मुझे लगता है युद्ध होगा !

पूरी दुनिया में असफल पूंजीवाद ने राष्ट्रवाद की शरण ली हुई है (Unsuccessful capitalism has taken refuge in nationalism)। राष्ट्रवादी विचारों के जरिये वे जितना चूस पा रहे हैं श्रमजीवियों को चूस रहे हैं। अब उन्हें जिन्दा रहने के लिए खून चाहिए।

ईरान, उत्तर कोरिया, हांगकांग, काश्मीर नई वेदियां हैं। युद्धों के लिए राष्ट्रीय अस्मिता के नाम पर मजदूरों और मिडिलक्लास लोगों से बलिदान और दान मांगे जायेंगे। युद्ध के नाम पर जरूरी रक्षा उपकरणों, गोला बारूद, ईंधन, दबाईयों और रसद की सप्लाई के लिए निजी पूंजीपतियों के उद्यमों और प्रतिष्ठानों को कमाई के मौके दिए जाएंगे, खजानों की कीमत पर भी, खदानों की कीमत पर भी।

Madhuvan Dutt Chaturvedi मधुवन दत्त चतुर्वेदी लेखक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं। Madhuvan Dutt Chaturvedi मधुवन दत्त चतुर्वेदी
लेखक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।

इस तरह इस बार का पूंजीवाद का वैश्विक संकट (Global crisis of capitalism) लहू के दरियों को पार करने की तैयारी में है। पहले भी उसने यह सब किया है।

भारत के लोगों को युद्ध के लिए उन्मादी बनाने की साजिश भी समझिये ! टीवी से लेकर ज्यादातर अखबार तक, ढह चुके पूंजीवाद के मुर्दे में घी डालने की कोशिश कर रहे हैं। काश क्रांतिकारी विकल्प होता !

मधुवन दत्त चतुर्वेदी