रयास जैसा कोई मामला नहीं बनता, लेकिन रिहाई के तीन दिन बाद पुलिस ने उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया। प्रेम और करुणा भाव से संचालित इरोम शर्मिला का संबंध किसी भी संगठन अथवा विचारधारा विशेष से नहीं रहा है। शर्मिला का विरोध प्रदर्शन जनतांत्रिक मांग के दायरे में शांतिपूर्ण तरीके से किए गए संघर्ष का उत्कृष्ट नमूना है। 14 सालों तक नाक के रास्ते जबरन भोजन देने के कारण उनका स्वास्थ्य गिर कर चिंताजनक स्थिति में पहुंच गया है। राज्य सत्ता, हिंसक संघर्ष की आलोचना करती है, लेकिन वह अभी तक के सर्वाधिक शांतिपूर्ण प्रतिरोध को भी बरदाश्त करने को तैयार नहीं है।
महोदय, पूर्वोत्तर में अफ्सपा ‘एक्सट्रा जुडिशियल किलिंग्स’ और नागरिक स्वतंत्रता के हनन का पर्याय बन चुका है। 32 वर्षीय अविवाहित थांगजम मनोरमा की बलात्कार के बाद की गई नृशंस हत्या के विरोध की घटना को भला कोई कैसे भुला सकता है! इंफाल के कांगला फोर्ट स्थित असम राइफल्स मुख्यालय के सामने करीब तीन दर्जन मणिपुरी औरतें निर्वस्त्र होकर हाथों में ‘इंडियन आर्मी हमारा बलात्कार करो’ का प्ले कार्ड लेकर सड़कों पर उतर आई थीं।
आपातकाल या किसी विशेष परिस्थिति में सशस्त्र बल की तैनाती समझ में आती है, किंतु लंबे समय तक संगीनों के साये में रहने से लोगों में पराएपन और अलगाव का भाव गहराता जाता है। मणिपुर में अलगावादी संगठनों की संख्या में दिनोंदिन हो रही बढ़ोत्तरी अफ्सपा के दमन का ही नतीजा है। इसलिए वहां से अफ्सपा का हटाया जाना जरूरी है।
इरोम शर्मिला की रिहाई और अफ्सपा हटाने की मांग को लेकर सोशलिस्ट पार्टी ने 12 अक्तूबर (डॉ. राममनोहर लोहिया की पुण्यतिथि) 2014 को सभी राज्यों में एक दिन का अनशन किया। इस ज्ञापन के माध्यम से हमारी आपसे प्रार्थना है कि आप इस लंबे समय से लटके व विवादास्पद मामले में हस्तक्षेप करें ताकि लोकतंत्र और अहिंसा की चेतना को बनाए रखा जा सके।
सादर
भवदीय
भाई वैद्य (अध्यक्ष)
डॉ. प्रेम सिंह (महासचिव)
डॉ. संदीप पांडे (उपाध्यक्ष)
जस्टिस राजेंद्र सच्चर (वरिष्ठ सदस्य)
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